असम की बीजेपी सरकार ने बाल विवाह पर किया बड़ा फ़ैसला, क्या हैं इसके मायने?

BBC Hindi
शुक्रवार, 27 जनवरी 2023 (07:57 IST)
दिलीप कुमार शर्मा, बीबीसी हिंदी के लिए, गुवाहाटी से
असम में बीजेपी की सरकार ने 14 साल से कम उम्र की नाबालिग़ लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत सख़्त कानूनी कार्रवाई करने का फ़ैसला किया है।
 
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कैबिनेट के इस फ़ैसले की ख़ुद जानकारी देते हुए कहा, "जो युवक 14 साल से कम उम्र की लड़की से शादी करेगा, हम उनके ख़िलाफ़ पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई करेंगे। हमारी सरकार ने बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए बड़े पैमाने पर राज्यव्यापी अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है।"
 
राज्य में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर को कम करने और ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह को रोकने के लिए कैबिनेट ने सभी 2,197 ग्राम पंचायत सचिवों को बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत 'बाल विवाह रोकथाम (निषेध) अधिकारी' के रूप में नामित करने का फ़ैसला किया है।
 
ये अधिकारी पॉक्सो एक्ट के तहत उन मामलों में प्राथमिकी दर्ज कराएँगे, जहाँ दुल्हन की उम्र 14 साल से कम है। वहीं लड़की की उम्र 14 साल से 18 साल के बीच होने पर बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत एफ़आईआर दर्ज कराई जाएगी।
 
भारत में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफ़ेंसेज एक्ट) क़ानून है, जिसमें सात साल की सज़ा से लेकर उम्र क़ैद और अर्थदंड लगाने का प्रावधान है।
 
इससे पहले कर्नाटक की सत्तारूढ़ बीजेपी ने भी बाल विवाह के ख़िलाफ़ इस तरह की क़ानूनी कार्रवाई के प्रावधान किए थे। मुख्यमंत्री हिमंत की मानें, तो कर्नाटक सरकार ने ऐसा अभियान चला कर अब तक 11,000 बाल विवाह रोके हैं और 10,000 से अधिक जोड़ों को पकड़ा है।
 
मुख्यमंत्री ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर साल 2019-20 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की मौजूदा रिपोर्ट का हवाला दिया है।
 
उन्होंने कहा, "असम में 11।7 प्रतिशत महिलाएँ ऐसी हैं, जिन्होंने कम उम्र में माँ बनने का बोझ उठाया है। इसका मतलब यह है कि असम में बाल विवाह अब भी बड़ी तादाद में हो रहे हैं। हमने जब इस रिपोर्ट की और गहनता से जाँच की, तो पाया कि धुबरी ज़िले में 22 फ़ीसदी लड़कियों की न केवल कम उम्र में शादी हुई है, बल्कि वे माँ भी बनी हैं।"
 
बाल विवाह
राज्य सरकार ने निचले असम के जिन जिलों में बाल विवाह के ज़्यादा मामले होने के आँकड़े दिए है, उन इलाक़ों में बंगाली मूल के मुसलमान समुदाय की आबादी ज़्यादा है। इसके अलावा चाय जनजाति और कुछ अन्य जनजातियों में भी बाल विवाह के मामले अधिक हैं।
 
2011 की जनगणना के अनुसार, असम की कुल जनसंख्या 3 करोड़ 10 लाख है। मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 34 प्रतिशत है, जबकि चाय जनजातियों की जनसंख्या का 15-20 प्रतिशत होने का अनुमान है। ऐसे में चाय जनजाति वाले जोरहाट और शिवसागर ज़िले में भी 24।9 प्रतिशत लड़कियों की शादी 14 साल से कम उम्र में हुई है।
 
असम में ख़ासकर मुसलमान बहुल इलाक़ों में बाल विवाह जैसी कुप्रथा के खिलाफ काम कर रहे ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष रेजाउल करीम सरकार ने बीबीसी से कहा, "सरकार को आज से 15 साल पहले ही बाल विवाह के ख़िलाफ़ ऐसा कठोर क़दम उठाने की ज़रूरत थी।"
 
उन्होंने कहा, "जब हिमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बने थे, उस दौरान भी हमने ज्ञापन सौंपा था। हम नाबालिग़ लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों के ख़िलाफ़ पॉक्सो एक्ट लगाने का समर्थन करते है।"
 
हालाँकि उनका कहना है कि 'इन सभी बाधाओं के बीच बीते चार सालों में उन्होंने 3500 से ज़्यादा बाल विवाह रोके हैं और कई लोगों को गिरफ़्तार करवाया है।'
 
इसी अल्पसंख्यक छात्र संघ की सहायक सचिव हसीना अहमद कहती है, "अल्पसंख्यक समुदाय में कई कारणों से बाल विवाह की एक आम प्रवृत्ति है। बुनियादी कारण शिक्षा की कमी और आर्थिक पिछड़ापन है। मुस्लिम समुदाय में कुछ काज़ी कभी-कभी लोगों को गुमराह कर देते हैं।"
 
मुसलमानों में अधिक बच्चे पैदा करने से जुड़े आरोपों का जवाब देते हुए हसीना कहती हैं, "यह पुरानी बात है। अब मुस्लिम लोग अधिक बच्चे पैदा करने को लेकर बहुत सोचते हैं। आप जन्मदर को लेकर सरकार के मौजूदा आँकड़े देख सकते हैं।"
 
पाँचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार असम में साल 2005-06 से लेकर 2019-20 तक पिछले 14 सालों में मुस्लिम समुदाय में जन्म दर बहुत तेज़ी से कम हुई है।
 
हालाँकि मुख्यमंत्री सरमा ने बाल विवाह और कम उम्र में बच्चे पैदा करने को लेकर जिन दो ज़िलों धुबरी और दक्षिण सलमारा का ज़िक्र किया है, वो दोनों ही मुसलमान बहुल आबादी वाले ज़िले हैं।
 
बाल विवाह के सबसे ज़्यादा मामले
दक्षिण सलमारा ज़िले में 22 फ़ीसदी नाबालिग़ युवतियों के माँ बनने और इलाक़े में की जा रही पुलिस कार्रवाई पर पुलिस अधीक्षक होरेन तोकबी कहते हैं, "ज़िले में बाल विवाह की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस लगातार कार्रवाई कर रही है। हम काज़ी, ग्राम प्रधान, विलेज डिफ़ेंस पार्टी के साथ काम करते हैं।"
 
"इन लोगों से जो सूचना मिलती है, पुलिस तुरंत मामला दर्ज कर कार्रवाई करती है। पुलिस ने पिछले तीन साल में 26 मामले दर्ज कर अभियुक्तों को जेल भेजा है। वही बाल विवाह के ऐसे 69 मामलों की सूचना मिली है, जिसमें कोई केस रजिस्टर नहीं हुए हैं। दरअसल यह पूरी तरह मुस्लिम बहुल इलाक़ा है, इसलिए कई बार लोग पुलिस को सूचना ही नहीं देते।"
 
पॉक्सो एक्ट की कार्रवाई से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए पुलिस अधीक्षक तोकबी कहते हैं, "हमने कई मामलों में पहले से ही पॉक्सो एक्ट लगाया है। क्योंकि जो मामले कम उम्र के होते हैं उनमें स्वत: ही पॉक्सो लग जाता है।"
 
"दरअसल बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की कुछ धाराओं में अभियुक्तों को ज़मानत मिल जाती है। लेकिन पॉक्सो लगाने से ज़मानत नहीं मिलती। लेकिन अब कैबिनेट के फ़ैसले के बाद आगे की कार्रवाई नए सिरे की जाएगी। हम पुलिस मुख्यालय से नए दिशा-निर्देश मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं।"
 
पिछले 28 साल से सरकारी काज़ी के तौर पर काम कर रहे मौलाना फख़रुद्दीन अहमद कासमी ने बीबीसी से कहा, "मुसलमानों को अपनी बच्ची का बाल विवाह कराने की बजाए उन्हें पढ़ाई-लिखाई करवानी चाहिए। सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए जो फ़ैसला लिया है, वो हम सबके हित में है।"
 
"कुछ ग़ैर सरकारी काज़ी, इमाम पैसों की लालच में निकाह के समय लड़का-लड़की की उम्र की जाँच नहीं करते, वैसे लोगों के ख़िलाफ़ सरकार को सख़्त क़दम उठाने चाहिए।"
 
राजनीति के चलते मुसलमानों पर आरोप?
इस मामले पर काज़ी मौलाना फख़रुद्दीन कहते हैं, "मेरे हिसाब से यह किसी भी तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। इस्लामी क़ानून में लड़कियों को माहवारी के बाद बालिग़ माना जाता है। किसी लड़की को माहवारी 12 साल में होती है तो किसी को 14 साल में होती है।"
 
"अक्सर 15 साल की उम्र को ही बालिग़ माना जाता है। लेकिन शरीयत में यह कहीं भी उल्लेख नहीं कि यही उसकी शादी की उम्र होगी। इसलिए 18 साल से पहले किसी बच्ची की शादी नहीं करनी चाहिए।"
 
पेशे से वकील और मनकाचार (दक्षिण सलमारा) से एआईयूडीएफ़ विधायक मोहम्मद अमीनुल इस्लाम का कहना है, "बाल विवाह केवल मुसलमानों में ही नहीं हो रहा है बल्कि कई जनजातियों में भी हो रहा है। बाल विवाह को राजनीतिक फ़ायदे के लिए केवल मुसलमानों से जोड़ना उचित नहीं होगा। लिहाजा इस कुप्रथा को हिंदू-मुसलमान के नज़रिए से नहीं देखना चाहिए।"
 
वे कहते हैं, "दरअसल बाल विवाह पूरी तरह बंद होनी चाहिए। इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए। मैं व्यक्तिगत तौर पर इस काम में सरकार के ख़िलाफ़ नहीं हूँ। सरकार से गुज़ारिश है कि जिन लोगों को 'बाल विवाह रोकथाम (निषेध) अधिकारी' के रूप में नामित किया जाएगा, उन पर पूरी नज़र रखे ताकि क़ानून को पूरी तरह लागू किया जा सके।"
 
मुख्यमंत्री सरमा ने बाल विवाह को रोकने के लिए पुलिस को 15 दिनों के भीतर एक बड़ी कार्रवाई की ज़िम्मेदारी दी है।
 
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया है कि कैबिनेट के फ़ैसले के बाद बाल विवाह को रोकने के लिए कई नए दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं और एक अलग तरह की एफ़आईआर का फ़ॉर्मेट बनाया गया है।
 
पहले क्या था क़ानून?
नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक़, भारत में 10 में से दो से ज़्यादा लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है।
 
भारत में बाल विवाह रोकने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 है। इस क़ानून को 2007 में लागू किया गया था।
 
इस क़ानून के मुताबिक़, शादी की उम्र एक लड़की के लिए 18 साल और लड़के के लिए 21 साल होनी चाहिए। बाल विवाह के मामलों में क़ानून का उल्लंघन होने पर दो वर्ष सश्रम कारावास और एक लाख रुपए ज़ुर्माने का प्रावधान है।
 
इस क़ानून में महिलाओं को ख़ास रियायत है। अगर वह दोषी पाई भी जाती है तो उन्हें जेल की सज़ा नहीं दी जाती। हालाँकि इसके बावजूद अब भी बाल विवाह पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकी है।
 
ये फ़ैसला अलग कैसे?
असम सरकार में कैबिनेट ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 लगाने के साथ ही 14 साल से कम उम्र में शादी के मामलों में पॉक्सो एक्ट लगाने का फ़ैसला किया है।
 
आमतौर पर पुराने क़ानून की कई धाराओं के तहत ज़मानत मिलने की गुंज़ाइश रहती है लेकिन पॉक्सो लग जाने के बाद अभियुक्त को ज़मानत नहीं मिलेगी।
 
इसके अलावा असम सरकार गाँवों में बाल विवाह की घटनाओं के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए पंचायत सचिवों को नियुक्त करेगी, जो क़ानूनी कार्रवाई में पुलिस की मदद करेंगे।

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