रियाज़ मसरूर
बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर से
भारत सरकार के दूसरे सबसे ताक़तवर शख़्स और गृह मंत्री अमित शाह बुधवार को भारत प्रशासित कश्मीर के दौरे पर आ रहे हैं।
उनका यह दौरा मिली-जुली भावनाओं वाले समय में हो रहा है जहां एक तरफ़ एनकाउंटरों में आम लोगों की मौत पर नाराज़गी है तो दूसरी तरफ़ केंद्र की ओर से सूबे में शांति स्थापित करने की इच्छा जताई गई है।
बतौर गृह मंत्री यह अमित शाह का पहला कश्मीर दौरा होगा। वे राज्यपाल सत्यपाल मलिक और सेना के शीर्ष कमांडरों से मुलाक़ात करके हालात की जानकारी लेंगे। माना जा रहा है कि वे कश्मीर के दक्षिणी हिस्से में स्थित हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ अमरनाथ भी जा सकते हैं।
आगे बढ़ेगा हुर्रियत से बातचीत का प्रस्ताव?
लेकिन अमित शाह के इस दौरे में सबसे ख़ास बात वह उम्मीद है जो हाल ही में राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान से उपजी थी। मलिक ने कहा था कि अलगाववादी समूह हुर्रियत कॉन्फेंस कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए बातचीत को तैयार है।
हुर्रियत नेतृत्व की ओर से भी बातचीत को लेकर सकारात्मक संकेत मिले हैं और कहा गया है कि शांति स्थापित करने और कश्मीर मसले के हल के लिए किसी भी 'इंडो-पाक क़दम' का समर्थन किया जाएगा।
पूर्व प्रधानमंत्रियों अटलबिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह से हुई बातचीत में हुर्रियत प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहे समूह के पूर्व चेयरमैन अब्दुल ग़नी बट ने कहा कि जंग कभी भी विकल्प नहीं है। दोनों देशों को युद्ध और ध्वंस से आगे सोचना होगा। हमें बात करने की ज़रूरत है और हम तैयार हैं।
सूबे में भारत के पक्षधर नेता केंद्र की कश्मीर नीति में बदलाव के आसार देखते हुए उत्साहित हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ़्ती ने लगभग एक जैसे बयानों में कश्मीर के अलगाववादियों और पाकिस्तान से सार्थक संवाद की वकालत की है।
पूर्व विधायक और कश्मीर के मुखर नेता इंजीनियर रशीद का कहना है कि मीडिया का एक हिस्सा कह रहा है कि हुर्रियत ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। हुर्रियत की एक भूमिका है और अमित शाह को भी उदारता दिखानी चाहिए।
रशीद 'हिंसा के दुष्चक्र को ख़त्म करने और हल की प्रक्रिया शुरू करने के लिए' चरमपंथी नेतृत्व से भी बातचीत की वकालत करते हैं।
बातचीत का एजेंडा क्या होगा
मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में सूबे में हिंसक विरोध प्रदर्शन, एनकाउंटर, हत्याएं, पाबंदियां, गिरफ्तारी और राजनीतिक समूहों पर प्रतिबंध की घटनाएं देखने को मिली थीं, लेकिन अब यहां कई लोग मानने लगे हैं कि नई मोदी सरकार 'कश्मीर मसले के सैन्य नहीं, बल्कि राजनीतिक हल को लेकर अधिक आत्मविश्वासी नजर आती है।
हालांकि अतीत में दिल्ली और श्रीनगर के बीच वार्ता की कई कोशिशें परवान नहीं चढ़ पाई हैं, इसलिए नौजवान कश्मीरी आशंकाओं से भरे हुए हैं। श्रीनगर में रहने वाली रिसर्च स्कॉलर इंशा आफ़रीन कहती हैं कि पुलिस नौजवानों के पीछे पड़ी है, ज़्यादातर हुर्रियत नेता जेल में हैं और लोग मारे जा रहे हैं। बातचीत का एजेंडा क्या होगा और बात कौन करेगा?"
हालांकि नौजवान लेखक एजाज़ को अमित शाह के दौरे से उम्मीदें हैं। वे कहते हैं कि अगर राज्यपाल का प्रशासन स्थिति के नियंत्रण में होने और सब कुछ पटरी पर लौटने का दावा कर रहा है तो हमें उम्मीद है कि अमित शाह अच्छी ख़बर के साथ यहां आ रहे हैं।
अतीत में दिल्ली-श्रीनगर के बीच बातचीत की 6 से ज़्यादा कोशिशों में आम सहमति नहीं बन सकी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपनी शर्तों से डिगने को तैयार नहीं हुए।
श्रीनगर में रहने वाले पत्रकार और विश्लेषक रियाज़ मलिक कहते हैं कि "दिल्ली अपनी शर्तें थोपना चाहती है। हुर्रियत भी पीछे हटने को तैयार नहीं। अगर अमित शाह के पास कोई बीच का रास्ता है और वे किसी फॉर्मूले के साथ आ रहे हैं तो हम गतिरोध टूटने की उम्मीद कर सकते हैं।
भारतीय गृह मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ भारत प्रशासित कश्मीर में बीते तीन साल में सात सौ चरमपंथी मारे गए हैं। इसके अलावा एनकाउंटर की जगहों पर सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने वाले 150 से ज़्यादा आम लोगों की मौत हुई है।
अमित शाह जब कश्मीर में बोलेंगे तो इतने वर्षों से मौत, तबाही और पाबंदियों के बीच रहते हुए ज़्यादातर कश्मीरी उनसे हृदय-परिवर्तन की उम्मीद लगाए बैठे होंगे।