- ज़ुबैर अहमद और आयेशा परेरा
राजनीतिक पार्टियों को परामर्श देने वाली कंपनी कैम्ब्रिज एनालिटिका पर पांच करोड़ फ़ेसबुक यूजर के डेटा चोरी का आरोप है। आरोप यह भी है कि कंपनी ने उस डेटा का इस्तेमाल 2016 में हुए अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया था। ब्रिटेन के चैनल 4 के एक वीडियो में फर्म के अधिकारी यह कहते हुए देखे गए कि ये साज़िश और रिश्वतखोरी की मदद से नेताओं को बदनाम करते हैं। हालांकि कंपनी का कहना है कि वो ग़लत काम नहीं करती है।
भारत में क्रैम्ब्रिज एनालिटिका एससीएल इंडिया से जुड़ा है। इसकी वेबसाइट के मुताबिक़ यह लंदन के एससीएल ग्रुप और ओवलेनो बिज़नेस इंटेलिजेंस (ओबीआई) प्राइवेट लिमिटेड का साझा उपक्रम है। ओवलेनो की वेबसाइट के मुताबिक़ इसके 300 स्थायी कर्मी और 1400 से ज़्यादा परामर्शदाता भारत के 10 राज्यों में काम करते हैं।
भारत में अमरीश त्यागी इसके प्रमुख हैं, जो क्षेत्रीय राजनीति के ताक़तवर नेता केसी त्यागी के बेटे हैं। अमरीश पहले ही यह बता चुके हैं कि वो डोनल्ड ट्रंप के चुनावी अभियान में कैसे शामिल थे।
एससीएल-ओबीआई कई तरह की सेवाएं देती है, उनमें से एक है "पॉलिटिकल कैंपेन मैनेजमेंट"। इस सेवा के तहत कंपनी सोशल मीडिया के लिए रणनीति तैयार करती है, चुनावी अभियानों और मोबाइल मीडिया का प्रबंधन भी देखती है। सोशल मीडिया की सेवाओं के तहत यह कंपनी "ब्लॉगर और प्रभावशाली मार्केटिंग", "ऑनलाइन दुनिया में छवि निर्माण" और "सोशल मीडिया अकाउंट" मैनेज करती है।
भाजपा और कांग्रेस हैं इनके 'ग्राहक'
इनके ग्राहकों की सूची में देश के दो मुख्य राजनीतिक पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के नाम शामिल हैं। कंपनी के उप प्रमुख हिमांशु शर्मा हैं। उन्होंने अपने लिंक्डइन प्रोफाइल पर लिखा है कि कंपनी ने "भाजपा के चार चुनावी अभियानों का प्रबंधन किया है" और इन चारों में से उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों का भी ज़िक्र किया है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ी जीत हासिल हुई थी।
हालांकि भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने कंपनी से किसी तरह के संबंध से इनकार किया है। भाजपा के सोशल मीडिया इकाई के प्रमुख अमित मालवीय ने बीबीसी से कहा कि पार्टी ने "एससीएल ग्रुप या अमरीश त्यागी का नाम भी नहीं सुना है तो फिर इसके साथ काम करने का सवाल ही नहीं उठता।"
पार्टियों को देना होता है खर्च का ब्योरा
सोशल मीडिया पर कांग्रेस के लिए रणनीति तैयार करने वाली दिव्या स्पंदन ने भी कंपनी से किसी तरह के संबंध से इनकार किया है। दिव्या ने बीबीसी से कहा कि पार्टी ने कभी भी एससीएल या उनकी संबद्ध कंपनियों का इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि उनके पास ख़ुद डेटा विश्लेषण की टीम है। बीबीसी ने कंपनी से उनका पक्ष भी जानने की कोशिश की है, पर अभी तक हमें कोई भी प्रतिक्रिया हासिल नहीं हुई है।
राजनीतिक सुधारों के लिए काम करने वाले ग़ैर सरकारी संगठन असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के प्रमुख जगदीप चोकर ने बीबीसी से कहा कि राजनीतिक पार्टियों को चुनाव के बाद सोशल मीडिया पर किए गए खर्च का ब्योरा देना होता है पर कितने लोग देते हैं, यह स्पष्ट नहीं है।
उन्होंने आगे कहा, "जहां तक डेटा कंपनियों के भुगतान का सवाल है, इसे भी राजनीतिक पार्टियों के खर्चे के शपथ पत्र में शामिल किया जाना चाहिए, लेकिन इसे लागू करने का कोई उचित प्राधिकार नहीं है।"
भारत में क़ानून का दायरा?
अगर एससीएल इंडिया ने भारत में भी ऐसा कोई अभियान चलाया हो, जैसा कि उस पर अमेरिका में चालने के आरोप हैं, तो भी यह स्पष्ट नहीं है कि उसे कितना अवैध माना जाएगा।
दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस एंड पॉलिसी में तकनीकी नीतियों पर शोध करने वाले स्मृति परशीरा ने बीबीसी से कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में उल्लेखित मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ व्यक्तिगत डेटा लीक होने पर मुआवजे और सज़ा का प्रावधान है।
स्मृति ने कहा कि क़ानून पासवर्ड, वित्तीय जानकारी, सेहत संबंधी जानकारी और बायोमेट्रिक जानकारी को संवेदनशील डेटा मानता है। वो आगे कहती हैं, "व्यक्ति के नाम, उनके पसंद-नपसंद, मित्रों की सूची आदि डेटा विश्लेषण के लिए काफ़ी होते हैं। मौजूदा क़ानून इसे तहत संवेदनशील डेटा नहीं माना जाता है।"
स्मृति कहती हैं कि यह आवश्यक है कि बुनियादी डेटा सुरक्षा क़ानून का दायरा बढ़ाया जाए और व्यक्तिगत सूचनाओं को भी इसमें शामिल किया जाए। उन्होंने बताया कि जस्टिस श्रीकृष्णा की कमिटी डेटा सुरक्षा के इन पहलुओं पर विचार कर रही है कि भारत में नए डेटा सुरक्षा क़ानून का दायरा क्या होना चाहिए।