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कोरोना : आपकी थाली से रोटियाँ गायब न हों, इसलिए ये समझना जरूरी है

हमें फॉलो करें कोरोना : आपकी थाली से रोटियाँ गायब न हों, इसलिए ये समझना जरूरी है

BBC Hindi

, सोमवार, 26 अक्टूबर 2020 (18:10 IST)
जेम्स वॉन्ग (बीबीसी संवाददाता)
कोरोना महामारी (Corona epidemic) के दौर से जुड़ी कुछ तस्वीरें ताउम्र याद रहेंगी। जैसे कि खाली सड़कें, बिना दर्शकों के स्टेडियम, दुनिया के बड़े नेताओं से लेकर आम लोगों के मास्क से ढंके चेहरे। हम लोगों में से कई लोगों को दुकानों पर लगने वाली लंबी-लंबी कतारें, आस-पास के लोगों से भी मजबूरन मोबाइल पर बात करना और खाली सुपरमार्केट...जैसी यादें हमेशा डराया करेंगी।
मगर लॉकडाउन के शुरू होते ही दुकानों की शेल्फ का खाली हो जाना कई सवाल भी उठा रहा है। ब्रिटेन में तो पब और स्कूल के बंद होने और मास्क के अनिवार्य किए जाने के पहले ही सुपर मार्केट के शेल्फ खाली हो गए थे। 
कुछ लोगों के घर में जब चावल और पास्ता खत्म हो गए, तब उन्हें स्थिति की गंभीरता का अहसास हुआ। अफ्रीका जैसे देशों की हालत तो और भी बुरी थी। वहाँ के किसानों को बीज मिलने में दिक्कतें हुईं।
 
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो और दक्षिण सूडान की हालत सबसे खराब रही। अमेरिका में कई जानवरों को मार दिया गया क्योंकि उन्हें खाना देना मुमकिन नहीं था। लोगों को दूध नालियों में बहाना पड़ा।
 
इस महामारी ने हमें यह अहसास दिलाया कि हमारी फूड सप्लाई चेन कितनी नाजुक है। लेकिन क्या हमने इससे कुछ सीखा है? क्या भविष्य में हम किसी ऐसी ही स्थिति का सामना करने के लिए बेहतर तैयार होंगे?
 
जानकार मानते हैं कि विकसित देशों में खाने की आपूर्ति की समस्या शुरुआती झटकों के बाद ठीक हो गई, लेकिन विकासशील देशों के सामने एक नई समस्या खड़ी होने लगी क्योंकि उनकी मजदूरों पर निर्भरता बहुत अधिक है।
 
मजदूर फसल की बुआई, कटाई और उसे बाजार तक पहुँचाने में मदद करते हैं। मजदूरों की कमी के कारण प्रोडक्शन लाइन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।
 
बिहार के समस्तीपुर के एक किसान मनुवंत चौधरी का कहना है कि उन्हें शुरू में लॉकडाउन से खासा नुकसान हुआ। उनके प्रवासी मजदूरों को काम के लिए पंजाब से आने का जरिया नहीं मिला।
 
इस दौरान ऐसा समय आया जब उनके छोटे से परिवार के पास 20 एकड़ जमीन पर फसल खड़ी थी, लेकिन उन्हें काटने वाला कोई नहीं था।
 
सिर्फ फसल काटना ही चुनौती नहीं थी, लॉकडाउन के खत्म हो जाने तक अनाज का भंडारण एक बड़ी चुनौती थी। तब न केवल ट्रांसपोर्ट के संसाधन बंद थे बल्कि आटा मिलें भी बंद पड़ी थीं।
 
वो बताते हैं, 'लॉकडाउन के बाद चार दिनों के लिए मार्च के अंत तक मैं स्थानीय मजदूरों की मदद से बाजार में 50 किलोग्राम बैंगन भेजने में कामयाब रहा। लेकिन जैसे ही महामारी के और फैलने की आशंका फैली और उन्होंने आना बंद कर दिया।' चौधरी को प्रवासी मजदूरों को नौकरी देने के लिए दूसरे लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी।
 
मजदूर की जगह लेंगे रोबोट? फूड नेविगेटर मैगजीन के संपादक केटी एस्क्यू के मुताबिक जर्मनी जैसे देशों को भी प्रवासी मजदूरों की कमी से जूझना पड़ा। यूरोपीय कमीशन ने कई कदम उठाते हुए मजदूरों को एक जगह से दूसरी जगह जाने में मदद की। लेकिन ये सभी देश तकनीकी रूप से सक्षम हैं।

इसका मतलब ये कि आने वाले समय में मजदूरों की जगह मशीनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। मुमकिन है कि भविष्य में मशीनों पर निर्भरता बढ़ाई जाएगी। न्यूजीलैंड में कटाई के लिए एक ऑटोमेटिक रोबोट बनाया गया, जो कीवी को बिना किसी इंसानी मदद के तोड़ सकता है।
 
कंपनी के फाउंडर स्टीवन साउंडर्स कहते हैं, 'रोबोट 24 घंटे काम कर सकते हैं, इंसानों से कहीं अधिक और उनसे जरूरत के मुताबिक काम कराया जा सकता है।' उनकी टीम कई और तरह के रोबोट भी बना रही है। वे कहते हैं, 'दिक्कत ये कि हर फसल की कटाई का तरीका अलग होता है।'

कई दूसरे देशों में भी ऐसी ही मशीनों को बनाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। लेकिन मुमकिन है रोबोट का इस्तेमाल पैसे वाले किसान ही कर पाएंगे। एसक्यू के मुताबिक, 'नई तकनीक के साथ दिक्कत ये है कि क्या किसान इनमें निवेश करना चाहेंगे, वो पहले ही बहुत कम मार्जिन पर काम करते हैं।'
मांस के सेक्टर में भी फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करना आसान नहीं होगा। ऐसे प्रोसेसिंग प्लांट में कोविड के मामले अधिक रहे हैं। लगभग 90% फसल की पैदावार जिस देश या महाद्वीप में होती है, वहीं उसकी खपत भी हो जाती है।
 
फूड सप्लाई चेन का अधिकांश भाग 'सही समय पर' पहुंचने की प्रणालियों पर निर्भर करता है। इससे गोदामों की आवश्यकता भी कम होती है। फूड सप्लाई चेन एक ऐसा नेटवर्क है जो कि खाने को बिना देरी के दुकानों तक पहुंचाने में मदद करता है। इससे भोजन को ताजा रखने में मदद मिलती है।
 
शहरी किसानों और स्थानीय उत्पादकों ने लॉकडाउन में अपनी योग्यता साबित की है। कई लोगों ने सप्लाई चेन का उदाहरण देकर ये साबित करने की कोशिश की है कि सिस्टम पूरी तरह से टूट चुका है और हमें 'हाइपर लोकल' खाने (स्थानीय खाने) की ओर ध्यान देना होगा।
 
कुछ इनोवेटर्स इस बात को साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि आप स्थानीय खाने का बड़े स्तर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। भूमिगत खेती एक तरीका है जिससे आप बड़े शहरों में बड़े पैमाने पर खेती कर सकते हैं, बस सही जगह की तलाश करनी होगी। हमें उपलब्ध भूमि का बेहतर उपयोग करना होगा।
 
नई तकनीक की बात करें तो खाने की आपूर्ति की नेटवर्क में उपग्रह अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। अंतरिक्ष से ली गई तस्वीरों की मदद से हम भूमि के पोषक तत्व को माप सकते हैं या नए क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं जहाँ खेती संभव है।
 
कई लोगों पर इस महामारी का बहुत बुरा असर पड़ा है लेकिन कुछ इसमें आशा की एक किरण भी देख रहे हैं। वो मानते हैं कि ये बदलाव का एक दुर्लभ मौका हो सकता है जिसमें हम खाद्य प्रणाली को न केवल अधिक लचीला, बल्कि स्वस्थ और अधिक टिकाऊ बना सकते हैं।
 
उनका मानना है कि महामारी ने हमें बेहतर निर्माण करने का एक वास्तविक अवसर दिया है। फूड चेन के मामले जो चीज मुझे सबसे अधिक निराश करती है, वो है घर से निकलने वाला कचरा। कचरे में फेंके गए खाद्य पदार्थों में से 70% खाया जा सकता था, कुल मिलाकर फूड चेन में सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों का लगभग 40 फीसदी कचरे में चला जाता है।
 
अधिक टिकाउ होने के लिए, हमें अपनी पैदावार की चीजों का अधिक से अधिक उपयोग करने की आवश्यकता है। यह जानते हुए कि दुनिया में हर नौ में से एक व्यक्ति भूखा रह जाता है।
 
अमेरिकी कंपनी एपील ने फलों के छिलकों के गुणों का अध्ययन कर एक बेरंग और बेस्वाद कोटिंग का उत्पादन किया जिसे फल और सब्जी पर लगा कर उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसे बनाने के लिए भी प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
 
चाहे वो रोबोट फ्रूट पिकर हों, अंतरिक्ष विज्ञान पर आधारित मशीनें या भूमिगत खेती, कोविड -19 ने हमें सिखाया है कि जहाँ संकट है वहाँ अवसर भी है। फूड सप्लाई चेन सैंकड़ों सालों से मौजूद हैं, लेकिन आने वाले समय में इसमें कई आधुनिक बदलाव आएंगे।

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