राम मंदिर पर BJP से भी ज़्यादा उतावली क्यों है शिवसेना?

Webdunia
शुक्रवार, 7 जून 2019 (12:41 IST)
मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल शुरू होते ही सत्ता में साझेदार एनडीए की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में बयान देने शुरू कर दिए हैं। पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने ट्वीट किया है, "बीजेपी के पास 303 सांसद, शिवसेना के 18 सांसद। राम मंदिर निर्माण के लिए और क्या चाहिए?"
 
 
इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को पहले से भी बड़ा बहुमत मिला है और शिवसेना के भी 18 सांसद जीतकर आए हैं। आम तौर पर चुनाव परिणामों के बाद उद्धव ठाकरे एकवीरा देवी के दर्शन के लिए जाते हैं, लेकिन इस बार वो अयोध्या जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि उद्धव भाजपा को इसके ज़रिये एक राजनीतिक संदेश दे रहे हैं।

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बीजेपी के पास 303 सांसद.
शिवसेना के 18 सांसद.
राम मंदिर निर्माण के लिए और क्या चाहिये?

— Sanjay Raut (@rautsanjay61) June 6, 2019 >
उधर, गुरुवार को भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी फिर से केंद्र सरकार से राम मंदिर निर्माण शुरू करने की अपील की। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "यह सही समय है जब नमो सरकार को रामजन्मभूमि न्यास समिति या विश्व हिंदू परिषद के ज़रिये राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत कर देनी चाहिए। 67.703 एकड़ की पूरी ज़मीन केंद्र सरकार की है। जब सुप्रीम कोर्ट फैसले देगा तो जीतने वालों को मुआवज़ा दिया जा सकता है, पर ज़मीन नहीं। इस बीच निर्माण शुरू किया जा सकता है।"
 
उन्होंने एक और ट्वीट को रिट्वीट किया है, जिसमें लिखा है, "प्रधानमंत्री के पास राम मंदिर निर्माण को और टालने की कोई कानूनी अनुमति नहीं है, शुक्रिया डॉक्टर स्वामी।"
 
लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा से गठबंधन का ऐलान होने से पहले शिवसेना भाजपा पर भी हमलावर थी और उस वक़्त पार्टी के नेता अपने भाषणों में लगातार राम मंदिर का मुद्दा उठा रहे थे। पार्टी की ओर से 'हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर फिर सरकार' जैसे नारे दिए गए थे।
 
उस वक़्त ख़ुद उद्धव ठाकरे ने कहा था, 'मंदिर बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे। राम मंदिर एक जुमला था और अगर यह बात सही है तो एनडीए सरकार के डीएनए में दोष है।'
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Time for Namo Govt to announce the commencement of construction of Ram Temple through Ramjanmabhoomi Nyas Samiti or VHP. The entire 67.703 acres belongs to Union Govt. When SC decides the cases compensation will be given to winners.But not land. Meantime construction can begin

— Subramanian Swamy (@Swamy39) June 6, 2019 >
25 नवंबर 2018 को उद्धव ठाकरे अयोध्या भी गए थे। शिवसेना हालाँकि इसे 'ग़ैर-राजनीतिक यात्रा' बताती है, लेकिन विश्लेषकों ने माना कि शिवसेना ख़ुद को हिंदुत्व के मसले पर भाजपा से भी गंभीर दर्शाना चाहती है।
 
हालांकि शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि उद्धव ठाकरे की अयोध्या यात्रा में कोई राजनीति नहीं थी। उन्होंने कहा, "चुनाव से पहले हम सब उद्धव ठाकरे के साथ अयोध्या गए। चुनाव के बाद भी हमने कहा कि हम फिर से आएंगे। चुनाव खत्म हो जाएं हमें बहुमत मिल जाए तो क्या हम रामलला और अयोध्या को भूल जाएंगे? यही हमारी प्रतिबद्धता है?"
 
लोकमत के वरिष्ठ सहायक संपादक संदीप प्रधान मानते हैं कि शिवसेना राम मंदिर के मुद्दे पर आक्रामक रुख़ बनाए रखेगी। वह मानते हैं कि ठाकरे का दूसरा अयोध्या दौरा भाजपा पर 'दबाव बनाने की रणनीति' का एक हिस्सा है।
 
संदीप प्रधान कहते हैं, "शिवसेना सरकार का हिस्सा है पर मनचाहा मंत्री पद न मिलने से पार्टी में एक नाराज़गी भी है। भाजपा को जैसा प्रचंड बहुमत मिला है, उसके बाद शिवसेना अपना विरोध खुलकर नहीं जताएगी। पिछली बार की तरह शिवसेना 'चौकीदार चोर है' जैसे नारों का इस्तेमाल नहीं करेगी। लेकिन वो किसी न किसी तरीक़े से दबाव डालने की कोशिश जारी रखेगी। इसके लिए वह हिंदुत्व और राम मंदिर के मुद्दे का इस्तेमाल करेगी।"
महाराष्ट्र में कुछ महीनों में ही विधानसभा चुनाव होने हैं। कुछ जानकार शिवसेना की इस कोशिश को विधानसभा चुनावों की तैयारी के तौर पर भी देखते हैं।
 
संदीप प्रधान कहते हैं, "लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मुद्दा अहम रहा। विधानसभा चुनाव में भी ऐसा हो सकता है। राम मंदिर के पक्षधर वोटरों को आकर्षित करने के लिए शिवसेना उद्धव के अयोध्या दौरे का इस्तेमाल करेगी।"
 
नवंबर 2018 में जब उद्धव अयोध्या गए थे तो बीबीसी संवाददाता निरंजन छानवाल भी वहां मौजूद थे। उनके मुताबिक, उद्धव के दौरे को स्थानीय स्तर पर अच्छा समर्थन मिला था। निरंजन कहते हैं, "पहले उद्धव सत्ता में होकर भी विरोधी जैसा बर्ताव कर रहे थे। इसलिए विश्व हिंदू परिषद ने भी उसी दिन अयोध्या में धर्मसभा का आयोजन किया था। तब मीडिया में ऐसी ख़बरें थीं कि उद्धव की सभाओं में भीड़ न जुटने देने के लिए विहिप ने भाजपा के साथ मिलकर यह धर्मसभा बुलाई थी। विहिप ने इस बात से इनकार किया था पर लखनऊ से अयोध्या जाने वाले हाइवे पर दोनों पक्षों में पोस्टर वॉर और हिंदुत्व की राजनीति की होड़ आसानी से देखी जा सकती थी।"
 
निरंजन कहते हैं कि शिवसेना की 'दबाव की राजनीति' का एक कारण और समझ में आता है। वह कहते हैं, "महाराष्ट्र में 18 सीटों पर जीतने के बावजूद शिवसेना को एक ही मंत्री पद मिला है। जबकि 16 सांसदों वाली जदयू ने एक मंत्रीपद का प्रस्ताव दिए जाने के बाद कैबिनेट से बाहर रहना ही उचित समझा। इस वजह से शिवसेना की जदयू से सीधी तुलना हो रही है। इसकी भरपाई के लिए शिवसेना ने लोकसभा के उपाध्यक्ष का पद मांगा है।"
 
इस मांग पर उद्धव ठाकरे ने मीडिया से बात करते हुए सफ़ाई भी दी। कोल्हापुर में उन्होंने कहा, "कोई इच्छा जताने का ये मतलब नहीं कि हम नाराज़ हैं। जो हमारे अपने होते हैं, उनसे हक़ से कुछ मांगने को नाराज़गी से नहीं जोड़ना चाहिए। जो चीज़ हमारी है, उसे हम हक़ से मांगेंगे। ये गठबंधन हम किसी कीमत पर टूटने नहीं देंगे। हम 16 तारीख को अयोध्या जाने के लिए दृढ़ हैं।"
 
उपसभापति पद की मांग को लेकर भी शिवसेना नेता और सांसद संजय राउत का कहना है कि पार्टी के पास 18 सांसद है और वो एनडीए का दूसरा सबसे बड़ा दल है। इसलिए यह उनका 'नैसर्गिक अधिकार' है। 
 
संजय राउत कहते हैं, "उपसभापति पद बीजेडी के खाते में जाने की चर्चा है जो ओडिशा में एनडीए के ख़िलाफ़ चुनाव लड़े थे। इसलिए उनके बजाय शिवसेना को मिलना चाहिए, ऐसी हमारी मांग है।" 
 
हिंदुत्व और राम मंदिर को लेकर शिवसेना की सक्रियता भाजपा को असहज करती है या नहीं, यह आने वाला वक़्त ही बताएगा।
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