उत्तराखंड में हाथियों और बाघों के बीच क्यों चल रही है जंग

Webdunia
शुक्रवार, 14 जून 2019 (14:30 IST)
- अनंत प्रकाश 
 
उत्तराखंड में स्थित कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में बाघों और हाथियों के बीच संघर्ष में 21 जंगली हाथियों की मौत हुई है। कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व की ओर से कराए गए अध्ययन में ये जानकारी निकल कर सामने आई है।
 
अध्ययन बताता है कि बीते पांच सालों में नौ बाघों और छह तेंदुओं की मौत भी संघर्ष के चलते हुई है लेकिन ये मौतें हाथियों के साथ संघर्ष के चलते नहीं हुई हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जिम कॉर्बेट पार्क में बाघ हाथियों को अपना शिकार क्यों बना रहे हैं।
 
हाथियों पर हमला क्यों कर रहे हैं बाघ?
कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में फ़िलहाल 200 से ज़्यादा बाघ और 1,000 से ज़्यादा हाथी मौजूद हैं। बाघों और हाथियों के बीच संघर्ष की बात करें तो इन दोनों जानवरों के बीच संघर्ष काफ़ी दुर्लभ माना जाता है।
 
लेकिन इस अध्ययन में सामने आया है कि बीते पांच सालों में संघर्ष की वजह से मरे 21 में से 13 हाथियों की मौत के लिए बाघ ज़िम्मेदार थे। इसके साथ ही एक नया पहलू सामने आया है कि मरने वाले हाथियों में से ज़्यादातर की उम्र कम पाई गई।
 
रिपोर्ट बताती है, "इस अध्ययन में एक बेहद ही चौंकाने वाली बात सामने आई है। 21 में 13 हाथियों की मौत बाघों के हमले की वजह से हुई और इनमें से ज़्यादातर हाथियों की उम्र काफ़ी कम पाई गई। इस घटना की एक वजह ये हो सकती है कि बाघों को हाथियों के मारने में दूसरे जानवरों जैसे सांभर, चीतल को मारने से कम मेहनत लगती है और इसके बदले में मांस की मात्रा भी कहीं ज़्यादा होती है। हालांकि, बाघ और हाथियों के बीच संघर्ष से जुड़े इस पहलू पर विस्तार से अध्ययन किए जाने की ज़रूरत है।"
 
इस रिपोर्ट में बाघों के शिकार करने के तरीक़ों में बदलाव आने के संकेत भी मिलते हैं। वहीं, अगर हाथियों की बात करें तो जंगली हाथी अपने बच्चों को लेकर बेहद संवेदनशील माने जाते हैं। ऐसे में शारीरिक क्षमता और आकार के लिहाज़ से बाघ के लिए हाथी के बच्चे का शिकार करना मुश्किल होता है।
 
क्या बदल रहा है बाघों के शिकार का तरीक़ा?
एक सवाल ये उठता है कि इन हाथियों की मौत बाघों के शिकार करने के तरीक़े में बदलाव आने के संकेत हैं। जिम कॉर्बेट पार्क के निदेशक संजीव चतुर्वेदी मानते हैं कि ये निश्चित तौर पर एक नए बदलाव का संकेत है।
चतुर्वेदी कहते हैं, "इस अध्ययन में सामने आया है कि बाघ-हाथी संघर्ष में मरने वाले हाथियों के मृत शरीर में से एक से ज़्यादा बाघों ने मांस खाया। हालांकि, अब तक ये स्पष्ट नहीं हो सका है कि एक ही हाथी का मांस खाने वाले दो बाघों में से दोनों व्यस्क थे या एक व्यस्क और एक शावक था।"
 
"इसके अलावा हाथियों के बीच आपसी संघर्ष में मारे जाने वाले हाथियों के मृत शरीरों में से भी एक से ज़्यादा वयस्क बाघों के मांस खाने की जानकारी प्राप्त हुई है। लेकिन अभी इस मुद्दे पर कुछ भी पुष्ट ढंग से नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि कई बार शिकार करना सीखते हुए दो या तीन शावक एक साथ शिकार करते हैं। ऐसे में ये पता लगाए जाने की ज़रूरत है कि क्या वयस्क बाघ एक साथ शिकार करके खा कर रहे हैं या ये शावकों के शिकार करने के मामले हैं। चतुर्वेदी के मुताबिक़, इस मुद्दे पर किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले गहन अध्ययन किए जाने की ज़रूरत है।
 
क्या है समस्या का निदान?
हालांकि, कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के निदेशक संजीव चतुर्वेदी इस मामले पर विस्तार से अध्ययन किए जाने पर जोर देते हैं। लेकिन वे बाघों के साथ संघर्ष में मरने वाले हाथियों की संख्या को लेकर चिंतित नज़र आते हैं।
 
चतुर्वेदी कहते हैं, "टाइगर कॉर्बेट रिज़र्व में स्थिति बेहद ख़ास है क्योंकि यहां बाघों और हाथियों की संख्या बहुत अच्छी है। कान्हा और रणथंभौर में हाथी बिलकुल नहीं है। वहीं, राजा जी नेशनल पार्क में बाघों की संख्या बेहद सीमित है। जबकि हमारे यहां हुई पिछली गणना में बाघों की संख्या 215 और हाथियों की संख्या 1000 से ज़्यादा थी जिसमें अब बढ़ोतरी हुई है। वन्य जीवों के संरक्षण के लिहाज़ से ये एक अच्छी संख्या है। ये संरक्षण कार्यक्रम की सफलता है।"
 
"लेकिन जब किसी नेशनल पार्क में क्षमता से ज़्यादा जानवर हो जाएं तो इससे निपटने के दो या तीन तरीक़े ही होते हैं। एक तरीक़ा तो नेशनल पार्क के क्षेत्रफल को बढ़ाना होता है। वहीं दूसरा तरीक़ा ये होता है कि आसपास के नेशनल पार्क में उन जानवरों को पहुंचाया जाए जिनकी संख्या हमारे यहां ज़्यादा है और उनके यहां कम है। लेकिन इसके लिए गहन अध्ययन की ज़रूरत होती है। उस नेशनल पार्क के प्रे बेस यानी शिकार के लिए उपलब्ध जानवरों की संख्या आदि को ध्यान में रखा जाअता है। फिलहाल हम राजाजी नेशनल पार्क में हमारे यहां के हाथियों को पहुंचाने के विकल्प पर विचार कर रहे हैं। लेकिन इसका फैसला अध्ययन पूरे होने के बाद ही किया जा सकता है।"
 
उत्तराखंड वन विभाग के लिए हाथियों को जिम कॉर्बट पार्क से ले जाकर राजा जी नेशनल पार्क में शिफ़्ट करना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण अभियान है। लेकिन आने वाले दिनों में होने वाले अध्ययनों में जो जानकारी सामने आएगी वो उत्तराखंड में वन्य जीवों के बीच संघर्ष को लेकर एक नई समझ को विकसित करने में मददगार साबित होगी।
 
क्योंकि उत्तराखंड एक ओर मानव-तेंदुआ संघर्ष की समस्या से जूझ रहा है। वहीं, वन्य जीवों के बीच नए तरह के संघर्ष सामने से राज्य के वन्य जीवन के लिए नई चुनौतियां खड़ी हुई हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

Project Cheetah : प्रोजेक्ट चीता अच्छा काम कर रहा, NTCA ने जारी की रिपोर्ट

No Car Day : इंदौर 22 सितंबर को मनाएगा नो कार डे, प्रशासन ने नागरिकों से की यह अपील

LLB अंतिम वर्ष के छात्र भी दे सकेंगे AIBE की परीक्षा, Supreme Court ने BCI को दिए आदेश

फारूक अब्दुल्ला का PM मोदी पर पलटवार, कहा- वे उन लोगों के साथ खड़े जिन्हें पाक से मिलता है धन

बैठक के दौरान जब CM योगी ने पूछा, कहां हैं पूर्व सांसद लल्लू सिंह?

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

iPhone 16 सीरीज लॉन्च होते ही सस्ते हुए iPhone 15 , जानिए नया आईफोन कितना अपग्रेड, कितनी है कीमत

Apple Event 2024 : 79,900 में iPhone 16 लॉन्च, AI फीचर्स मिलेंगे, एपल ने वॉच 10 सीरीज भी की पेश

iPhone 16 के लॉन्च से पहले हुआ बड़ा खुलासा, Apple के दीवाने भी हैरान

Samsung Galaxy A06 : 10000 से कम कीमत में आया 50MP कैमरा, 5000mAh बैटरी वाला सैमसंग का धांसू फोन

iPhone 16 Launch : Camera से लेकर Battery तक, वह सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

अगला लेख
More