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कोरोना वायरस का कहर अख़बारों पर क्यों बरपा?

हमें फॉलो करें कोरोना वायरस का कहर अख़बारों पर क्यों बरपा?

BBC Hindi

, शुक्रवार, 27 मार्च 2020 (13:37 IST)
फैसल मोहम्मद अली, बीबीसी संवाददाता
मुंबई के गोरेगांव में रहनेवाले शोभित रॉय ने अपने यहां आनेवाले समाचार पत्र की डिलीवरी 13 दिनों पहले ही कैंसल करवा दी थी। लेकिन बुधवार को केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के घर पर भी अख़बार नहीं पहुंचा।
 
मीडिया इंडस्ट्री से संबंधित मंत्रालय के मुखिया, प्रकाश जावडेकर ने रिपोर्टरों से कहा, "मैंने अख़बार डिलीवर करनेवालों से वजह का पता किया कि ऐसा क्यों हुआ? इस तरह की अफ़वाहें हैं कि समाचार पत्र को छूने से कोरोना वायरस का फैलाव होता है।"
 
विश्व भर में गिरते पाठकों की तादाद के दौरान भी बढ़त जारी रखनेवाले भारतीय समाचार पत्र उद्योग पर कोरोना की भारी मार पड़ी है।
 
कोलकाता के एक अख़बार डिस्ट्रीब्यूटर अमित गोस्वामी ने समाचार ऐजेंसी एएनआई से कहा है, "हमारी बिक्री 80 फ़ीसदी कम हो गई है।"
 
इंडियन रीडरशिप सर्वे की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में अख़बार के पाठकों की कुल संख्या 42 करोड़ 50 लाख है और समाचारपत्रों ने साल भर के अंदर तक़रीबन एक करोड़ से अधिक पाठकों को ख़ुद से जोड़ा है।
 
प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि कुछ हाउसिंग सोसाइटियों ने समाचारपत्र वितरकों के परिसर में प्रवेश पर रोक लगा दी है, "जो बहुत ग़लत है' और लोगों को ये याद रखना चाहिए कि 22 मार्च यानी रविवार को जनता कर्फ़्यू के दौरान उनसे तालियां बजाने का जो आग्रह किया गया था वो मेडिकल स्टाफ़ और मीडियाकर्मियों दोनों के लिए था।"
 
केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देश में जिन सेवाओं को 21 दिन के लॉकडाउन से राहत दी गई है उनमें मीडिया भी शामिल है।
 
लेकिन अख़बार का वितरण मीडियाकर्मी नहीं करते, बल्कि ये एक पूरे डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क पर आधारित होता है, जिसमें प्रिंटिग प्रेस से छपे बंडलों को डिस्ट्रीब्यूर्स, फिर वेंडर तक पहुंचाने का काम भी शामिल हैं। इसमें एक शहर से दूसरे शहर तक भी जाना होता है। सबसे अंत में है हॉकर्स जो घर-घर जाकर अख़बार डालते हैं।
 
पुलिस-प्रशासन को इस मामले में साफ़ निर्देशों की कमी ने तो इसमें संकट पैदा किया ही है। रही-सही कमी पूरी कर दी है: रेलगाड़ियों के कैंसिल होने, टैक्सियों-लॉरियों-मिनी ट्रकों के मूवमेंट पर लगी रोक, और ख़ुद वितरकों में उपजे ख़ौफ़ ने।
 
दीनानाथ सिंह राय पश्चिम बंगाल के नार्थ 24 परगना के सोदपुर में अख़बार के बड़े वितरक हैं।
 
वो कहते हैं, "पहले हम ट्रेन से बंडल ले जाते थे वो बंद है, मैटाडोर या टैक्सी का किराया बहुत अधिक है और हॉकर्स अपने डर और कई दफ़ा पुलिस के कारण अख़बार उठाने नहीं आ पा रहे हैं।"
 
वे कहते हैं कि नुक्कड़ों और शहर के चौराहों पर जो बिक्री दिन भर में हुआ करती थी वो बंदी की वजह से बिल्कुल ख़त्म हो गई है।
 
भास्कर समूह के ग्रुप संपादक प्रकाश दूबे कहते हैं कि उनकी संस्था ने अपने हॉकर्स को पहचान-पत्र मुहैया करवाने की कोशिश की लेकिन कुछ दूसरे समूह इसके लिए तैयार नहीं हुए। प्रशासन, अख़बार समूह और वितरक समस्या से निपटने की कोशिश कर रहे हैं।
 
महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई के यहां बुधवार को अख़बार मालिकों, उनके प्रतिनिधियों और हॉकर्स की एक बैठक हुई।
 
अगले दिन गुरुवार को कई दूसरे इलाक़ों जैसे नागपुर में फिर ऐसी ही बैठक हुई जिसमें ये तय हुआ कि वितरकों को पुलिस-प्रशासन पूरा संरक्षण देगा और अख़बार वितरण में किसी तरह की दिक्क़त पेश नहीं आएगी। नागपुर में हुई बैठक में राज्य के ऊर्जा मंत्री नितिन राउत भी शामिल थे।
 
कोलकाता में भी अख़बार डिस्ट्रीब्यूटर्स ने प्रकाशकों को ख़त लिखकर समस्या का हल ढूंढने की कोशिश करने को कहा है और उम्मीद की जा रही है कि हालात बेहतर हो जाएंगे।
 
समाचार समूह सोशल मीडिया पर इशितहार और चिकित्सकों की अख़बार से कोरोना न फैलने को लेकर लेख छापकर जागरुकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
 
हालांकि कोरोना को लेकर लोगों के विचार को जल्दी में बदलना आसान नहीं होगा क्योंकि कोरोना और अख़बार के संबंध को लेकर भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में जुटे लोगों की राय अलग-अलग है।
 
जहां हृदय रोग विशेषज्ञ नरेश त्रेहन मानते हैं कि दोनों में कोई संबंध नहीं है वहीं चिकित्सकों और चिकित्सा से जुड़े पेशे में शामिल लोगों के भारत के सबसे पुराने संगठन इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन की जनरल सक्रेटरी डा। संघमित्रा घोष कहती हैं, बात सिर्फ़ छपाई की नहीं है पूरे डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क में अख़बार के बंडल रखे जाने से लेकर कौन किसके संपर्क में आ रहा है ये कहना मुश्किल है और सावधानी ज़रूरी।
 
डा। संघमित्रा घोष हालांकि कहती हैं कि अख़बार को कुछ समय धूप में रखने से ये ख़तरा दूर हो सकता है। लेकिन शोभित राय सवाल करते हैं कि "ऐसे नाज़ुक वक़्त में क्यों किसी तरह की और संभावना पैदा की जाए' और कहते हैं कि मेरे घर में बूढ़ी मां और छोटी बच्ची है इसलिए मैं किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता।"
 
प्रिंट ऑर्डर और सर्कुलेशन में आई भारी कमी के इस कोरोना-लॉकलाउन पीरियड में पाठकों तक पहुंचने के लिए बिज़नेस स्टैंडर्ड जैसे अख़बार समूहों ने अपने पे-वॉल को हटा कर एक्सिस फ्री कर दिया है
 
भास्कर और कई अन्य ने अपने संसकरण का ख़ास वॉट्सऐप वर्ज़न शुरू किया है जिसे सीधा पाठकों के नंबर पर भेजा जा रहा है। भारतीय अख़बारों के ऑनलाइन कंज़प्शन में पिछले साल पांच फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। हो सकता है कोरोना-संकट साल 1780 में शुरू हुए भारतीय अख़बारों की दुनिया में किसी और नई शुरुआत की दस्तक हो।
 

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