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अफगानिस्तान में तालिबान विरोधी हो रहे हैं एकजुट, लेकिन क्या वे टक्कर दे पाएँगे?

हमें फॉलो करें अफगानिस्तान में तालिबान विरोधी हो रहे हैं एकजुट, लेकिन क्या वे टक्कर दे पाएँगे?

BBC Hindi

, गुरुवार, 19 अगस्त 2021 (07:52 IST)
ख़ुदा-ए-नूर नासिर, बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद
अफगानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने घोषणा की है कि अफगानिस्तान में चल रही जंग ख़त्म हो गई है। लेकिन दूसरी ओर अज्ञात स्थान से जारी किए गए एक संदेश में अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने कहा है कि राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के देश छोड़ कर चले जाने के बाद, अब वे अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं और जंग अभी ख़त्म नहीं हुई है।
 
काबुल में देश का नियंत्रण संभालने के बाद मंगलवार को अफ़ग़ान तालिबान के प्रवक्ता ने अपनी पहली ऑन-स्क्रीन प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। इस कॉन्फ़्रेंस में ज़बीहुल्लाह ने आम माफ़ी देने, महिलाओं के अधिकार और नई सरकार बनाने को लेकर बात की थी।
 
लेकिन प्रेस कॉन्फ़्रेंस से कुछ ही समय पहले, अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति, अमरुल्लाह सालेह ने घोषणा की कि अफ़ग़ान संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति, इस्तीफ़े या मृत्यु की स्थिति में, उपराष्ट्रपति देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है।
 
ट्विटर पर अपने बयान में, अमरुल्लाह सालेह ने कहा, "मैं इस समय देश में हूँ और क़ानूनी रूप से कार्यवाहक राष्ट्रपति हूँ। मैं सभी नेताओं का समर्थन और सर्वसम्मति पाने के लिए उनके संपर्क में हूँ।"
 
जहाँ एक तरफ अशरफ़ ग़नी ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है, वहीं अमरुल्लाह सालेह उन कुछ अफ़ग़ान नेताओं में से एक है, जो तालिबान नियंत्रण के ख़िलाफ़ एक विरोध आंदोलन शुरू करने के लिए तैयार हैं और सशस्त्र तालिबान लड़ाकों के देश पर क़ब्ज़े को "अवैध" कहते हैं।
 
फ़िलहाल स्थिति यह है कि तालिबान ने देश के सभी महत्वपूर्ण सीमा मार्गों पर क़ब्ज़ा कर लिया है और सिर्फ़ कुछ ही इलाक़े ऐसे हैं, जहाँ तालिबान ने अभी तक नियंत्रण का दावा नहीं किया है।
 
मसूद के बेटे ने किया जंग का ऐलान
इससे एक दिन पहले, फ़्रांसीसी पत्रिका के लिए लिखे गए एक लेख में, "शेर-ए-पंजशीर" के नाम से मशहूर अफ़ग़ान नेता अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने अपने पिता के नक़्शेक़दम पर चलते हुए तालिबान के ख़िलाफ़ 'जंग लड़ने की घोषणा' कर दी है।
 
अहमद मसूद ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में दावा किया है कि वो अफगानिस्तान से बाहर नहीं गए हैं और पंजशीर में अपने लोगों के साथ है।
 
क़ाबुल से लगभग तीन घंटे की दूरी पर पंजशीर प्रांत तालिबान के ख़िलाफ़ विरोध के लिए जाना जाता है। साल 1996 से 2001 तक तालिबान के शासन के दौरान भी यह प्रांत उनके नियंत्रण में नहीं था। वहाँ उत्तरी गठबंधन (नॉर्दर्न एलायंस) ने तालिबान का मुक़ाबला किया था।
 
पंजशीर में मौजूद सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि अमरुल्लाह सालेह और अहमद मसूद ने पूर्व उत्तरी गठबंधन के प्रमुख कमांडरों और सहयोगियों के साथ फिर से संपर्क किया और उन सभी को संघर्ष में शामिल होने के लिए राज़ी भी किया है।
 
राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के एक क़रीबी ने रविवार को अफगानिस्तान की राजधानी क़ाबुल में राष्ट्रपति भवन में हुए कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला है।
 
उन्होंने बीबीसी को बताया कि जब पिछले शुक्रवार को तालिबान क़ाबुल पर क़ब्ज़ा करने के लिए आ रहे थे, तो कुछ हलकों ने राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी पर इस्तीफ़ा देने के लिए दबाव डाला था। लेकिन वो नहीं माने।
 
उन्होंने दावा किया कि शनिवार और रविवार की मध्य रात्रि तक कई बैठकों में, राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के कई क़रीबी सहयोगियों ने उन्हें इस्तीफ़ा देने और देश छोड़ कर चले जाने की सलाह दी थी, लेकिन अमरुल्लाह सालेह ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी से आख़िरी समय तक कहा कि वे न इस्तीफ़ा दें और न ही देश छोड़ें।
 
उनके मुताबिक़, इस मौक़े पर अमरुल्लाह सालेह ने बार-बार कहा कि ''हम तालिबान का मुक़ाबला करेंगे।''
 
राष्ट्रपति भवन की इन बैठकों के बारे में एक अन्य सूत्र ने भी इसी बात की पुष्टि करते हुए कहा कि अमरुल्लाह सालेह राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के इस्तीफ़ा देने के सख़्त ख़िलाफ़ थे।
 
पंजशीर में जुट रहे हैं तालिबान विरोधी
उन्होंने बताया कि क़ाबुल में तालिबान के आने और राष्ट्रपति ग़नी के देश से चले जाने के बाद, अमरुल्लाह पंजशीर चले गए और अब भी वहीं हैं। माना जा रहा है कि अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी भी अमरुल्लाह के साथ हैं।
 
अमरुल्लाह सालेह का एक ऑडियो संदेश भी सामने आया है, जिसमें वे भविष्य की कार्रवाई के बारे में बात कर रहे हैं।
 
अमेरिका में स्थित अफ़ग़ान विश्लेषक हाशिम वहदतयार के अनुसार अमरुल्लाह सालेह के संदेश में दो महत्वपूर्ण बातें हैं। "उनमें से एक बात यह है कि अगर तालिबान एक लोकतांत्रिक सरकार की बात करते हैं, तो शायद वे कुछ हद तक मान जाएँ। लेकिन अगर तालिबान ने अपनी तरह की सरकार बनाने की घोषणा की, तो शायद अमरुल्लाह उनके ख़िलाफ़ लड़ेंगे।"
 
लेकिन फिलहाल ये साफ़ नहीं है कि अमरुल्लाह को देश में कितना समर्थन मिलेगा।
 
तालिबान के ख़िलाफ़ प्रतिरोध कैसे गति पकड़ सकता है?
वैसे तालिबान ने अभी तक अफगानिस्तान में अपनी नई सरकार के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहा है, लेकिन ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा है कि उनकी सरकार में सभी क्षेत्रों और विचारधारा के अफ़ग़ान नागरिक शामिल होंगे। उनकी सरकार अफगानिस्तान में सभी दलों का प्रतिनिधित्व करेगी।
 
विश्लेषक हाशिम वाहदतयार का कहना है कि अब इसके बाद जो कुछ भी होता है, उसके लिए तालिबान ज़िम्मेदार होंगे, क्योंकि उनके अनुसार, "इस समय तालिबान सत्ता में है।"
 
वहदतयार आगे कहते हैं कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार, तालिबान इस बात पर भी विचार कर रहे हैं कि अमरुल्लाह सालेह और अहमद मसूद से बात करने के लिए, उनके पास कोई टीम भेजी जाए और उन्हें सरकार में शामिल होने की पेशकश की जाए।
 
लेकिन अगर ऐसा होता भी है, तो पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जो तालिबान और उनके विरोधियों को एक साथ आने में रुकावट पैदा कर सकती हैं।
 
वहदतयार, इन घटनाओं का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि उत्तरी गठबंधन और ज़्यादातर लोग अहमद शाह मसूद को "नायक" कहते हैं, "तो क्या यह उपाधि तालिबान को स्वीकार्य होगी?"
 
याद रहे, कि अहमद शाह मसूद को 9/11 से दो दिन पहले अल-क़ायदा के दो आत्मघाती हमलावरों ने मार दिया था। अब तक, नॉर्दर्न एलायंस और अहमद शाह मसूद को मानने वाले उनकी बरसी पर हर साल पूरे क़ाबुल शहर को बंद करते रहे हैं।
 
वहदतयार ने ज़बीहुल्लाह मुजाहिद की प्रेस कांफ्रेंस का ज़िक्र करते हुए कहा कि अगर तालिबान ने अपने वादे पूरे किए, तो उनके लिए चुनौतियाँ कम हो सकती हैं।
 
लेकिन उन्होंने कहा कि अगर तालिबान ने सत्ता लेने के बाद अपने पुराने दौर की तरह कड़े फ़ैसले किए, तो उनकी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
 
सड़कों पर विरोध के वायरल वीडियो
तालिबान का एक संगठित रूप से विरोध करने के लिए किसी गुट के सामने आने में भले देर लगे, लेकिन सड़कों पर छिटपुट विरोध सामने आने लगा है।
 
बीते दो दिनों में कम से कम तीन वीडियो सामने आए हैं, जिनमें लोगों ने तालिबान के सामने अपना विरोध दर्ज करवाया है।
 
एक वीडियो में काबुल की सड़क पर कुछ महिलाओं हाथ से लिखे प्लेकार्ड लिए नारे लगाती देखी जा सकती हैं। ख़बरों के मुताबिक वो तालिबान से, उन्हें काम पर जाने देने की मांग कर रही थीं। उनके आस-पास हथियारबंद तालिबान भी खड़े हैं।
 
ख़ोश्त प्रांत से आए एक अन्य वीडियो में कुछ नौजवानों को एक चौराहे से हाथ में अफगानिस्तान का झंडा लिए, नारे लगाते हुए गुज़रते देखा जा सकता है। तालिबान लड़ाके हैरानी ने उन्हें देख रहे हैं।
 
18 अगस्त को एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें पाकिस्तान की सीमा के पास एक बड़े अफ़ग़ान शहर जलालाबाद में कुछ लोग, तालिबान का सफेद झंडा हटाकर, पिछली सरकार का हरा-लाल ध्वज लगाते दिख रहे हैं।
 
उधर बामियान में तालिबान ने वहाँ के मशहूर हज़ारा नेता अब्दुल अली मज़ारी की मूर्ति तोड़ दी है। तालिबान ने 1996 में मज़ारी की हत्या कर दी थी। मज़ारी हज़ारा शिया समुदाय के एक प्रमुख नेता थे और तालिबान का विरोध करते थे।
 
यह वही बामियान है, जहाँ गौतम बुद्ध की दो विशालकाय मूर्तियाँ थीं, जिन्हें करीब दो दशक पहले तालिबान ने नष्ट कर दिया था।
 
छठी शताब्दी में निर्मित बामियान में गौतम बुद्ध की बड़ी मूर्ति 53 मीटर और छोटी 35 मीटर ऊँची थी। तालिबान प्रशासकों ने उन्हें इस्लाम के ख़िलाफ़ बताते हुए तोपों से गोले दाग़कर नष्ट कर दिया था।

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