आलोक प्रकाश पुतुल, रायपुर से, बीबीसी हिंदी के लिए
छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों पर होने वाले चुनाव का प्रचार हर दिन के साथ तेज़ होता जा रहा है। 20 सीटों पर 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे जहां रविवार शाम प्रचार बंद हो गया। राज्य की बाकी 70 सीटों पर 17 नवंबर को वोट डाले जाएंगे।
कांग्रेस, भाजपा, बसपा, आप, सीपीआई, सीपीएम के अलावा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी, हमर राज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी जैसे राजनीतिक दलों के व्हाट्सऐप संदेश और कॉल घर-घर पहुंच रहे हैं।
कुछ इलाकों में उम्मीदवार और उनके कार्यकर्ता भी सक्रिय हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का लगातार दौरा हो रहा है। वहीं भाजपा की ओर से हर दिन केंद्र सरकार के मंत्री और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
राज्य की दोनों ही प्रमुख पार्टियों, कांग्रेस और भाजपा ने नए चेहरों पर कहीं अधिक भरोसा जताया है। भाजपा ने 40 से अधिक सीटों पर नये प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, वहीं कांग्रेस की ओर से 30 से अधिक नए उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।
लेकिन कई सीटों पर पुराने और चर्चित चेहरों का कामकाज और साख भी दांव पर है। राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का मुकाबला कांग्रेस से पहली बार चुनाव लड़ रहे गिरीश देवांगन से है, तो राज्य के उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव से मुकाबला करने के लिए भाजपा ने अपने नए चेहरे राजेश अग्रवाल को मैदान में उतारा है। आठ बार के कांग्रेस विधायक रामपुकार सिंह फिर से पत्थलगांव विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं।
भरतपुर सोनहत से केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह इस बार कांग्रेस विधायक गुलाब कमरो के ख़िलाफ़ खड़ी हैं तो कोंटा से मंत्री कवासी लखमा का मुकाबला सीपीआई के मनीष कुंजाम और भाजपा के सोम मोका से है। विधानसभा के अध्यक्ष चरणदास महंत सक्ति से मैदान में हैं तो छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की विधायक रेणु जोगी कोटा से चुनाव लड़ रही हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद दीपक बैज चित्रकोट से मैदान में हैं, वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद अरुण साव, लोरमी से चुनाव लड़ रहे हैं।
फ़िल्म अभिनेता अनुज शर्मा धरसींवा से, घर वापसी अभियान के नेता प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कोटा से, शैलेष नितिन त्रिवेदी बलौदा बाजार से, कोमल हुपेंडी भानुप्रपातपुर से, सरदार जसबीर सिंह बिल्हा से मैदान में हैं। चुनाव मैदान में ऐसे कई नाम हैं, जिन पर लोगों की निगाह लगी हुई है।
लेकिन राज्य में कुछ सीटें ऐसी हैं, जो अलग-अलग कारणों से चर्चा में है। इनमें से पाँच प्रमुख सीटों पर क्यों हैं सबसे ज़्यादा नज़रें, पढ़िए
कवर्धा
पिछले चुनाव में कवर्धा विधानसभा से कांग्रेस पार्टी के मोहम्मद अकबर ने राज्य में सर्वाधिक अंतर से चुनाव जीत कर रिकार्ड बनाया था। कांग्रेस के मोहम्मद अक़बर को 1,36,320 वोट मिले थे, जबकि भाजपा उम्मीदवार अशोक साहू को 77,036 वोटों से संतोष करना पड़ा था। 59,284 वोटों के अंतर से चुनाव जीतने वाले मोहम्मद अक़बर को भूपेश बघेल की सरकार में वन, पर्यावरण, परिवहन, खाद्य, नागरिक आपूर्ति व आवास मंत्री और सरकार का प्रवक्ता भी बनाया गया।
तथ्यों व आंकड़ों के मामले में तेज़तर्रार और बेहद विनम्र समझे जाने वाले 67 साल के मोहम्मद अक़बर ने छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। वे पहली बार 1998 में विधायक बने। छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद वे राज्यमंत्री बनाए गए। 2003 और 2008 में भी वे विधायक बने। लेकिन 2013 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही कवर्धा में सांप्रदायिक तनाव का सिलसिला बढ़ता चला गया। अक्टूबर 2021 में धार्मिक झंडा फहराने को लेकर फैले सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसक घटनाओं को देखते हुए कर्फ़्यू लगाना पड़ा और ज़िले में इंटरनेट की सेवाएं बंद करनी पड़ी और ज़िले की सीमाओं को भी सील करना पड़ा। उसके बाद हिंदू संगठनों ने बड़ा आयोजन किया और 120 फीट ऊंचा भगवा झंडा फहराया। हिंदू संगठनों का विरोध करने वाली कांग्रेस पार्टी ने भी इस आयोजन का समर्थन करते हुए पूरे-पूरे पन्ने के विज्ञापन छपवाए।
कवर्धा में फैले सांप्रदायिक तनाव के मामले में सरकार ने कई भाजपा नेताओं को जेल भेजा था। अब उन्हीं में से एक, भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय शर्मा को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है। विजय शर्मा ज़िला पंचायत के सदस्य रह चुके हैं। कभी भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके विजय शर्मा कवर्धा में हिंदुत्व का बड़ा चेहरा हैं। जो ज़िला पंचायत के सदस्य रह चुके हैं।
राज्य में एक मात्र मुस्लिम विधायक मोहम्मद अक़बर के पास अपनी सरकार के विकास के आंकड़े हैं तो विजय शर्मा के पास सांप्रदायिकता, तुष्टिकरण, हिंदुत्व जैसे मुद्दे। भाजपा की ओर से बड़ी संख्या में साधु-संत भी विजय शर्मा के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं। हालांकि इस इलाके में मुस्लिम मतदाता किसी निर्णायक संख्या में नहीं हैं लेकिन मोहम्मद अक़बर दावा कर रहे हैं कि पिछली बार की तरह ही, छत्तीसगढ़ में रिकार्ड बनेगा।
साजा
कवर्धा से सटी हुई बेमेतरा ज़िले की साजा विधानसभा में इस साल सांप्रदायिक हिंसा में एक हिंदू और दो मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी।
जिस बीरनपुर गांव में यह हिंसा हुई थी, उस गांव में मारे गए 22 साल के भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को भाजपा ने टिकट दे कर सबको चौंका दिया। बेहद ग़रीब परिवार के ईश्वर साहू बड़ी मुश्किल से मज़दूरी करके जीवन यापन करते रहे हैं। भाजपा के पास उन्हें टिकट देने के पक्ष में एकमात्र तर्क यही है कि उनके बेटे की सांप्रदायिक हिंसा में मौत हुई है।
साहू बहुल छत्तीसगढ़ की इस विधानसभा के चुनाव प्रचार में भी भाजपा सांप्रदायिकता को ही मुद्दा बना रही है। इसके लिए बीरनपुर की हिंसा के अलावा कथित लव ज़िहाद और पड़ोसी ज़िले के सांप्रदायिक तनाव को गिनाया जा रहा है।
दूसरी ओर चुनाव मैदान में राज्य के कद्दावर मंत्री और सरकार के प्रवक्ता रवींद्र चौबे हैं, जो साजा सीट से विधायक हैं। छात्र नेता और सरपंच रह चुके रवींद्र चौबे, 1985 में पहली बार विधायक बने थे। अविभाजित मध्यप्रदेश और फिर छत्तीसगढ़ में कई विभागों के मंत्री, नेता प्रतिपक्ष रह चुके रवींद्र चौबे 28 सालों तक विधायक रहे और 2013 में पहली बार उन्हें 9620 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि अगले ही चुनाव में 2018 में उन्होंने फिर से 31,535 वोटों के अंतर से जीत हासिल की।
पाटन
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का चुनाव क्षेत्र होने के कारण पाटन पर सबकी नज़रें लगी हुई हैं।
अविभाजित मध्यप्रदेश में पहली बार 1993 में चुनाव जीतने वाले भूपेश बघेल को अपने दूसरे ही कार्यकाल यानी 1998 में मंत्री बनाया गया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भी उन्हें अजीत जोगी के मंत्रीमंडल में जगह मिली। राज्य बनने के बाद हुए पहले चुनाव में तो वे जीत गए, लेकिन 2008 के चुनाव में उन्हें 7,842 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि 2013 के बाद उन्होंने फिर जीत हासिल की और 2018 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनाए गए।
2008 के चुनाव में भूपेश बघेल को जिस प्रत्याशी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था, उसी प्रत्याशी विजय बघेल को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा है।
विजय बघेल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह ज़िले से सांसद हैं और रिश्ते में भूपेश बघेल के भतीजे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह ज़िले में कांग्रेस उम्मीदवार को तीन लाख से भी अधिक वोटों से हरा कर सांसद बनने वाले विजय बघेल, ताज़ा चुनाव में भी इस कुर्मी बहुल इलाके में आक्रमक अंदाज़ में चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
इन दोनों के अलावा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी के मुखिया अमित जोगी भी इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य के पहले मुख्यमंत्री दिवंगत अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी पहले भी विधायक रह चुके हैं। पाटन में सतनामी समाज के वोट निर्णायक संख्या में हैं और राज्य भर में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी को सतनामी समाज के वोटरों का समर्थन मिलता रहा है।
भूपेश बघेल अब राज्य का एक बड़ा चेहरा बन चुके हैं लेकिन 2008 के चुनाव की हार की कहानी, उनसे चिपकी हुई है। ऊपर से अमित जोगी की उपस्थिति के कारण कांग्रेस पार्टी को इस विधानसभा में अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है।
कोंटा
अविभाजित मध्यप्रदेश में दो बार के विधायक और सीपीआई नेता मनीष कुंजाम, इस सीट से राज्य के एक और चर्चित मंत्री कवासी लखमा के ख़िलाफ़ दमदारी से चुनाव मैदान में हैं।
छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित सुकमा ज़िले की कोंटा विधानसभा के विधायक और मंत्री कवासी लखमा पढ़े-लिखे नहीं हैं और विधानसभा में उनसे पूछे जाने वाले सवालों का जवाब भी, किसी और मंत्री को देना पड़ता है, लेकिन 1998 से लगातार जीत के कारण कवासी लखमा की अपनी खास पहचान है। अपने विवादास्पद बयानों के लिए चर्चित कवासी लखमा का इस बार इलाके में विरोध बढ़ा है।
दूसरी ओर मनीष कुंजाम की स्थिति भी मज़बूत हुई है। लेकिन उनकी पार्टी सीपीआई ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज़ा छिन जाने के बाद, औपचारिकताएं पूरी नहीं की, इसलिए सीपीआई का हंसिया-धान की बाली चुनाव चिन्ह मनीष कुंजाम को नहीं मिल पाया है।
हंसिया-धान की बाली की जगह मनीष कुंजाम को ऐन समय में एयर कंडिशनर चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है। इस धुर आदिवासी बहुल कोंटा में अधिकांश लोगों को एयर कंडिशनर का अता-पता नहीं है। ऐसे में इस चुनाव चिह्ल को मतदाताओं तक पहुंचा पाना मनीष कुंजाम के लिए बड़ी चुनौती होगी।
इसके अलावा मनीष कुंजाम का आरोप है कि उनके प्रभाव वाले गांवों के मतदान केंद्र को कई किलोमीटर दूर, दूसरे इलाके में शिफ़्ट कर दिया गया है।
पत्थलगांव
आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित पत्थलगांव से कांग्रेस पार्टी के 86 साल के उम्मीदवार ठाकुर रामपुकार सिंह क्या नौंवी बार भी विधायक बनेंगे? यह सवाल आसपास के इलाके में चर्चा में है।
1977 में पहली बार विधायक बने आदिवासी समुदाय के ठाकुर रामपुकार सिंह 1980, 1985, 1993, 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक निर्वाचित हुए थे।
छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद उन्हें मंत्री बनाया गया। 2003 और 2008 में भी वे विधायक बने। लेकिन 2013 में उन्हें पहली बार 3909 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि 2018 में उन्होंने फिर से जीत हासिल की। वे प्रोटेम स्पीकर भी रहे।
इस बार चुनाव में भाजपा ने उनसे मुकाबले के लिए रायगढ़ लोकसभा की सांसद गोमती साय को चुनाव मैदान में उतारा है। 41 साल तक विधायक रह चुके ठाकुर रामपुकार सिंह को, 45 साल की गोमती साय कितनी चुनौती दे पाएंगी, इसका पता 3 दिसंबर को चलेगा, जब चुनाव के परिणाम सामने आएंगे।