मध्य प्रदेश: मुख्यमंत्री के नाम पर बीजेपी नेतृत्व क्या सबको चौंका सकता है?

BBC Hindi
शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023 (07:45 IST)
सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, भोपाल से
क्या भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का ऐसा चेहरा आगे कर सबको चौंका देगी, जिसके बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं या फिर वो मुख्यमंत्री की रेस में शामिल नहीं हैं? जानकार मानते हैं कि भाजपा ऐसा कर सकती है और उसने ऐसा कई बार किया भी है।
 
चाहे वो उत्तराखंड हो या फिर हरियाणा। ऐसे चेहरे को आख़िरी समय में आगे किया गया जिसके बारे में किसी को कोई अंदाज़ा ही नहीं था।
 
मध्य प्रदेश में वर्ष 2005 में जब बाबूलाल गौड़ को मुख्यमंत्री का पद छोड़ने को कहा गया था उस समय शिवराज सिंह चौहान का नाम रेस में कहीं भी नहीं था। वो विदिशा से सांसद थे। लेकिन आख़िरी समय में उनका नाम सामने आ गया।
 
वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा कहते हैं, “उस समय शिवराज सिंह चौहान प्रदेश की राजनीति में उतने सक्रिय नहीं थे। वो ‘लॉबिंग’ भी नहीं कर रहे थे। उस समय उनसे भी वरिष्ठ और उनसे ज़्यादा प्रभाव वाले नेता थे। अटकलें भी उन नेताओं के नामों को लेकर चल रहीं थीं। तब पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान के नाम की घोषणा कर सबको चौंका दिया था और सारी अटकलें धरी की धरी रह गयीं थीं।”
 
शर्मा कहते हैं कि पार्टी के बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान को स्वीकार करना पड़ा था। वो ये भी कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की यही कार्यशैली रही है।
 
कौन बनेगा सीएम?
तो सवाल उठता है कि मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री आख़िर कौन होगा ? इसको लेकर ‘सस्पेंस’ अब भी बरक़रार है। जबकि चुनावी नतीजे 3 दिसंबर को ही आ गए थे।
 
भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला फिर भी मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं किये जाने से सियासी गलियारों में अटकलें ही चल रहीं हैं।
 
मध्य प्रदेश में पार्टी के नेतृत्व को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और पूछने पर बड़े नेता कहते हैं कि पर्यवेक्षकों का दल आने वाला है जो मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाएगा।
 
दल में शामिल नेता विधायकों से भी चर्चा करेंगे और फिर अपनी रिपोर्ट आला नेताओं को सौंपेंगे। इस प्रक्रिया में कितना समय लगेगा? किसी को नहीं पता।
 
कई नामों की चर्चा हो रही है। लेकिन पार्टी के आलाकमान ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भोपाल से लेकर दिल्ली तक बैठकों का सिलसिला जारी है।
 
मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल नेता अपने स्तर से ख़ूब ‘लॉबिंग’ भी कर रहे हैं। लेकिन अभी तक पार्टी का शीर्ष नेतृत्व मध्य प्रदेश को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है।
 
सीएम की दौड़ में कई नाम
मुख्यमंत्री नया होगा, इस बात के संकेत पार्टी पहले ही दे चुकी है। फिर जब सांसदों को विधानसभा के चुनावों में उम्मीदवार बनाया गया तब इस बात पर मुहर भी लग गयी।
 
कुल सात सांसद मैदान में उतारे गए जिनमें तीन केन्द्रीय मंत्री शामिल थे। इनके अलावा पार्टी के केंद्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी उम्मीदवार बनाए गए। हालांकि एक केंद्रीय मंत्री – फग्गन सिंह कुलस्ते निवास सीट से चुनाव हार गए, जीतने वाले सांसदों ने संसद से अपना इस्तीफा सौंप दिया है जिनमें केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल भी शामिल हैं।
 
प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वी डी शर्मा ने भी दिल्ली में पार्टी के बड़े नेताओं और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की। शर्मा खजुराहो के सांसद भी हैं।
 
उनकी दिल्ली में बड़े नेताओं से मुलाकातों की तस्वीरें प्रदेश भाजपा के ‘व्हाटसैप ग्रुप’ से शेयर भी की जा रहीं हैं। दूसरे नेताओं ने भी ऐसा किया है।
 
बड़े नामों में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर भी चर्चा चल रही है। मगर ये सब सिर्फ़ अटकलबाज़ी हैं। आठ बार के विधायक गोपाल भार्गव को भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली तलब किया था। मगर उन्होंने अपने दिल्ली जाने को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की।
 
गुरुवार को पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसकी घोषणा रविवार तक हो जाएगी। मगर उनकी ये घोषणा आधिकारिक नहीं थी।
 
चौहान को क्यों बदलना चाहता है नेतृत्व
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में अब तक के सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री हैं। पार्टी पर लंबे समय से नज़र रखने वालों का कहना है कि पिछले विधानसभा के चुनावों में भी ‘सत्ता विरोधी लहर’ की वजह से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था।
 
वो बात और है कि ज्योतिरादित्य के भाजपा में आने से कांग्रेस की सरकार गिर गयी थी और भाजपा ने एक बार फिर प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बना ली थी।
 
वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना कहते हैं, “18 साल एक लम्बा समय होता है। लोग बदलाव ढूंढते हैं। नया चेहरा ढूंढते हैं। इस लिए चुनाव के पहले से ही इस बात की चर्चा पार्टी में हो रही थी। इसलिए उनके चेहरे को आगे कर भाजपा ने चुनाव नहीं लड़ा।"
 
"तभी ये संकेत मिलने लगे थे। हालांकि इस बार के चुनावों में शिवराज सिंह चौहान की ओर से महिलाओं को केंद्र में रख कर जो योजनायें शुरू की गयीं उन योजनाओं ने ‘गेम चंजेर’ का काम किया। भाजपा के मत में सात प्रतिशत का उछाल भी देखा गया।"
 
"ये भी सही है कि इस समय अपनी योजनाओं की वजह से शिवराज सिंह चौहान भाजपा के प्रदेश में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय नेता हैं। मगर संगठन की नज़रें अब लोक सभा के चुनावों पर हैं जो दस्तक दे रहे हैं।”
 
सक्सेना कहते हैं कि लोक सभा के चुनावों में पार्टी को कई समीकरणों को ध्यान में रखना है। ये जातिगत समीकरण हैं जिनकी वजह से ऐसे नेताओं को लेकर अटकलें लगाई जा रहीं है जिनकी अपनी जाति में गहरी पैठ है।
 
सीएम के चुनाव में ओबीसी फ़ैक्टर
चूँकि कांग्रेस ने जातिगत जनगणना करवाने को लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, जानकार समझते हैं कि इसकी काट के लिए भाजपा अपना ज़्यादा ‘फ़ोकस’ अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी पर केंद्रित कर रही है।
इसलिए मुख्यमंत्री के चयन में ये भी एक मापदंड हो सकता है।
 
वैसे केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल भी लोधी समाज से आते हैं और प्रदेश में ओबीसी वर्ग में एक बड़े चेहरे के रूप में पहचाने जाते हैं। उन्होंने पहली बार नरसिंहपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ा है और जीत भी हासिल की है।
 
बुधवार को उन्होंने अपनी संसद की सदस्यता से इस्तीफ़ा भी दे दिया। मंत्रिमंडल से भी इस्तीफ़ा देने की पेशकश की है।
 
नरेन्द्र सिंह तोमर ग्वालियर चम्बल संभाग के बड़े प्रभावशाली नेता हैं जिनका मध्य प्रदेश में राजनीतिक क़द काफ़ी ऊंचा है। केन्द्रीय कृषि मंत्री हैं और बुधवार को उन्होंने भी संसद की अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। यानी अब ये दोनों नेता पूरी तरह से मध्य प्रदेश की राजनीति के लिए कमर कस चुके हैं।
 
तोमर को विधानसभा के चुनावों में पार्टी की प्रचार की कमान भी सौंपी गई थी और उन्हें संयोजक भी बनाया गया था। वो दिमनी विधानसभा सीट से जीत भी गए हैं।
 
सिंधिया भी रेस में
ग्वालियर के राजघराने के महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से बढ़ती हुई नज़दीकी की वजह से मुख्यमंत्री की रेस में उनका नाम ज़ोर शोर से दौड़ रहा है।
 
पिछले यानी 2018 के विधानसभा के चुनावों में वो कांग्रेस के स्टार प्रचारक थे और पूरा चुनाव ‘शिवराज बनाम महाराज’ के रूप में लड़ा गया था। कांग्रेस को इसका फ़ायदा हुआ था और उसकी सरकार बनी थी।
 
लेकिन फिर वो अपने समर्थन वाले 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए, कांग्रेस की सरकार गिर गयी और भाजपा ने सरकार बना ली।
 
इस बार विधानसभा के चुनावों में भरतीय जनता पार्टी को उनके आने का फ़ायदा मिला। रमेश शर्मा कहते हैं कि ग्वालियर – चंबल संभाग में भाजपा के बेहतर प्रदर्शन का एक ये भी बड़ा कारण रहा है।
 
कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कहा जाता है कि पार्टी का महासचिव होने के नाते वो संगठन के शीर्ष नेतृत्व के ‘काफ़ी क़रीब’ हैं। इसलिए वो कुछ भी बयान देते हैं।
 
जब इस बार विधानसभा के चुनावों में भाजपा के मत के प्रतिशत में अप्रत्याशित वृद्धि हुई तो उसका श्रेय शिवराज सिंह चौहान की शुरू की गई लाडली बहना योजना को दिया जाने लगा।
 
मगर विजयवर्गीय ऐसा नहीं मानते। वो मानते हैं कि ‘मोदी मैजिक’ की वजह से तीनों राज्यों में जीत मिली है।
 
पत्रकारों के सवाल के जवाब में उनका कहना था कि ‘छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो ‘लाडली बहना योजना’ नहीं थी लेकिन भाजपा को प्रचंड जीत मिली।’
 
हो सकता है चौंकाने वाला फैसला
विजयवर्गीय चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे। मगर इंदौर-1 की सीट पर उन्हें विजय हासिल हुई और उनको भी मुख्यमंत्री पद के एक दावेदार के रूप में देखा जा रहा है।
 
राज्य में भाजपा के और भी कई प्रभावशाली नेता हैं। लेकिन इस बार 27 मौजूदा विधायकों को हार का सामना करना पड़ा है जिनमें कई मंत्री भी हैं।
 
इनमें सबसे प्रमुख गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा दतिया सीट से चुनाव हार गए हैं इसलिए उन्हें रेस से बाहर बताया जा रहा है। वहीं कृषि मंत्री कमल पटेल को भी हार का सामना करना पड़ा।
 
संजय सक्सेना कहते हैं कि मुख्यमंत्री बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी के लिए हार या जीत मायने नहीं रखती। वो कहते हैं कि उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए थे। बावजूद इसके उन्हें पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया।
 
वो कहते हैं, “लेकिन ये सही है कि दूसरे क़द्दावर नेताओं के सामने अब इस बात की संभावना कम है कि जो विधायक नहीं चुना गया है उसे मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। मगर भारतीय जनता पार्टी कुछ भी कर सकती है।”
 
ऐसे में अगर बीजेपी मध्य प्रदेश में किसी नए या अप्रत्याशित चेहरे को सीएम बना दे तो बहुत हैरानी नहीं होनी चाहिए।

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