Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

चीन ने पीएम मोदी को लेकर अचानक इतना बड़ा दावा क्यों किया

Advertiesment
हमें फॉलो करें china

BBC Hindi

, गुरुवार, 27 जुलाई 2023 (07:47 IST)
अंशुल सिंह, बीबीसी संवाददाता
पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले समूह जी-20 का शिखर सम्मेलन हुआ था। नवंबर में हुए इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात के अंदाज़ ने सबका ध्यान खींचा था।
 
डिनर का वक़्त था और पीएम मोदी खाने की मेज पर बैठे थे। इस बीच राष्ट्रपति जिनपिंग वहां पहुंचे और मोदी कुर्सी से खड़े होकर जिनपिंग के पास पहुँच जाते हैं। दोनों नेताओं ने गर्मजोशी के साथ एक-दूसरे से हाथ मिलाया और कुछ देर बात भी की थी।
 
साल 2020 में गलवान में एलएसी पर भारतीय-चीनी सैनिकों के बीच हिंसा के बाद दोनों देशों के प्रमुख नेताओं की ये पहली और अभी तक इकलौती मुलाक़ात थी।
 
इस मुलाक़ात का ज़िक्र करने की वजह हाल ही में चीन द्वारा किया गया एक दावा है। चीन ने एक बयान जारी कर दावा किया है कि पिछले साल बाली में दोनों नेताओं की बैठक हुई थी और द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने के लिए 'आम सहमति' बनी थी।
 
कहाँ और क्यों जारी हुआ बयान?
दक्षिण अफ़्रीका के जोहानिसबर्ग में इस साल 22 से 24 अगस्त को ब्रिक्स समिट का आयोजन होना है। समिट से पहले बीते दिनों जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) बैठक हुई थी।
 
इसमें भारत की तरफ़ से बैठक में एनएसए अजित डोभाल और चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग यी ने शामिल हुए थे। इस दौरान अजित डोभाल और वांग यी ने एक द्विपक्षीय मुलाक़ात की थी।
 
मुलाक़ात के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, ''पिछले साल के अंत में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाली में चीन-भारत संबंधों को स्थिर करने के लिए एक महत्वपूर्ण सहमति पर पहुँचे थे। इस दौरान कहा गया था कि दोनों देश द्विपक्षीय संबंधों को सही मायनों में सहमति से लागू करेंगे। दोनों पक्ष हस्तक्षेप को दूर करेंगे, सहमति और सहयोग पर फोकस करेंगे और द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करके विकास के स्थिर रास्ते पर वापस आने को बढ़ावा देंगे।''
 
वहीं भारत की तरफ़ से मुलाक़ात को लेकर जो बयान जारी किया है उसमें मोदी और जिनपिंग की मुलाक़ात का कोई ज़िक्र नहीं है।
 
डोभाल-वांग यी की मुलाक़ात पर विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी कर बताया, ''बैठक के दौरान, एनएसए ने कहा कि साल 2020 से भारत-चीन सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी पर स्थिति ने रणनीतिक विश्वास और रिश्ते के सार्वजनिक और राजनीतिक आधार को ख़त्म कर दिया है। एनएसए ने स्थिति को पूरी तरह से हल करने और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाल करने के लिए निरंतर प्रयासों के महत्व पर ज़ोर दिया, ताकि द्विपक्षीय संबंधों के सामान्य स्थिति में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सके। दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि क्षेत्र और दुनिया के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।''
 
दोनों देशों के बयानों में दो बातें कॉमन हैं। पहला, सीमा पर तनाव कम करना है और दूसरा, द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करना है। लेकिन जिस बात की सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है वो है- बाली में मोदी और जिनपिंग की द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर 'आम सहमति' पर पहुँचना।
 
इसी महीने की 14 तारीख़ को विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने जकार्ता में आसियान देशों की बैठक में वर्तमान विदेश मंत्री वांग यी के साथ मुलाक़ात की थी। तब भी एलएसी का मुद्दा उठा था और दोनों देश इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाने पर सहमत हुए थे।
 
चीन ने अचानक ऐसा दावा क्यों किया?
अगले महीने ब्रिक्स देशों का सम्मेलन होना है और फिर सिंतबर में भारत में जी-20 सम्मेलन होगा। ऐसा में सवाल उठ रहा है कि इन दो बड़े समिट से पहले चीन ने अचानक दोनों देशों की आम सहमति वाले मुद्दे को हवा क्यों दी है?
 
सवाल के जवाब में दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉ. स्वर्ण सिंह का कहना है कि इस तरह की मुलाक़ातों में हमेशा दोनों तरफ़ से अलग-अलग परिभाषाएं दी जाती हैं।
 
डॉ. स्वर्ण सिंह कहते हैं, ''देशों के बीच जितना मतभेद होता है, उतनी ही परिभाषाएं निकलती हैं कि बैठक में क्या हुआ। इसके पीछे एक मंशा भी होती है कि बैठक की किस बात को ज़्यादा तवज्जो देना है और किसे तवज्जो नहीं देना है। चूंकि भारत-चीन के बीच मतभेद काफ़ी गहरे हैं, इसलिए ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है कि बैठक को लेकर दोनों के मत अलग-अलग हैं।''
 
वहीं शिव नादर यूनिवर्सिटी के 'इंटरनेशल रिलेशंस एंड गवर्नेंस स्टडीज़' में एसोसिएट प्रोफे़सर जबिन टी जैकब का मानना है कि चीन के इस दावे को ज़्यादा तवज्जो देने की ज़रूरत नहीं है।
 
जैकब कहते हैं, ''पिछले एक साल से चीन इस नैरेटिव को स्थापित करने में लगा है कि सीमा पर सब कुछ ठीक है। हो सकता है कि जब डिनर के दौरान दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया था तो तब जो बातचीत हुई थी उसमें संबंधों को बेहतर बनाने की बात हुई होगी, जो कि आम है। लेकिन सहमति तो तभी बनेगी जब दोनों देश सीमा पर स्थिरता रखने की कोशिश करेंगे। अगर एक पक्ष की तरफ़ से कोशिश नहीं होगी तो सहमति का मतलब क्या है?''
 
क्या भारत के लिए ये दावा असहज करने वाला है?
चीन के दावे पर भारत ने अभी तक न तो खंडन किया है और न ही इसकी पुष्टि की है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चीन के दावे से भारत असहज स्थिति में पहुंच गया है? प्रोफ़ेसर जैकब का कहना है कि चीन ने चीज़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया है और भारत को इससे ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
 
जैकब कहते हैं, ''जैसा कि भारत के विदेश मंत्री ने कहा है, जब तक चीन बॉर्डर से सेना को पीछे नहीं हटाता है, तब तक एलएसी पर स्थिति सामान्य नहीं होगी। ये सच्चाई है। चीन को इसे स्वीकार करना होगा।''
 
डॉ. स्वर्ण सिंह का मानना है कि ज़रूरी नहीं है कि भारत इस दावे को नकार दे या इसकी पुष्टि करे। वे कहते हैं, ''अगर भारत चीन के दावे को महत्वपूर्ण समझता तो बाली की शिखर वार्ता के बाद ख़ुद ही सहमति वाली बात को औपचारिक रूप से सावर्जनिक कर देता। लेकिन भारत ने तब भी इसे सावर्जनिक नहीं किया और न ही वांग यी की एनएसए डोभाल के साथ बातचीत के बाद इसका ज़िक्र किया।''
 
मतभेदों से इतर इस तरह के दावों में डॉ. सिंह भाषाओं का भी योगदान मानते हैं। डॉ. सिंह कहते हैं, ''पीएम मोदी अक्सर हिंदी में बात करते हैं और चीन के राष्ट्रपति चीनी भाषा में बात करते हैं। तो उसकी व्याख्या के दौरान इस तरह की असमंजस की स्थिति हो जाती है जो आम बात है।''
 
डॉ. स्वर्ण का कहना है कि अगर भारत के विदेश मंत्रालय को लगेगा तो वो इसका ज़रूर खंडन करेंगे।
 
चीन भारत के साथ सब कुछ सही क्यों दिखाना चाहता है?
साल 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प से उपजा तनाव अब भी जारी है। इस तनावपूर्ण माहौल में सवाल उठना लाज़िमी है कि आख़िर चीन दुनिया में भारत के साथ अच्छे संबंध दिखाने में क्यों लगा है?
 
इस सवाल पर प्रोफ़ेसर जैकब कहते हैं, ''चीन अभी काफ़ी दवाब में है। एक तरफ़ अमेरिका का दवाब है, दूसरा आर्थिक मोर्चे पर दवाब है और आंतरिक मसले भी हैं जैसे अभी इन्होंने विदेश मंत्री को बदला है। इसलिए चीन बाक़ी देशों (भारत समेत) के साथ कोई अतिरिक्त तनाव नहीं चाहता है।''
 
''भारत भी मणिपुर, अर्थव्यवस्था और रोजगार को लेकर दवाब में है, इसलिए चीन भी यही चाहता है कि भारत अभी एलएसी के मुद्दे की उपेक्षा करे दे।''
 
डॉ. स्वर्ण सिंह इस मसले पर चीन की दोहरी नीति को ज़िम्मेदार मानते हैं। डॉ. सिंह बताते हैं, ''चीन कहता कुछ है और करता कुछ है। इसे 'ऑर्ट ऑफ़ डिप्लोमैसी' कहते हैं और चीन इसमें माहिर है। चीन जब कोई सूचना पत्र वगैरह जारी करता है तो उसमें एक आदर्श स्थिति लेकर चलता है लेकिन व्यवहारिक रूप से अक्सर उसका व्यवहार एकदम अलग होता है।''
 
भारत को सीधे टकराव से परहेज़ क्यों है?
इस साल की शुरुआत में विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने समाचार एजेंसी एएनआई के साथ बातचीत की थी।
 
इस दौरा चीन के संबंध में पूछे गए सवाल पर जयशंकर ने कहा था, ''चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था है। मेरा मतलब है कि एक छोटी अर्थव्यवस्था के रूप में मैं क्या करने जा रहा हूं? मैं एक बड़ी अर्थव्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने जा रहा हूं। यह प्रतिक्रिया का सवाल नहीं है, ये कॉमन सेंस की बात है।''
 
हालांकि, प्रोफ़ेसर जैकब अमेरिका-चीन का उदाहरण देते हुए जयशंकर के बयान से इत्तेफाक नहीं रखते हैं।
 
जैकब कहते हैं, ''आप देखिए कि चीन की अर्थव्यवस्था भी अमेरिका से छोटी है, मगर फिर भी चीन की अमेरिका से प्रतिद्वंदिता है। सवाल अर्थव्यवस्था का नहीं बल्कि नीति का है। हमारे पास चीन से मुक़ाबला करने के लिए स्पष्ट नीतियां नहीं है। एलएसी में हमारा डर होता है कि हमने एक जगह पर कुछ किया तो पूरे एलएसी पर तनावपूर्ण स्थिति हो सकती है। इसके उलट चीन के अंदर ऐसा डर नहीं है।''
 
प्रोफ़ेसर जैकब का मानना है कि सीमा से जुड़ी समस्या का समाधान सीमा पर ही होना चाहिए।
 
सितंबर में होने वाली जी-20 समिट में चीन अड़ंगा लगा सकता है?
भारत इस साल जी-20 समूह की अध्यक्षता कर रहा है और अब तक जी-20 से जुड़ीं दर्जनों बैठकें हो चुकी हैं।
 
इस दौरान कोई भी प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास नहीं हुआ है। ऐसे में सितंबर में नई दिल्ली में होने वाली जी-20 समिट में चीन का रुख़ भारत समेत पूरी दुनिया के लिए अहम माना जा रहा है।
 
चीन को लेकर डॉ. स्वर्ण सिंह कहते हैं, ''जी-20 दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का सम्मेलन है और चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ऐसे में जी-20 में चीन का नकारात्मक रवैया उसको भी उतना ही परेशान करेगा जितना जी-20 के सदस्य देशों को। पश्चिम देश अक्सर चीन को लेकर नाराज़ रहते हैं तो वैश्विक मंच पर चीन भी नहीं चाहेगा कि वो कुछ ऐसा कहा जिससे उस पर निशाना साधा जाए।''
 
जी-20 और चीन को लेकर प्रोफ़ेसर जैकब का कहना है कि इस तरह की बहुपक्षीय बैठक में चीन समेत हर देश अपना हित आगे रखने की कोशिश करेगा, इसलिए यहां द्विपक्षीय से ज़्यादा बहुपक्षीय संबंधों पर फोकस रखा जाता है।
 
तनाव के बीच बढ़ता व्यापार
साल 2018 और साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक मुलाक़ात वुहान और महाबलीपुरम में हुई थी। इन बैठक में दोनों नेताओं के बीच खुल कर बातचीत हुई लेकिन दोनों देशों ने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया था।
 
पिछले तीन सालों में भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा है और अब इस तरह की अनौपचारिक मुलाक़ातों पर विराम लग गया है। यहां तक की कई बार सीमा पर दोनों देश की सेनाओं के बीच हिंसक झड़पें हुई हैं।
 
बीते साल 9 दिसंबर को सिक्किम में तवांग सेक्टर के यांग्त्से में भारत-चीन सैनिकों के बीच हिंसक झड़प में कुछ भारतीय सैनिक चोटिल हो गए थे। इससे पहले गलवान घाटी में झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी।
 
सीमा पर तनाव के बीच भारत और चीन के बीच व्यापार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। चीन के कस्टम विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक़, साल 2022 में दोनों देशों के बीच व्यापार 135।98 अरब डॉलर पहुंच गया था।
 
ये साल 2021 के मुकाबले 8।4 फ़ीसद की वृद्धि है। 2021 में दोनों देशों के बीच व्यापार का आंकड़ा 125।62 अरब डॉलर था।
 
2022 में चीनी सामान के निर्यात में 21।7% की वृद्धि हुई है और यह 118।5 अरब डॉलर हो गया है। जबकि निर्यात में 37।9 प्रतिशत की भारी गिरावट के साथ यह राशि 17।48 अरब डॉलर तक जा पहुंची है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भरोसा नहीं होता! जर्मनी में तेजी से बढ़ रही है घरेलू हिंसा