गुरप्रीत सैनी, बीबीसी संवाददाता
प्लाज़्मा थेरेपी से कोरोना के गंभीर मरीज़ों के भी ठीक होने की उम्मीद जगी है। इस थेरेपी के अबतक के ट्रायल के कुछ नतीजे भी अच्छे आए हैं। सरकार सभी ठीक हुए मरीज़ों से प्लाज़्मा डोनेट करने की अपील कर रहा है। लेकिन कई वजहों से लोग सामने नहीं आ रहे हैं।
ऐसे में गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाली सुमिति सिंह जैसे कुछ लोग इसके लिए दूसरों को प्रोरित कर रहे हैं।
इलाज के बाद कोरोना वायरस को हराने वाली सुमिति ने अब दूसरे मरीज़ों को बचाने के लिए अपना प्लाज़्मा डोनेट किया है।
दरअसल फ़िनलैंड से लौटने के बाद सुमिति को बुख़ार हुआ और फिर हल्की खांसी और चेस्ट में टाइटनेस की शिकायत। उनमें कोरोना के हल्के लक्षण थे।
18 मार्च को उन्हें अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अस्पताल में भर्ती कर लिया गया और 29 मार्च को इलाज के बाद वो ठीक हो गईं। उन्हें ऑक्सीजन और वेंटिलेटर पर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। अहमदाबाद में कोरोना को हराकर ठीक होने वाली वो पहली मरीज़ थीं।
डॉक्टर्स ने दूर की आशंकाएं
उस वक्त प्लाज़्मा थेरेपी को लेकर इतनी चर्चा नहीं थी और ना ही इसके ट्रायल शुरू हुए थे। लेकिन ठीक होने पर 14 दिन के बाद जब सुमिति फॉलो-अप चेकअप के किए दोबारा अस्पताल आईं, तो उन्हें डॉक्टरों ने बताया कि वो चाहें तो दूसरे कोरोना मरीज़ों की मदद के लिए प्लाज़्मा डोनेट कर सकती हैं।
सुमिति दूसरे मरीज़ों और इस जंग को लड़ रहे डॉक्टर्स की मदद करना चाहती थीं, लेकिन उनके और उनके परिवार के मन में कई तरह की आशंकाएं भी थी। ठीक वैसी ही आशंकाएं जो कोरोना से ठीक हुए दूसरे लोगों के मन में आ रही हैं।
प्लाज़्मा में एंटीबॉडी होती है तो कहीं डोनेशन के बाद उनका एंटीबॉडी तो कम नहीं हो जाएगा? डोनेशन का प्रोसेस कहीं जटिल या पेनफुल तो नहीं होगा? निडल से कोई इन्फ़ेक्शन तो नहीं हो जाएगा?
लेकिन डॉक्टर्स ने सुमिति के सभी सवालों का जवाब दिया। उन्हें बताया कि शरीर बहुत-से एंटीबॉडी बनाता है और डोनेशन में ठीक हुए व्यक्ति से सिर्फ़ उनके एंटीबॉडी का छोटा सा हिस्सा लिया जाता है और ये बहुत कम वक्त में हो जाता है।
ये बिल्कुल वैसा ही प्रोसेस है जैसे ब्लड डोनेशन के वक्त होता है और इस दौरान डिस्पोज़ेबल निडल और ट्यूब का इस्तेमाल होता है। जो हर व्यक्ति के लिए नया लिया जाता है।
डॉक्टर्स ने बताया कि कोरोना से ठीक हुए जिस भी व्यक्ति को पहले से कोई और बीमारी नहीं है और उसके शरीर में एंटीबॉडी है तो वो प्लाज़्मा डोनेट कर सकता है। व्यक्ति ये अपनी इच्छा से कर सकता है, उसपर कोई दबाव नहीं होता।
500 एमएल प्लाज़्मा डोनेट किया
अपने सारे सवालों के जवाब मिलने के बाद सुमिति की सारी आशंकाएं दूर हो गईं और उन्होंने फ़ैसला किया कि अपना फ़र्ज़ निभाते हुए वो दूसरे लोगों की ज़िंदगी बचाने की कोशिश में अपना प्लाज़्मा डोनेट करेंगी। फिर क्या था। सुमिति डोनेशन के लिए पहुंच गईं। जहां प्लाज़्मा डोनेशन का प्रोसेस होता है वो हिस्सा कोरोना मरीज़ों के वार्ड से एकदम अलग होता है।
सुमिति बताती हैं कि उन्हें पूरी प्रोसेस में 30 से 40 मिनट का वक्त लगा और उनका 500 एमएल प्लाज़्मा लिया गया।
इससे पहले सुमिति ने कभी ब्लड डोनेशन नहीं किया था। उनके लिए ये सब नया था। लेकिन वो कहती हैं कि सबकुछ बहुत आसानी से हो गया। कुछ मिनटों के लिए बीच में थोड़ी घबराहट और सरदर्द ज़रूर हुआ था।
लेकिन डॉक्टर्स की मदद से वो ठीक हो गया। डॉक्टर्स के मुताबिक़ इसमें कोई घबराने की बात नहीं हैं, क्योंकि ब्लड डोनेशन के वक्त भी ऐसा थोड़ी देर के लिए लगता है।
आसान प्रोसेस
सुमिति बताती हैं कि पहले उनका एक ब्लड टेस्ट हुआ, जिससे देखा गया कि उनके शरीर में एंटबॉडी है या नहीं, उनका हिमोग्लोबिन कितना है, एचआईवी और हेपेटाइटिस जैसी कोई बीमारी तो नहीं। सब चीज़ें ठीक मिलने के बाद उन्हें प्लाज़्मा डोनेट करना था। वो बताती हैं कि उन्हें बस एक सूई लगने भर का दर्द हुआ।
उनके शरीर से जो खून निकल रहा था, उसकी ट्यूब एक मशीन में जा रही थी। वो मशीन प्लाज़्मा (पीले रंग का) और खून को अलग कर देती थी। उसके बाद खून को वापस उनके शरीर में भेज दिया जाता था।
किसे मिला सुमिति का प्लाज़्मा
सुमिति ने 21 अप्रैल को प्लाज़्मा डोनेट किया था। डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि उनका प्लाज़्मा दो दिन पहले ही एक मरीज़ को दिया गया है। जिसके बाद मरीज़ की हालत अब स्थिर है। मरीज़ों को इससे कितना ज़्यादा फायदा मिला है, अभी इसका पता चलने में थोड़ा वक्त और लगेगा।