बिहार चुनाव: हर घर बिजली-शौचालय का दावा कितना सच – फ़ैक्ट चेक

Webdunia
रविवार, 27 सितम्बर 2020 (07:13 IST)
मोहम्मद शाहिद, फ़ैक्ट चेक टीम, बीबीसी हिंदी
आख़िरकार बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग ने घोषणा कर दी है कि बिहार में चुनाव तीन चरणों (28 अक्तूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर) में होंगे और इसका परिणाम 10 नवंबर को आएगा।
 
लेकिन चुनाव आयोग की घोषणा के पहले ही बिहार चुनाव का दंगल शुरू हो चुका था। एक ओर बिहार की नीतीश सरकार अपने किए गए वादों के पूरा होने का दावा कर रही है वहीं विपक्षी आरजेडी का कहना है कि ज़मीन पर कुछ हुआ ही नहीं है।
 
इसी बीच 21 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में डिजिटली 9 हाइवे प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी और बिहार के 45,945 गांवों को ऑप्टिकल फ़ाइबर के ज़रिए इंटरनेट से जोड़ने की योजना की भी शुरुआत की।
 
इन योजनाओं की शुरुआत के समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए जुड़े हुए थे। इस कार्यक्रम के दौरान राज्य के उप-मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि राज्य में हर घर में बिजली और हर घर में शौचालय है।
 
बिहार के उप-मुख्यमंत्री के इन दावों की सत्यता जानने के लिए हमने बिहार सरकार के विभिन्न दस्तावेज़ों, वेबसाइट और केंद्र की योजनाओं को खंगाला।
 
2015 में महागठबंधन की चुनावी जीत के बाद नीतीश सरकार ने '7 निश्चय' योजना की शुरुआत की थी। इसमें 7 लक्ष्य हासिल करने का उद्देश्य था। इन लक्ष्यों में 'हर घर बिजली' तीसरा और 'शौचालय निर्माण घर का सम्मान' छठा उद्देश्य था।
 
2017 में महागठबंधन के टूटने के बाद और एनडीए सरकार के बनने के बाद भी इस योजना को चालू रखा गया। नीतीश सरकार इस योजना को ख़ासा भुनाने में लगी हुई है और बार-बार हर चुनावी रैलियों और बैठकों में राजनेता इसका ज़िक्र करते हैं।
 
बिहार में बिजली
बिहार में क्या बिजली हर घर में पहुंच चुकी है? आंकड़ों की ज़ुबानी अगर इन दावों को देखें तो 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की कुल आबादी 10।38 करोड़ थी। यह 9 साल पहले का आंकड़ा था बिहार सरकार का कहना है कि अब उसके राज्य की आबादी 10।40 करोड़ से अधिक है। हालांकि अब ऐसा अनुमान है कि राज्य की जनसंख्या 12।48 करोड़ से अधिक हो चुकी है।
 
बिहार की 88 फ़ीसदी से अधिक आबादी यानी 9 करोड़ से अधिक लोग गांवों में रहते हैं जिससे देश के प्रमुख राज्यों के बीच यह राज्य सबसे कम शहरीकरण वाला राज्य है। बिहार सरकार के मुताबिक़, उसके राज्य में 199 शहर और 39,073 गांव हैं।
 
भारत में हर गांव तक बिजली पहुंचाने के लिए 'राजीव गांधी ग्रामीण विद्युत योजना' यूपीए सरकार में ही शुरू हो चुकी थी क्योंकि भारत का सबसे बड़ा हिस्सा जहां बिजली नहीं पहुंची थी वह ग्रामीण इलाक़ा था। 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद इस योजना का नाम बदलकर 'दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना' रख दिया गया।
 
बिहार सरकार का दावा है कि वह इस योजना के तहत अपने राज्य के हर गांव तक बिजली पहुंचा चुकी है। इस साल फ़रवरी में राज्य विधानसभा में पेश किए गए 2019-20 के राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण में साफ़ लिखा है कि दिसंबर 2017 तक 39,073 गांवों और अप्रैल 2018 तक सभी 1।06 लाख ग्रामीण टोलों तक बिजली पहुंचाई जा चुकी है।
 
भारत सरकार और बिहार सरकार 100 फ़ीसदी गांवों तक बिजली पहुंचाने का दावा कर रही है लेकिन उसे मानने से पहले एक बार केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की ग्राम विद्युतीकरण की परिभाषा को भी यहां देख लिया जाना चाहिए।
 
फ़रवरी 2004 में ऊर्जा मंत्रालय ने गांवों के विद्युतीकृत घोषित करने के तीन पैमाने बताए थे।
 
1. स्थानीय इलाक़ों के साथ-साथ दलित बस्तियों में ट्रांसफ़ार्मर या बिजली की तारों जैसा मूलभूत ढांचा पहुंच जाए।
 
2. स्कूल, पंचायत घर, स्वास्थ्य केंद्र, डिस्पेंसरी या सामुदायिक केंद्रों जैसी जगहों पर बिजली पहुंच जाए।
 
3. गांव के 10 फ़ीसदी घरों में बिजली पहुंच जाए।
 
इन पैमानों को अगर मानें तो बिहार के हर गांव तक बिजली पहुंच चुकी है लेकिन यहां भी एक सवाल उठता है।
 
बिहार सरकार 2011 के जनगणना के आंकड़ों के हवाले से कुल 39,073 गांवों तक बिजली पहुंचाने के दावे कर रही है लेकिन अब वह ख़ुद ही अपनी वेबसाइट पर मानती है कि बिहार में गांवों की संख्या 45,103 है।
 
'हर घर बिजली' का सच
भारत सरकार ने देश के हर घर तक बिजली पहुंचाने के लिए 25 सितंबर 2017 को 'प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना- सौभाग्य' की शुरुआत की थी। ग्रामीण और शहरी भारत के ग़रीबी रेखा से ऊपर और नीचे दोनों घरों को बिजली कनेक्शन देने के लिए यह योजना लाई गई थी।
 
भारत सरकार की सौभाग्य योजना की वेबसाइट के मुताबिक़, सिर्फ़ छत्तीसगढ़ के कुछ इलाक़ों को छोड़कर देश के 100 फ़ीसदी घरों में बिजली पहुंच चुकी है। इसमें भी छत्तीसगढ़ के 99।67 फ़ीसदी घरों में बिजली पहुंचे होने का दावा किया गया है।
 
अब आते हैं बिहार पर जहां भारत सरकार की इन दोनों योजनाओं को लागू किया गया। 'दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना' में ग़रीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों के लिए बिजली कनेक्शन देने का विकल्प था।
 
बिहार सरकार का कहना है कि ग़रीबी रेखा से ऊपर जीवनयापन करने वाले परिवारों के लिए वह 'मुख्यमंत्री विद्युत संबंध निश्चय योजना' लेकर आई थी जिसके कारण सभी ग्रामीण परिवारों को बिजली का कनेक्शन मिले। लेकिन अक्तूबर 2017 में सौभाग्य योजना के शुरू होने के बाद 'मुख्यमंत्री विद्युत संबंध निश्चय योजना' को इसके साथ जोड़ दिया गया।
 
बिहार सरकार ने अपने 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण में लिखा है, "इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सभी 32,59,041 इच्छुक परिवारों को बिजली के कनेक्शन देने के साथ योजना अक्तूबर 2018 में पूरी हो गई है। मांग के आधार पर ऐसे कनेक्शन शहरी क्षेत्रों में भी दिए जा रहे हैं।"
 
बिहार सरकार ने अक्तूबर 2018 में पूरे राज्य में 100 फ़ीसदी विद्युतीकरण होने की घोषणा की थी। राज्य सरकार का कहना है कि राज्य के सभी 1।40 करोड़ इच्छुक परिवारों को बिजली का कनेक्शन दे दिया गया है।
 
इसकी पुष्टि भारत सरकार की सौभाग्य वेबसाइट भी करती है जो बताती है कि बिहार में 1।39 लाख से अधिक परिवारों के पास बिजली का कनेक्शन है। लेकिन कितने घरों में बिजली नहीं है, उसका आंकड़ा वेबसाइट पर आपको नहीं मिलेगा।
 
2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में ग्रामीण परिवारों की संख्या 1।69 करोड़ है जबकि शहरी परिवार 20 लाख से अधिक हैं। वहीं, ग्रामीण आवासों की संख्या 1।63 लाख और शहरी आवासों की संख्या 19 लाख से अधिक है। यह 2011 के आंकड़े थे अब यह भी सच है कि 9 साल बाद यह संख्या बढ़ी ही होगी, घटी नहीं होगी।
 
बिहार की नीतीश कुमार सरकार बिजली के मामलों में हर जगह पर 'इच्छुक' शब्द का प्रयोग कर रही है। इसका अर्थ हुआ कि जिन परिवारों को बिजली का कनेक्शन लेने की इच्छा नहीं थी उन्हें यह कनेक्शन नहीं दिया गया जबकि ग़रीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले शहरी और ग्रामीण परिवारों को यह कनेक्शन मुफ़्त देना था।
 
बिहार के कुल परिवारों और घरों के आंकड़ों से राज्य सरकार का बिजली कनेक्शन का 1।40 करोड़ का आंकड़ा कई लाख कम है। इससे साफ़ है कि बिहार के हर घर में बिजली नहीं पहुंच पाई है।
 
बिहार के हर घर में शौचालय है?
बिजली के बाद आते हैं बिहार में हर घर में शौचालय की स्थिति पर। भारत सरकार ने 2 अक्तूबर 2014 को 'स्वच्छ भारत मिशन' की शुरुआत की थी। इस योजना के कई मक़सदों में से एक था, देश को खुले में शौच से मुक्त करना।
 
2 अक्तूबर 2019 को भारत को खुले में शौच (ODF) से मुक्त घोषित कर दिया गया। पांच साल में इस योजना के तहत ग्रामीण भारत में 10 करोड़ शौचालय बनाए गए।
 
अब आते हैं बिहार पर, स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट के अनुसार बिहार में 1।14 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए। बिहार में कुल 1।53 करोड़ घरों में शौचालय है और 8,902 कम्युनिटी सैनिट्री कॉम्लेक्स (CSC) यानी सामुदायिक शौचालय हैं।
 
भारत सरकार ने बताया है कि बिहार के पांच ज़िले ऐसे हैं जिनमें इंडिविजुअल हाउसहोल्ड लेट्रिन (IHHL) यानी एक घर में शौचालय 100 फ़ीसदी नहीं हैं। इनमें राज्य की राजधानी पटना भी शामिल है।
 
यह तो हुई भारत सरकार की बात अब बिहार सरकार के आंकड़ों पर नज़र डालें तो राज्य सरकार के '7 निश्चय' योजना में शामिल छठी योजना 'शौचालय निर्माण घर का सम्मान' के पूरे होने में काफ़ी मुश्किलें नज़र आती हैं।
 
बिहार सरकार के 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण में यह साफ़ लिखा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 63।8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 95 प्रतिशत परिवारों के पास ही शौचालय है। यानी के बिहार सरकार ख़ुद मान रही है कि हर परिवार के पास शौचालय नहीं है। यह याद रहे कि राज्य की 88 फ़ीसदी से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
 
बिहार में शौचालय निर्माण के लिए दो योजनाएं चल रही हैं जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 'लोहिया स्वच्छ भारत अभियान' और शहरी क्षेत्रों के लिए 'शौचालय निर्माण (शहरी क्षेत्र) योजना' शामिल है।
 
केंद्र की स्वच्छ भारत मिशन योजना को मिलाकर ही बिहार में 'लोहिया स्वच्छ भारत अभियान' योजना की शुरुआत की गई। इसके तहत ग़रीबी रेखा से नीचे और ऊपर दोनों ही तरह के परिवारों को 12,000 रुपये सहायता राशि दी जाती है।
 
शहरी क्षेत्र के परिवारों को भी राज्य सरकार स्वच्छ भारत मिशन से 4,000 रुपये और अपने पास से 8,000 रुपये जोड़कर कुल 12,000 रुपये की सहायता राशि देती है।
 
खुले में शौच से कितना मुक्त हुआ बिहार
अब आते हैं खुले में शौच से मुक्त बिहार पर। भारत को तो खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया है लेकिन बिहार अभी भी 100 फ़ीसदी खुले में शौच से मुक्त नहीं है।
 
भारत सरकार के मुताबिक़, बिहार के 133 शहरी स्थानीय निकायों में से 22 ऐसे हैं जो अभी भी खुले में शौच से मुक्त नहीं हैं। इनमें फ़ार्बिसगंज, जहानाबाद, पूर्णिया, सीतामढ़ी भी शामिल हैं।
 
बिजली और शौचालय पर सरकार का पक्ष जानने के लिए हमने राज्य के ऊर्जा और ग्रामीण विकास विभाग के मंत्रियों से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने हमसे बात नहीं की।
 
इसके बाद हमने संबंधित विभागों के सचिवों से इस संबंध में उनका पक्ष लेना चाहा और ईमेल किया लेकिन उस पर भी उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। इन पर राज्य सरकार के विभागों का जो पक्ष आएगा उसे हम आगे अपनी कहानी में जोड़ेंगे।
 

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