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आदित्य- एल1: रूस और चीन को पीछे छोड़ स्पेस मार्केट में कैसे अगली कतार में पहुंचा भारत

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BBC Hindi

, रविवार, 3 सितम्बर 2023 (07:57 IST)
शकील अख्तर, बीबीसी उर्दू संवाददाता, दिल्ली
Aditya L1 : चंद्रयान-3 की चांद पर सफल लैंडिंग के बाद अब भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी इसरो ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सोलर मिशन 'आदित्य-एल1' को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इसके साथ ही आकाशगंगा में अंतरिक्ष अन्वेषण का एक नया युग शुरू हो गया है।
 
यह मिशन, चंद्रयान की तरह, पहले ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करेगा और फिर यह अधिक तेजी से सूर्य की ओर उड़ान भरेगा। 'आदित्य-एल1' पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचेगा। जब तक कि यह पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल पर काबू नहीं पा लेता, ये बीच में एक बिंदु (लैगरेंज प्वाइंट) पर रुकेगा जिसे वैज्ञानिक भाषा में एल1 नाम दिया गया है।
 
'आदित्य-एल1' अंतरिक्ष यान यह दूरी करीब चार महीने में तय करेगा। यहां से वह सूर्य की विभिन्न गतिविधियों, आंतरिक और बाहरी वातावरण आदि का अध्ययन करेगा। संयुक्त राज्य अमेरिका पहले इसी तरह का एक मिशन एल-2 क्षेत्र में सूर्य के करीब भेज चुका है।
 
भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान और अन्वेषण में 'आदित्य एल1' को एक बड़ा कदम माना जा रहा है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 मिलियन किमी है।
 
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने स्पेस लॉन्च के काम को प्राइवेट कंपनियों के लिए खोल दिया है और इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। सरकार का लक्ष्य अगले दशक में ग्लोबल लॉन्च मार्केट में अपनी हिस्सेदारी पांच गुना तक बढ़ाने का है। स्पेस सेक्टर जैसे-जैसे ग्लोबल बिजनेस में बदल रहा है, इस सेक्टर में अपनी काबिलियत साबित करने के लिए देश की उम्मीदें इसरो की कामयाबी पर टिकी हैं।
 
अंतरिक्ष में भारत का बढ़ता प्रभाव
23 अगस्त को चंद्रमा पर चंद्रयान-3 उतारने वाला भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया।
 
यह अंतरिक्ष यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा है, जहां अभी तक किसी भी देश का कोई मिशन नहीं पहुंचा है। यह भारतीय वैज्ञानिकों की एक बड़ी उपलब्धि है।
 
शिव नादर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ। आकाश सिन्हा का कहना है, "चंद्रयान 3 के रोवर को बहुत ही स्मार्ट तरीके से डिजाइन किया गया है। छह पहियों वाली यह छोटी सी मशीन एक कार की तरह है। रोवर अपने निर्णय स्वयं लेता है, अपने रास्ते स्वयं चुनता है। चंद्रमा की सतह के वातावरण और तापमान आदि पर नज़र रखता है। यह अपना काम अच्छे से कर रहा है।"
 
भारत ने 1950 और 1960 के दशक में उस समय अंतरिक्ष अनुसंधान का काम शुरू किया जब देश गरीबी और निर्धनता की चुनौती का सामना कर रहा था। 1963 में जब इसने अपना पहला रॉकेट लॉन्च किया तो किसी को यह भ्रम नहीं था कि यह अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है।
 
फ़िल्म 'इंटरस्टेलर' के बजट से तुलना
लेकिन आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अब यह निश्चित रूप से दुनिया के प्रमुख देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों की कतार में खड़ा है।
 
भारत ने चंद्रयान-3 मिशन पर लगभग 70 मिलियन डॉलर खर्च किए हैं, जो क्रिस्टोफर नोलन की 2014 की अंतरिक्ष मिशन फ़िल्म 'इंटरस्टेलर' पर खर्च किए गए 131 मिलियन डॉलर के आधे से भी कम है।
 
अंतरिक्ष अनुसंधान और विकास को आमतौर पर अमीर देशों का साहसिक कार्य माना जाता है। लेकिन भारत की सफलता ने दुनिया के उभरते देशों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक नया उत्साह और जुनून भी पैदा किया है।
 
चंद्रमा या सूर्य के अनुसंधान और उससे प्राप्त ज्ञान पर किसी एक देश का एकाधिकार नहीं है। यह दुनिया भर में मानव विकास और मानवता के लिए समर्पित है।
 
चंद्रमा और सूर्य के अनुसंधान से भारतीय वैज्ञानिकों को जो भी मिलेगा, उससे पूरी दुनिया को फायदा होगा। दुनिया ने जो भी प्रगति की है वह वैज्ञानिक अनुसंधान और नए आविष्कारों के कारण ही संभव हो पाई है।
 
क्या कहते हैं आम लोग
चंद्रयान की सफलता ने भारत में एक नई हलचल और उत्साह पैदा कर दिया है। छात्रा अदा शाहीन कहती हैं, "यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है। यह इस बात का भी संकेत है कि भारत तेजी से विकास कर रहा है।"
 
शाहरुख खान नाम के एक नौजवान ने अपनी भावनाएं कुछ इस तरह से जाहिर कीं, "मुझे खुशी है कि भारत ने अंतरिक्ष में एक बड़ी छलांग लगाई है। मेरा बचपन का सपना सच हो गया। मैं बचपन से ही चंद्रमा पर अमेरिकी झंडे की तस्वीरें देख रहा हूं। मेरी इच्छा थी कि भारत का झंडा भी वहां पहुंच सके। मेरा बचपन का सपना सच हो गया।"
 
हालांकि इन विचारों के साथ वे कुछ सुझाव भी देते हैं। उनका कहना है कि वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष अन्वेषण से पहले पृथ्वी पर समस्याओं को हल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
 
उनके मुताबिक़, ऐसे अंतरिक्ष मिशन से कुछ हासिल नहीं होगा और यह देश की वास्तविक समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने का भ्रम है।
 
फ़राज़ फाखरी एक फिल्म निर्माता हैं। उनका कहना है कि चंद्रयान 3 की सफलता ने निजी अंतरिक्ष क्षेत्र को बड़ा बढ़ावा दिया।
 
"रोवर ने कुछ ही दिनों में चंद्रमा पर सल्फर और अन्य खनिज भंडार का पता लगाया है। इसमें दिन और रात के बीच असामान्य तापमान परिवर्तन भी दर्ज किया गया। यह अंतरिक्ष मिशन एक बड़ी सफलता है और मुझे लगता है कि अब भारत अंतरिक्ष की दौड़ में शामिल हो गया है।"
 
इसरो के साथ प्राइवेट स्पेस कंपनियां
भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान एवं विकास कार्य केवल भारतीय अनुसंधान संगठन इसरो ही नहीं करता है। हाल के वर्षों में देश में कई निजी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कंपनियां उभरी हैं। ये स्टार्ट-अप कंपनियां अंतरिक्ष क्षेत्र में बहुत तेजी से आगे बढ़ रही हैं। उनमें से कई अंतरराष्ट्रीय महत्व प्राप्त कर रही हैं।
 
चंद्रमा पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद इसरो निदेशक ने इस उपलब्धि के लिए इसरो वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया और भारत की कई निजी अंतरिक्ष कंपनियों की भी सराहना की। इस अंतरिक्ष मिशन में इन निजी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
 
कुछ साल पहले तक अंतरिक्ष अनुसंधान और विकास का काम केवल इसरो और उससे संबद्ध वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी संस्थानों के हाथ में था, लेकिन 2020 में मोदी सरकार ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया।
 
तेज़ी से बढ़ते स्टार्टअप
पिछले चार वर्षों में लगभग डेढ़ सौ निजी अंतरिक्ष कंपनियाँ अस्तित्व में आई हैं। ये टेक स्टार्टअप बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। इन कंपनियों में अरबों रुपये का निवेश किया जा रहा है।
 
इसरो के अंतरिक्ष मिशन में उच्च प्रौद्योगिकी स्टार्टअप और निजी कंपनियों की भूमिका बढ़ती जा रही है। ये कंपनियां भी अपने दम पर आगे बढ़ रही हैं। 2022 में, 'स्काईरूट' नामक एक निजी कंपनी ने भारत में निर्मित रॉकेट पर अपना उपग्रह अंतरिक्ष में लॉन्च किया था।
 
यह पहली बार था कि भारत की किसी निजी कंपनी ने अपने ही रॉकेट से अपना उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया था। हैदराबाद स्थित यह कंपनी इस साल के अंत तक एक बड़ा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रही है।
 
रूस और चीन छूटे पीछे
अमेरिका और यूरोप की तुलना में भारत से उपग्रह भेजना सस्ता है। इससे इन निजी अंतरिक्ष कंपनियों का महत्व और भी बढ़ गया है। वैश्विक राजनीतिक कारणों से रूस और चीन अब अंतरिक्ष व्यापार में पिछड़ रहे हैं।
 
ऐसे में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ-साथ ये निजी भारतीय अंतरिक्ष कंपनियां भी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं।
 
विशेषज्ञों के मुताबिक, अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने का बाजार फिलहाल छह अरब डॉलर का है। अगले दो वर्षों में इसके तीन गुना होने की उम्मीद है।
 
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, एलन मस्क की 'स्पेसएक्स' कंपनी बाज़ार में एक नई चुनौती बनकर उभरी है।
 
स्पेसएक्स अंतरिक्ष में जाने के लिए स्पेस शटल रॉकेट यानी दोबारा इस्तेमाल होने वाले अंतरिक्ष रॉकेट का उपयोग करता है।
 
यह भारी वजन और बड़े आकार के ग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है जिससे इस रॉकेट के जरिए उपग्रह लॉन्च करना भारत की तुलना में सस्ता है।
 
भारतीय निजी कंपनियाँ अब अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विशेष क्षेत्रों में काम कर रही हैं। वे न केवल विभिन्न अंतरिक्ष क्षेत्रों में इसरो के साथ सहयोग कर रहे हैं, बल्कि अब वे अमेरिकी और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों की भी मदद कर रहे हैं।
 
इसरो को अब इन निजी कंपनियों के सहयोग से नए मिशनों पर अधिक और तेजी से काम करने का अधिकार मिल रहा है।

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