रॉक्सी गागडेकर छारा, बीबीसी न्यूज़ गुजराती, अहमदाबाद
राजधानी एक्सप्रेस से लेकर वंदे भारत और बुलेट ट्रेन तक, भारतीय रेलवे अपने बेड़े में अधिक से अधिक सेमी हाई स्पीड और हाई स्पीड ट्रेनें शामिल कर कायाकल्प करने की कोशिश में है। दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश रेलवे नेटवर्क एक लाइफ़ लाइन है।
अब भारतीय रेलवे नई और तेज़ रफ़्तार ट्रेनों को शामिल कर भारतीयों को भरोसा दिलाना चाहता है कि औपनिवेशिक काल से चले आ रहे इस यातायात सिस्टम में अब एक नए युग की शुरुआत हो चुकी है। हालांकि पिछले हफ़्ते ओडिशा में हुए भीषण रेल हादसे ने रेलवे की सुरक्षा से जुड़ी बुरी यादों को ताज़ा कर दिया है।
कुछ जानकार ये सवाल पूछ रहे हैं कि इस तरह के हादसों के बीच भारतीय रेलवे तेज़ रफ़्तार ट्रेनों के अपने लक्ष्य को कैसे हासिल करेगा? और क्या देश रेलवे पटरियों पर तेज़ रफ़्तार से दौड़ने के लिए तैयार है?
भारत के पास सेमी हाई स्पीड श्रेणी की कई ट्रेनें हैं, जैसे वंदे भारत और गतिमान एक्सप्रेस। इसके अलावा राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस, दुरंतो, तेजस, गरीब रथ और सुविधा एक्सप्रेस तो हैं ही।
इस समय कुल 22 वंदे भारत ट्रेनें हैं, जिनकी रफ़्तार 160 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है, हालांकि इनकी स्वीकृत रफ़्तार 130 किलोमीटर प्रति घंटे ही है। अभी इन ट्रेनों को अपनी स्वीकृत रफ़्तार तक पहुंचना ही बाकी है।
भारतीय रेलवे के विज़न के अनुसार, आने वाले सालों में वंदे भारत जैसी सेमी हाई स्पीड ट्रेनें और अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन जैसी हाई स्पीड ट्रेनें आने वाली हैं।
कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि भारत को इन ट्रेनों को लांच करने से पहले, इनके लायक आधारभूत ढांचे विकसित करने पर पहले ध्यान देना चाहिए।
फ़ास्ट ट्रेनें कितनी फ़ास्ट?
सुधांशु मणि रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी हैं। वे इंडियन कोच फ़ैक्ट्री के जनरल मैनेजर थे, उनके ही कार्यकाल में ट्रेन-18 का डिज़ाइन बनाया गया था, जिसे बाद में वंदे भारत नाम दिया गया था। वे कहते हैं, “नई ट्रेनें जैसे सेमी हाई स्पीड ट्रेनें लाने से पहले सिग्नलिंग सिस्टम पर और काम किया जाना ज़रूरी है।”
सुधांशु मणि ने बीबीसी से कहा, “पीएम मोदी ने बनारस से जो पहली वंदे भारत ट्रेन का उद्घाटन किया था उसकी रफ़्तार 96 किलोमीटर प्रति घंटे थी। ये सच है कि इन ट्रेनों की औसत रफ़्तार कम है।”
उनके मुताबिक़, “जब तक ट्रैक को अपग्रेड नहीं किया जाएगा, रफ़्तार हासिल करना मुश्किल है। अगर हम ट्रैक पर रफ़्तार चाहते हैं तो ट्रैक अपग्रेड के साथ कवच जैसा फुलप्रूफ़ सिस्टम वक़्त की ज़रूरत है।”
सुधांशु मणि समझाते हैं, “मौजूदा ट्रैक और बाकी ढांचे 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार के लायक हैं लेकिन ये सेमी हाई स्पीड ट्रेनों के लिए पर्याप्त नहीं है।”
2023-24 के आम बजट के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 7000 किलोमीटर नए ट्रैक बिछाने की घोषणा की थी और कहा था कि उससे पहले के वित्त वर्ष में 4500 किलोमीटर का लक्ष्य हासिल कर लिया गया था। अप्रैल 2023 तक 22 वंदे भारत ट्रेनें सेवा में हैं, जिनमें एक भी स्वीकृत रफ़्तार तक नहीं पहुंच सकी है।
मध्य प्रदेश के एक आरटीआई एक्टिविस्ट चंद्र शेखर गौड़ को दिए एक जवाब में भारतीय रेलवे ने कहा था कि 2021-22 में वंदे भारत की औसत रफ़्तार 84.48 और 2022-23 में 81.38 किलोमीटर प्रति घंटे थी।
गौड़ कहते हैं, “तेज़ रफ़्तार ट्रेनों के बारे में बहुत बातें हुईं लेकिन ये रफ़्तार नहीं पकड़ सकीं। यहां तक कि समय से चलने के मामले में भी ये असंतोषजनक हैं।”
सेमी हाई स्पीड ट्रेनों की सुरक्षा
सुधांशु मणि का कहना है कि सेमी हाई स्पीड ट्रेनों के लिए कवच जैसे सिस्टम की निहायत ज़रूरत है। साथ ही आवंटित फंड का सही से इस्तेमाल होना चाहिए।
जबकि रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी महेश मंगल का कहना है कि कवच जैसा सिस्टम तभी प्रभावी होगा जब ये सभी रूटों पर लगाया जाए। एक दो रूट पर लगाने से काम नहीं चलेगा।
रेल मंत्रालय से जुड़े आरडीएसओ (रिसर्च, डिज़ाइन एंड स्टैंडर्ड आर्गेनाइजेशन) ने कवच सिस्टम विकसित किया है।
यह सिस्टम एक ही पटरी पर आ गई दो ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए लोको पायलट को अलर्ट करता है। अगर लोको पायलट की ओर से कोई निर्देश नहीं मिले तो यह सिस्टम अपने आप ब्रेक लगा देता है। साथ ही यह इंजन स्टार्ट होने के समय सभी तकनीकी पक्षों की ऑटोमेटिक जांच करता है।
मणि कहते हैं कि यह स्वदेशी प्रणाली है और बहुत महंगी नहीं है। वर्तमान में यह देश के विशाल ट्रेन रूटों के एक छोटे से हिस्से पर कार्यरत है। इसे सेमी हाई स्पीड वाले रूटों पर लगाना प्राथमिकता होनी चाहिए।
महेश मंगल आरडीएसओ में जनरल मैनेजर थे जब कवच सिस्टम की टेस्टिंग हो रही थी। वो कहते हैं, “ट्रेनों में सिर्फ कवच सिस्टम लगा देने से यह सिस्टम पूरी तरह काम नहीं करेगा। बल्कि इसके लिए रेलवे ट्रैक पर हर एक किलोमीटर पर आएफ़आईडी लगाना पड़ेगा, जो कंट्रोल सेंटर को हर मिली सेकंड पर सूचना भेजता है।”
हर वंदे भारत ट्रेन में दो कवच सिस्टम लगे होते हैं। हालांकि टक्कर रोकने और रफ़्तार पर निगरानी रखने में ये तभी मदद कर सकते हैं जब पूरा रूट आरएफ़आईडी से लैस हो।
मंगल ने बीबीसी से कहा, “फिलहाल वंदे भारत का कोई भी ऐसा रूट नहीं है जो आरएफ़आईडी से लैस हो। इसके बिना वंदे भारत ट्रेनों का 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार हासिल करना मुश्किल है।”
ट्रैक अपग्रेड और भारतीय रेलवे
जानकारों का मानना है कि 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार हासिल करने के लिए रेलवे ट्रैक का अपग्रेड होना ज़रूरी है।
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नियंत्रक और महालेखापरीक्षक ने 2021 की अपनी रिपोर्ट में, फंड के बावजूद भारतीय रेलवे में पटरी से उतरने की दुर्घटनाओं पर आलोचना भी की है।
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साल 2017-18 में एक लाख करोड़ रुपये से राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष बनाया गया था। विभाग को हर साल सुरक्षा से जुड़े विभिन्न कामों पर 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने थे।
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भारतीय रेलवे ने इस मद में 2017-18 में 16,091 रुपये 2018-19 में 18,000 करोड़ रुपये खर्च किए।
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अपनी 2022 की रिपोर्ट में कैग ने कहा कि कोष से प्राथमिकता वाले कामों पर कुल खर्च 2019-20 में 81.55% से घट कर 73.76% हो गया।
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ट्रैक को अपग्रेड किए जाने के मद में होने वाले आवंटन में भी यही ढर्रा दिखता है, जो 2018-19 में 9,607.65 करोड़ रुपये से 2019-20 में 7,417 करोड़ रुपये हो गया।
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इसके अलावा आवंटित फ़ंड का भी पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाया।
कैग के अनुसार, साल 2017 से 2021 के दौरान पटरी से उतरने की 1127 घटनाओं में 289 (यानी 26%) पटरी के अपग्रेड होने से जुड़ी हैं।
भारत में रेल डीरेलमेंट और उनमें सुधार के उपायों पर 2020 में किए गए अध्ययन के मुख्य लेखक प्रकाश कुमार सेन ने रॉयटर्स को बताया, “सुरक्षा के रिकॉर्ड में सुधार है लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।” सेन किरोड़ीमल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में मैकेनिकल डिपार्टमेंट के हेड भी हैं।
उन्होंने बताया, “इस तरह के हादसों में मानवीय ग़लतियां और ट्रैक रखरखाव पर कम ध्यान आम कारण हैं। वर्कर बहुत कुशल नहीं होते या उनपर काम का बोझ बहुत ज़्यादा होता है और उन्हें आराम करने की भी फुर्सत नहीं मिलती।”
हालांकि दूसरी तरफ़ भारतीय रेलवे, पिछले सालों के मुकाबले दुर्घटनाओं में कमी को सुरक्षा के प्रति अपनी सतर्कता का सबूत मानती है।
बुलेट ट्रेन और इसकी सुरक्षा
सरकार ने घोषणा की है कि अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन की स्वीकृत रफ़्तार 360 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। दोनों शहरों के बीच 508 किलोमीटर की दूरी को यह 2 घंटे सात मिनट में तय करेगी। यह ट्रेन शिंकांसेन टेक्नोलॉजी से लैस होगी जिसे जापान 1960 से ही इस्तेमाल कर रहा है।
नेशल हाई स्पीड रेल कार्पोरेशन लिमिटेड की एक रिपोर्ट- इंडियाज़ बुलेट ट्रेन राइड, द जर्नी सो फ़ार- के मुताबिक़, इस जापानी टेक्नोलॉजी की ख़ास बात है शून्य दुर्घटना।
शिंकांसेन ऑटोमेटिक ट्रेन कंट्रोल (डीएस-एटीसी) में टक्कर रोकने और स्टेशन से बिना इजाज़त गुजरने को रोकने के लिए स्पेशल ब्रेकिंग सिस्टम होता है।
इसमें रफ़्तार बढ़ाने का नियंत्रण पूरी तरह मैनुअल होता है, हालांकि समय से ब्रेक लगाने में विफल होने पर ऑटोमेटिक ब्रेक सक्रिय हो जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस ट्रेन के लिए ट्रैक के किनारे सिग्नल नहीं होंगे। सिग्नल का सिस्टम ड्राईवर के केबिन में डैशबोर्ड पर होगा।
गवर्नमेंट ऑफ़ जापान की वेबसाइट के अनुसार, शिंकांसेन के नाम से प्रसिद्ध बुलेट ट्रेन का नेटवर्क का सेफ़्टी रिकॉर्ड बिल्कुल साफ़ है। 1964 में जब ये शुरू हुआ तबसे इसकी रफ़्तार 210 से 320 किलोमीटर प्रति घंटे हो चुकी है।
हालांकि बुलेट ट्रेन दुर्घटनाओं से पूरी तरह सुरक्षित हैं, ऐसा भी नहीं माना जाता है।
सीजीटीएन की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के गुईझाउ प्रांत में हाई स्पीड ट्रेन पटरी से उतर गई थी और इसमें ड्राईवर की मौत हो गई जबकि सात यात्री घायल हो गए थे। ड्राईवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया था।
बीबीसी ने नेशनल हाई स्पीड रेल कार्पोरेशन लिमिटेड से सेफ़्टी उपायों को लेकर सवाल किए थे लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला।