आलोक प्रकाश पुतुल, रायपुर से बीबीसी हिंदी के लिए
बिलासपुर ज़िले के कड़ार गाँव के 54 साल के भरत कश्यप के घर पर इस बात का नोटिस चस्पाँ है कि वे और उनके परिवार के सदस्य कोरोना से संक्रमित हैं। कोरोना के लक्षण के बाद उन्होंने इसी महीने की चार तारीख़ को और उनके परिवार के तीन अन्य सदस्यों ने सात मई को स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में जांच कराई थी, जहां उन सबकी कोरोना रिपोर्ट पॉज़िटिव आई।
लेकिन बिलासपुर ज़िले में हर दिन की कोरोना संक्रमितों की जो सूची है, उसमें इस परिवार के किसी सदस्य का नाम नहीं है। कड़ार गाँव में ऐसे कई परिवार हैं, जिनकी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में जाँच हुई और वे पॉज़िटिव आए, उन्हें स्वास्थ्य केंद्र से दवा दी गई, उनके घर के सामने कोरोना संक्रमित होने की सूचना चस्पाँ की गई और उनका नाम ज़िले के कोरोना संक्रमितों की सूची में नहीं है।
इलाके के विधायक और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक कहते हैं, "सरकार जाँच के आँकड़े छुपा रही है। गाँवों में जो टेस्टिंग होनी चाहिए, वह नहीं की जा रही है। कई गाँवों में लोग संक्रमित हो रहे हैं। सरकार कम जाँच करके ख़ुश है कि कोरोना संक्रमण के आँकड़े कम हो रहे हैं। लेकिन यह जान के साथ खेलने की तरह है।"
राज्य सरकार सरकार का दावा है कि लगभग महीने भर से राज्य के अधिकांश हिस्सों में जारी लॉकडाउन के दौरान बड़े शहरों में तो कोरोना के मामलों में कमी आई है लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में कोरोना के मरीज़ बढ़ते जा रहे हैं।
राज्य में रविवार की सुबह तक सर्वाधिक 1086 कोरोना संक्रमितों की पहचान रायगढ़ ज़िले में की गई है। वहीं 1021 नए मरीज़ जांजगीर-चांपा ज़िले में मिले है। तीसरे क्रम में बलौदा बाज़ार ज़िला है, जहाँ 728 कोरोना संक्रमितों की पहचान की गई है।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कहते हैं, "राज्य में लॉकडाउन जैसी व्यवस्था और जन सहयोग के कारण संक्रमण दर में कमी आई है। लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है। हमारी कोशिश है कि ग्रामीण इलाक़ों में भी इस संक्रमण को रोका जाए।"
नए क्षेत्रों में कोरोना की मार
असल में अप्रैल महीने तक रायपुर, दुर्ग और महाराष्ट्र की सीमा से लगा राजनांदगांव ज़िला कोरोना संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित था। अभी भी कोरोना संक्रमितों के अब तक के सर्वाधिक दर्ज मामले रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव और बिलासपुर ज़िलों के ही हैं। लेकिन अब जांजगीर-चांपा और रायगढ़ जैसे ज़िलों ने इन बड़े शहरों को पीछे छोड़ दिया है।
रविवार की सुबह तक राज्य भर में सक्रिय 1,30,859 मामलों में से सर्वाधिक 11,766 मामले रायगढ़ ज़िले में हैं। इसके बाद राज्य में सर्वाधिक आबादी वाला रायपुर है, जहाँ आज की तारीख़ में 10,695 कोरोना के सक्रिय मामले हैं। रायपुर की तुलना में थोड़े ही कम, 10,565 कोरोना के सक्रिय मरीज़ जांजगीर-चांपा में हैं।
हालत ये है कि अपने अलग-थलग जीवन के लिए चर्चित, विशेष संरक्षित आदिम जनजाति समूह के पहाड़ी कोरवा आदिवासियों में भी कोरोना संक्रमण के मामले सामने आने लगे हैं।
रविवार को अंबिकापुर से लगे हुए पहाड़ के एक गांव में ऐसे चार पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की पहचान की गई।
छत्तीसगढ़ में पिछले साल मई में कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया था। इसके बाद सितंबर आते-आते राज्य में कोरोना के मामले तेज़ी से कम होते चले गये थे।
ग्रामीण इलाक़ों में संक्रमण
इस साल मार्च में फिर से कोरोना की रफ़्तार तेज़ हुई। शुरुआती दौर में शहरी इलाक़ों में ही कोरोना का प्रकोप सामने आया। रायपुर और दुर्ग जैसे इलाक़े इससे सबसे प्रभावित हुए। अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक हालात ऐसे ही बने रहे।
लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे कोरोना संक्रमण का विस्तार ग्रामीण इलाक़ों में होता चला गया। आँकड़ों में यह संख्या अभी भी भले कम नज़र आ रही है लेकिन इसकी रफ़्तार चिंता में डालने वाली है।
पिछले साल लॉकडाउन के दौरान लगभग सात लाख प्रवासी मज़दूर छत्तीसगढ़ लौटे थे। उस समय उन्हें क्वारंटीन किया गया था और उनकी जाँच की भी व्यवस्था की गई थी। लेकिन इस बार जब लॉकडाउन के हालात बने तो राज्य में वापसी करने वालों की जाँच या क्वारंटीन की कहीं कोई व्यवस्था नहीं थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि गाँवों में कोरोना फैलने के पीछे यह सबसे बड़ा कारण रहा। इसके अलावा शहरों के आसपास बसे क़स्बे और गाँव भी कोरोना के वाहक बने।
ग्रामीण इलाक़े में 300 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी
छत्तीसगढ़ में 9 अप्रैल से 8 मई तक के आँकड़ों को देखें तो पता चलता है कि इस दौरान गौरेला-पेंड्रा-मरवाही ज़िले में कोरोना के मामलों में सर्वाधिक 315.08 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। पड़ोसी ज़िला मुंगेली में कोरोना 263.63 फ़ीसदी बढ़ा।
इसी तरह आदिवासी बहुल जशपुर में कोरोना बढ़कर 200.40 फ़ीसदी तक पहुँच गया। बलरामपुर ज़िले में कोरोना की रफ़्तार 185.10 फ़ीसदी और गरियाबंद ज़िले में यह 178.89 फ़ीसदी तक पहुंच गई। इस दौरान सर्वाधिक शहरी आबादी वाले रायपुर में कोरोना की बढ़ोत्तरी 75.75 फ़ीसदी और दुर्ग में 77.95 फ़ीसदी रही।
बदतर होते गाँव के हालात
कांकेर के सामाजिक कार्यकर्ता अनुभव सोरी का कहना है कि अब गाँवों में कोरोना बेकाबू हो रहा है। जंगल के भीतर बसे गाँवों से जो ख़बरें आ रही हैं, उसके अनुसार गाँव के गाँव कोरोना संक्रमित हो रहे हैं और लोगों की हालत गंभीर हो रही है।
माओवाद प्रभावित आदिवासी बहुल बस्तर के सात ज़िलों में से कांकेर सर्वाधिक प्रभावित ज़िला है और यहाँ कोरोना के अब तक 19,211 मामले सामने आ चुके हैं और 159 लोगों की कोरोना से मौत भी हुई है।
अनुभव सोरी कहते हैं, "ग्रामीण इलाक़ों में कोरोना को लेकर जागरूकता का अभाव है। कोरोना संक्रमित मरीज़ इस बात को लेकर भयभीत रहते हैं कि कोरोना संक्रमित के तौर पर पहचान होने के बाद गाँव में उन्हें इसके लिए ज़िम्मेदार मान लिया जाएगा। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग जाँच से बच रहे हैं और जब तक संभव हो, अस्पताल जाने से भी बच रहे हैं।"
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि घने जंगलों के बीच बसे गाँवों में न तो इलाज की व्यवस्था है और ना ही जाँच की। यही कारण है कि राज्य सरकार ने गाँवों में केवल लक्षण के आधार पर, बिना किसी जाँच के ही लोगों को कोरोना की दवा पहुँचाने के निर्देश जारी कर दिए हैं।
गरियाबंद ज़िले के सामाजिक कार्यकर्ता बेनीपुरी गोस्वामी कहते हैं, "उदंती-सीतानदी अभयारण्य से लगे हुए तौरेंगा पंचायत में एक दिन की जाँच में ही लगभग 90 लोग कोरोना से संक्रमित पाए गए। ग्रामीण इलाक़ों में बहुत से लोग भी कोरोना को इसलिए छुपा रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बीमारी की ख़बर होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कर दिया जाएगा या उन्हें क्वारंटीन कर दिया जाएगा।"
सुविधाओं का अभाव
छत्तीसगढ़ में अभी तक कोरोना से 10,381 लोगों की मौत हुई है। लेकिन सर्वाधिक गाँव की आबादी वाले ज़िलों में पिछले महीने भर में दर्ज मामलों की रफ़्तार चौंकाने वाली है।
जशपुर ज़िले में 9 अप्रैल तक केवल 45 लोगों की मौत कोरोना से हुई थी। लेकिन 8 मई को यह आँकड़ा 122 पर पहुँच गया। लगभग यही हाल बलरामपुर, मुंगेली और बिलासपुर ज़िलों का भी है।
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही ज़िले में मौत की संख्या 9 अप्रैल को केवल 10 थी। 8 मई को कोरोना से होने वाली मौत का आँकड़ा 64 पर जा पहुँचा। पिछले महीने भर में यह 540 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी है।
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही ज़िले के मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर देवेंद्र सिंह पैंकरा का कहना है कि ज़िले में 400 बिस्तरों के दो कोविड सेंटर हैं, जिसमें 80 बिस्तरों पर ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध है लेकिन अधिकांश बिस्तर खाली हैं।
उनका मानना है कि शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में लोगों की भागीदारी ने कोरोना को तेज़ी से बढ़ाया। जैसे अंजनी गाँव में प्रतिबंध के बाद भी बड़ी संख्या में लोगों को बुलाकर शादी का भोज आयोजित किया गया और बाद में जाँच में शामिल हुए 69 लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए गए।
डॉक्टर देवेंद्र सिंह पैंकरा कहते हैं, "संकट ये है कि गाँवों में जाँच, इलाज और टीकाकरण का भारी विरोध हो रहा है। लोग बीमार हैं, फिर भी जाँच नहीं कराना चाहते। जब बात एकदम बिगड़ जाती है तो वे अस्पताल तक पहुँच रहे हैं लेकिन तब बहुत कम विकल्प बचते हैं।"
डॉक्टर पैंकरा मानते हैं कि उनके ज़िले में वेंटिलेटर की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा कोरोना के लिए ज़रूरी दूसरी दवा और इंजेक्शन भी उपलब्ध नहीं हैं। यही कारण है कि गंभीर रूप से संक्रमितों को पड़ोसी ज़िले बिलासपुर या रायपुर भेजना पड़ता है।
कमी सिर्फ़ वेंटिलेटर, ऑक्सीजन और दवाओं भर की ही नहीं है, राज्य के अधिकांश ज़िलों में इलाज करने वाले चिकित्सक और दूसरे मेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी है।
विशेषज्ञ चिकित्सक के अधिकांश पद ख़ाली
राज्य भर के आँकड़े देखें तो छत्तीसगढ़ में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 1596 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 1359 पद ख़ाली हैं। स्टाफ नर्स के 5329 स्वीकृत पदों में से 1895 ख़ाली हैं। इसी तरह टेक्निशियन के 1436 में से 989 पद ख़ाली हैं। कई ज़िलों का हाल बहुत बुरा है।
आदिवासी बहुल सुकमा ज़िले में विशेषज्ञ चिकित्सक के 28 पद स्वीकृत हैं लेकिन यहाँ एक भी चिकित्सक नहीं है। पूरे ज़िले में स्टाफ नर्स के 86 पद हैं, जिनमें 40 पद ख़ाली हैं। टेक्नीशियन के 30 में से 24 पद ख़ाली हैं।
जगदलपुर के चिकित्सा महाविद्यालय और चिकित्सालय में विशेषज्ञ चिकित्सक के आठ पद हैं, जिनमें सभी के सभी ख़ाली हैं। स्टॉफ नर्स के 279 स्वीकृत पद में से 116 ख़ाली हैं। टेक्निशियन के 19 स्वीकृत पदों में से 13 ख़ाली हैं।
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव मानते हैं कि राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर किए जाने की ज़रूरत है लेकिन उनका तर्क है कि राज्य में 15 सालों तक भाजपा की सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी हुई है, उससे दोगुनी से अधिक स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार पिछले सवा दो सालों में हुआ है, जब से राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार आई है।
सुविधाओं पर सियासत
टीएस सिंहदेव का कहना है कि ग्रामीण इलाक़ों में भी स्वास्थ्य विभाग का अमला दिन-रात जुटा हुआ है। टीएस सिंहदेव ने बीबीसी से कहा, "15 साल में आईसीयू बेड की संख्या 279 थी। हमारी सरकार आने के बाद यह संख्या 729 तक जा पहुंची। 464 कोविड आईसीयू बनाये गये। राज्य में एक भी एचडीयू बेड नहीं थे। आज 477 एचडीयू बेड हैं।"
"449 कोविड एचडीयू बेड की सुविधा उपलब्ध कराई गई। इसी तरह ऑक्सीजन युक्त बेड 1242 थे। दो सालों में 7042 ऑक्सीजन बेड और 5000 से अधिक कोविड ऑक्सीजन बेड की सुविधा आज उपलब्ध है। राज्य में 15 सालों में204 वेंटिलेटर बेड थे। आज यह संख्या 593 है।"
हालाँकि विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के नेता इन आँकड़ों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव कहते हैं, "यह वक़्त इस बात का नहीं है कि हमारी सरकार ने 15 साल में क्या किया और अब कांग्रेस ने उसमें कितनी बढ़ोत्तरी की है। यह चुनाव प्रचार के समय देखा जाएगा। अभी तो ज़रूरत इस बात की है कि गाँव-गाँव में कोरोना का संक्रमण जैसे फैल रहा है, उससे लोगों की जान कैसे बचाई जाए।"
बिलासपुर की सामाजिक कार्यकर्ता और हाईकोर्ट की अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला एक और समस्या की ओर इशारा करती हैं। वो कहती हैं, "कोरोना में लगातार लॉकडाउन या बीमारी से जूझते परिवार अब भूख से भी जूझ रहे हैं। राहुल गांधी ने ग़रीबों को आर्थिक पैकेज देने का सुझाव केंद्र को दिया है। केंद्र सरकार का तो नहीं पता लेकिन राज्य की कांग्रेस पार्टी की सरकार को तो अपने नेता की मांग को पूरा करना ही चाहिए।"