महाराष्ट्र में अचानक हुई सियासी उठापटक के बीच जो शख़्स सबसे ज़्यादा चर्चा के में है, वो हैं अजित पवार। अजित पवार शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के सत्ता तक पहुंचने के बीच में वो दीवार बनकर आए जिसने बीजेपी के लिए सरकार बनाने का रास्ता बना दिया।
शनिवार सुबह देवेंद्र फडणवीस के सीएम और अजित पवार के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ये सवाल बार-बार उठ रहे हैं कि अजित पवार क्या अलग पार्टी बनाएंगे और एनसीपी उन्हें लेकर क्या फ़ैसला लेगी। एनसीपी प्रमुख शरद पवार का रुख़ भी अपने भतीजे अजित पवार को लेकर साफ़ नहीं है।
उन्होंने शनिवार को कहा कि उनके भतीजे अजित पवार ने राज्यपाल को गुमराह किया है। उनके पास ज़रूरी विधायकों का समर्थन नहीं है। अजित पवार का ये क़दम दल-बदल क़ानून के तहत आता है और उन्होंने अनुशासनहीनता की है। इसके बाद अजित पवार को विधायक दल के नेता के पद से भी हटा दिया गया, लेकिन मीडिया में अजित पवार को मनाने की ख़बरें भी आती रहीं।
अजित पवार ने ट्विटर पर लिखा कि वो एनसीपी के ही सदस्य हैं और शरद पवार उनके नेता हैं। उन्होंने अपना प्रोफाइल भी बदलकर उपमुख्यमंत्री कर लिया है।
शरद पवार ने भी एक ट्वीट किया और ये साफ़ कर दिया कि एनसीपी, बीजेपी के साथ नहीं जाएगी। उन्होंने लिखा कि बीजेपी के साथ गठबंधन करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। एनसीपी ने सर्वसम्मति से शिवसेना और कांग्रेस के साथ जाने का फ़ैसला लिया है। अजित पवार लोगों को उलझन में डालने के लिए गुमराह कर रहे हैं।
इन सभी कड़ी बातों के बावजूद शरद पवार ने अजित पवार को पार्टी से बाहर नहीं निकाला। अब भी अजीत पवार एनसीपी के सदस्य हैं। ऐसे ही दूसरे उदाहरण भी हैं, जब पार्टियों ने अपने बाग़ी विधायकों के विरोध के बावजूद सदस्यता वापस नहीं ली।
बीजेपी ने ही शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और कीर्ति आज़ाद के पार्टी के ख़िलाफ़ लगातार बोलने के बावजूद उन्हें पार्टी से नहीं निकाला था। इसी के अलग-अलग पक्षों को जानने के लिए बीबीसी संवाददाता नवीन नेगी ने बात की शिमला की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर चंचल सिंह से-
क्या है वजह
शरद पवार के अजित पवार को पार्टी से न निकालने के पीछे की एक बड़ी वजह दल-बदल क़ानून के प्रावधान हैं। ये प्रावधान कहते हैं कि दल-बदल क़ानून तभी लागू हो सकता है जब कोई निर्वाचित विधायक पार्टी का सदस्य हो। अगर कोई पार्टी अपने किसी निर्वाचित सदस्य को निष्कासित करती है यानी पार्टी से बाहर निकाल देती है तो 10वीं सूची कहती है कि उस पर दल-बदल क़ानून लागू नहीं होगा।
अगर अजित पवार दो तिहाई सदस्यों को अपने साथ नहीं जोड़ पाते हैं तो उन पर अपने आप ये क़ानून लागू हो जाएगा। अगर किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग हो जाते हैं या किसी अन्य पार्टी में विलय कर लेते हैं तो उस मामले में दल-बदल क़ानून लागू नहीं होता। ऐसे में अजित पवार को दो तिहाई विधायकों का बहुमत चाहिए होगा।
दल-बदल क़ानून अनिवार्य होता है और किसी राजनीतिक पार्टी की इच्छा पर भी निर्भर नहीं करता है। जैसे कि अगर एनसीपी अजित पवार पर दल-बदल क़ानून के तहत कार्रवाई न भी चाहे तो भी ये क़ानून उन पर लागू होगा। इसलिए पार्टियां बाग़ी नेताओं से सदस्यता नहीं छीनतीं और उन नेताओं को किस मामले में विप जारी होने पर पार्टी के पक्ष में ही वोट डालना पड़ता है।
लेकिन, उलझन अब भी है...
संविधान में जो 10वीं सूची है उसके मुताबिक़ विधानसभा का कोई भी सदस्य (विधायक) अगर अपनी पार्टी की सदस्यता अपनी मर्ज़ी से छोड़ता है और दूसरी पार्टी में शामिल हो जाता है तो उस पर दल-बदल क़ानून लागू होता है।
लेकिन, महाराष्ट्र के मामले में अब भी उलझन बाक़ी है, क्योंकि चुनाव तो हो गया है पर अभी तक विधायकों ने विधानसभा सदस्य के तौर पर शपथ नहीं ली है। ऐसे में उन पर दल-बदल क़ानून लागू होगा या नहीं, इस पर स्थिति साफ़ नहीं है।
ना तो 10वीं सूची में इस पर स्पष्टता है और ना ही सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे किसी मामले में कोई फ़ैसला दिया है। हालांकि, एक मामला रामेश्वर प्रसाद बनाम केंद्र सरकार का है जो इस मामले में संदर्भ का काम कर सकता है।
रामेश्वर प्रसाद मामले में ये कहा गया था कि अनुच्छेद 172 के अनुसार बिहार विधानसभा के चुनाव हो जाने के बाद निर्वाचित सदस्यों ने शपथ नहीं ली है तो विधानसभा को भंग किया जा सकता है या नहीं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सदस्यता की शपथ ज़रूरी नहीं है और अनुच्छेद 172 और संविधान की अन्य नीति सम्मत धाराओं के अनुसार विधानसभा भंग की जा सकती है। इसके अनुसार अगर वर्तमान स्थिति देखी गई तो दल-बदल क़ानून बिना शपथ लिए भी लागू हो सकता है।
हालांकि, दूसरे विधायकों को छोड़ दें तो, क्योंकि अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री की शपथ ले ली है तो उन पर अब भी दल-बदल क़ानून लागू हो सकता है। इस संबंध में अंतिम फ़ैसला स्पीकर लेता है। लेकिन, महाराष्ट्र में दुविधा ये भी है कि न तो विधानसभा सदस्यों की पहली बैठक हुई है और न ही स्पीकर चुने गए हैं। अब इस मामले में फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट लेगा। अगर स्पीकर दल-बदल क़ानून पर कोई फ़ैसले लेता भी है तो उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
और कौन-से कारण
वहीं, राजनीतिक हलकों में ये भी चर्चा है कि एनसीपी अजित पवार को इसलिए पार्टी से नहीं निकाल रही है क्योंकि उनके वापस आने की उम्मीद है।
शनिवार को भी उन्हें मनाने के लिए कुछ क़रीबी नेता भेजे गए थे लेकिन अजित पवार नहीं माने। आगे भी ऐसी कोशिशें हो सकती हैं। अगर पार्टी से निकाल दिया गया तो वापसी के रास्ते भी बंद हो जाएंगे। साथ ही अजित पवार का खेमा भी अलग हो सकता है।