प्रवीण कुमार, अंबेडकर नगर से, बीबीसी हिंदी के लिए
सबसे पहले कुछ ज़रूरी बातें इस चुनाव क्षेत्र के बारे में। अंबेडकर नगर 1995 में ज़िला बना, उस समय मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। इस ज़िले की संसदीय सीट का नाम पहले अकबरपुर था जो अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित थी। 2009 में संसदीय सीटों का परिसीमन हुआ जिसके अंबेडकरनगर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई जो अब अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित नहीं है। इस सीट को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गढ़ के तौर पर जाना जाता है। मायावती यहाँ से तीन बार जीतकर संसद तक पहुँची हैं।
इस सीट पर बसपा का असर कितना गहरा है, इसका अंदाज़ा इसी बात से होता है कि इस बार चुनाव लड़ रहे बीजेपी और सपा के उम्मीदवारों की राजनीतिक जड़ें भी बसपा से ही जुड़ी हुई हैं। इस चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार रितेश पांडेय हैं जो 2019 में भी यहाँ से चुनाव जीते थे लेकिन बसपा के उम्मीदवार के तौर पर। इस सीट पर दो और प्रमुख उम्मीदवार हैं--सपा के लालजी वर्मा और बसपा के क़मर हयात।
कांटे की टक्कर?
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 200 किलोमीटर की दूरी पर है अंबेडकर नगर का जिला मुख्यालय। लखनऊ से पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के ज़रिए हम जिले में प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले महरूआ बाजार चौराहा पड़ता है, महरूआ बाजार अंबेडकर नगर लोकसभा के कटेहरी विधानसभा के अंतर्गत आता है।
लोकसभा चुनाव में इस बार सपा के प्रत्याशी लालजी वर्मा इसी विधानसभा सीट से विधायक हैं। महरूआ बाज़ार में चौराहे पर छोटी-सी दुकान चलाने वाले नंदलाल को लगता है, "यहाँ लड़ाई सपा और भाजपा के बीच है, कांटे की टक्कर है।"
सपा और भाजपा प्रत्याशी के बारे में बताते हुए नंदलाल कहते हैं कि दोनों तो पहले बसपा में थे अब सपा और भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। पुराना नेता होने की वजह से जनाधार लालजी वर्मा का ज्यादा मजबूत है, लेकिन राम मंदिर बनने के कारण और मोदी जी की वजह से भाजपा को फ़ायदा मिला है। नंदलाल बसपा प्रत्याशी क़मर हयात के बारे में उनके नाम से ज़्यादा कुछ नहीं जानते।
संविधान को मुद्दा बनाने की कोशिश
अंबेडकर नगर लोकसभा के टांडा विधानसभा के अंतर्गत आने वाले सलाउद्दीनपुर गांव में सपा प्रत्याशी लालजी वर्मा अनुसूचित वर्ग के लोगों की बस्ती में लोगों को संबोधित करते हुए मिले।
अपने भाषण में वे बीजेपी पर हमले करते हैं, "यह चुनाव केवल सांसद बनाने का चुनाव नहीं है, यह चुनाव भारत का संविधान बचाने का चुनाव है। हमारा संविधान कहता है अनुसूचित जाति को 21 प्रतिशत आरक्षण होगा, पिछड़ी जाति को 27 प्रतिशत आरक्षण होगा। आज भाजपा सरकार ने उसकी धज्जियाँ उड़ा दी हैं। अंबेडकर नगर में 18 थाने हैं जिनमें एक भी पिछड़े वर्ग का प्रभारी नहीं है केवल एक अनुसूचित वर्ग का प्रभारी है।"
भाषण के अंत में लोगों का हाथ उठवा कर लालजी वर्मा शपथ दिलवाते हैं, "हम लोगों को इस बार संविधान बचाने के लिए वोट करना है।"
सलाउद्दीनपुर गाँव के निवासी 54 वर्षीय अशोक कुमार लालजी वर्मा की बातों से सहमत दिखते हैं। वे कहते हैं, 'यह सपा और बसपा गढ़ है, अगर इस चुनाव में बसपा कमज़ोर पड़ती है तो लोग सपा की ओर रुख़ कर सकते हैं क्योंकि बीजेपी वाले संविधान को ख़त्म करना चाहते हैं।'
लेकिन संविधान वाले मुद्दे पर भाजपा के उम्मीदवार लालजी वर्मा को चुनौती देते हैं। रितेश पांडेय कहते हैं कि सपा प्रत्याशी के बीच संविधान संशोधन का भ्रामक प्रचार कर रहे हैं। इनके पास मुद्दे नहीं हैं, इनकी सरकार में भ्रष्टाचार हुए, दंगे हुए, कानून व्यवस्था चौपट रही। इनके पास जनता को बताने के लिए कुछ नहीं है इसलिए ये ऐसे भ्रामक प्रचार का सहारा ले रहे हैं।
क्या कहते हैं स्थानीय राजनीति के जानकार?
स्थानीय पत्रकार हनुमान सिंह बताते हैं कि अंबेडकर नगर की लड़ाई बहुत कठिन है, सपा और भाजपा दोनों प्रत्याशी बहुत मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं, बसपा के लिए इस चुनाव में बहुत कुछ बचा नहीं है। सपा और भाजपा दोनों दलों के प्रत्याशी कभी बहुत करीब हुआ करते थे, दोनों बसपा में थे। समय और समीकरण बदला तो लालजी वर्मा सपा में चले गए और रितेश पांडेय भाजपा में।
अपनी जीत का दावा करते हुए भाजपा प्रत्याशी रितेश पांडेय कहते हैं, 'मुझे अपनी जीत पर 100 प्रतिशत भरोसा है। मैं पिछली बार एक लाख वोटों से जीता था, इस बार मुझे इस अंतर को और बढ़ाना है।'
रितेश पांडेय के पिता राकेश पांडेय सपा से विधायक हैं लेकिन फरवरी 2024 में हुए राज्यसभा के चुनाव में उन्होंने भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी।
पिता और पुत्र दोनों ने सपा और बसपा छोड़कर बीजेपी का रुख़ क्यों कर लिया, इस सवाल पर रितेश पांडे कहते हैं, 'मेरी राजनीति और उनकी (पिता) राजनीति अलग है, आपको कहीं वो मेरा प्रचार करते दिखे? एक पिता के तौर पर बस उनका आशीर्वाद मेरे साथ है। मैं एक नौजवान हूँ मैं अपने चुनाव की रणनीति खुद बना सकता हूँ।'
भाजपा उम्मीदवार के बारे में हनुमान सिंह बताते हैं, 'भाजपा प्रत्याशी रितेश पांडेय के पिता राकेश पांडेय ज़िले के कद्दावर नेता हैं, दो बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। क्षेत्र में उनकी पकड़ का फ़ायदा रितेश पांडेय को मिल रहा है।'
रितेश पांडेय ने लंदन से अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रबंधन की पढ़ाई की है, चुनाव आयोग को दिए गए अपने हलफ़नामे में अपनी संपत्ति 30 करोड़ रुपए बताया है। राजनीति में आने से पहले रितेश भारतीय कला को यूरोपीय ग्राहकों से जोड़ने के लिये एक फर्म चलाते थे।
अकबरपुर के रूपेश त्रिपाठी प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं। वे थोड़ा संभलकर बात करते हैं, 'यहाँ लड़ाई सपा और भाजपा के बीच में है, युवा नेता के तौर पर रितेश पांडेय लोकप्रिय लग रहे हैं। सपा प्रत्याशी लालजी वर्मा पिछले 25 सालों से यहां राजनीति में हैं उनका पक्ष भी मजबूत है। सपा के पक्ष में यादव, मुसलमान और कुर्मी वर्ग के होने से सपा का पक्ष मजबूत है, लेकिन सवर्ण और युवा वर्ग भाजपा के साथ दिखाई दे रहा है।'
रूपेश त्रिपाठी को लगता है कि राम मंदिर बनने से भाजपा का पक्ष थोड़ा मज़बूत ज़रूर हुआ है।
लालजी वर्मा को जीत का भरोसा
वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ रहे लालजी वर्मा कहते हैं, "इस बार का जो चुनाव है उसे जनता ख़ुद लड़ रही है। मैं 44 साल शुद्ध राजनीति में जनता के बीच रहा हूँ जिसकी वजह से जनता का समर्थन मुझे मिल रहा है। आज बसपा लड़ाई से बाहर है। मुझे पूरा विश्वास है कि बसपा का 80 प्रतिशत वोट समाजवादी पार्टी को मिलेगा।"
अंबेडकर नगर बसपा का गढ़ रहा, क्या बसपा का प्रभाव इस ज़िले में कम हो रहा है, इसके जवाब में लालजी वर्मा कहते हैं, "बसपा के नेतृत्व ने जो समय-समय पर जो गलतियां की और कार्यकर्ताओं पर विश्वास करना बंद करके चंद लोगों की बात मानने का काम किया, उसका परिणाम हुआ कि जनता धीरे-धीरे कटती चली गई।"
लालजी वर्मा को 2021 में बसपा से निकाल दिया गया था, इस बारे में पूछे जाने पर वे कहते हैं, "मैं हमेशा बसपा का अनुशासित सिपाही रहा और पार्टी के अनुशासन के अनुरूप काम किया, 2021 में जिला पंचायत चुनाव में बड़ी संख्या में सदस्यों के चुनाव हारने का ज़िम्मेदार मुझे और रामअचल राजभर जी को माना गया जबकि उस समय मैं कोरोना से पीड़ित होकर कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा।"
वर्मा का कहना है कि भाजपा ने उन्हें बुलाया था लेकिन वे 'वैचारिक मतभेद' के कारण नहीं गए, इसके बाद 'समर्थकों के सुझाव पर' सपा में शामिल हो गए।
लालजी वर्मा 1991 में जनता दल के टिकट पर पहली बार विधायक बने थे। लालजी वर्मा चार बार टांडा से और दो बार कटेहरी से विधानसभा चुनाव जीते। मायावती सरकार में तीन बार मंत्री रहे, एक बार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और दो बार कैबिनेट मंत्री।
लालजी वर्मा की प्रचार की रणनीति पर वरिष्ठ पत्रकार हनुमान सिंह कहते हैं, 'दलित वर्ग ही इस चुनाव का परिणाम तय करेगा इसलिए सपा प्रत्याशी संविधान में बदलाव की बात को हर जगह बता रहे हैं जिसका उनको फ़ायदा भी मिलता नजर आ रहा है। पिछले कई बार के लोकसभा चुनाव में दलित वर्ग बसपा को वोट करता आया है लेकिन इस बार इस वर्ग में थोड़ा कंफ्यूजन है कि बसपा को वोट करें या सपा को।'
हनुमान सिंह राम मंदिर के बारे में कहते हैं, 'राम मंदिर मुद्दा तो है तो लेकिन यहाँ पर संविधान बदले जाने का मुद्दा राम मंदिर के मुद्दे पर हावी होता दिखाई दे रहा है, जिसे विपक्ष ने ठीक से लोगों को समझाने का प्रयास किया है।'
बसपा के उम्मीदवार और मुसलमान वोट
बसपा के उम्मीदवार क़मर हयात कहते हैं, 'अंबेडकर नगर में दलित वर्ग के चार लाख से ज्यादा वोटर हैं, मुसलमान वर्ग के वोटरों की संख्या भी साढ़े तीन लाख के करीब है। इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए आदरणीय बहन जी ने मुझे का यहाँ उम्मीदवार बनाया है।'
वे कहते हैं, 'सपा के लोग अफ़वाह फैला रहे हैं कि बसपा ने भाजपा को जिताने के लिए मुझे उम्मीदवार बनाया है, यहाँ बसपा की लड़ाई भाजपा से है, सपा तीसरे नंबर पर है इसलिए वो लोग ऐसी बातें कर रहे हैं। मुस्लिम वर्ग के लोग कभी सपा को वोट नही करेंगे क्योकि उनके अंदर नाराज़गी इस बात को लेकर है कि साढ़े तीन लाख की संख्या होने के बावजूद सपा ने मुसलमान प्रत्याशी को यहाँ से क्यों नहीं उतारा।'
अंबेडकर नगर क्षेत्र में विधानसभा की पाँच सीटें हैं। इनमें चार विधानसभा सीटें- अकबरपुर, कटेहरी, टांडा और जलालपुर अंबेडकर नगर ज़िले में हैं जबकि गोसाईगंज विधानसभा क्षेत्र अयोध्या ज़िले का हिस्सा है। अंबेडकर नगर लोकसभा के पाँचों विधानसभा क्षेत्रों पर 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने अपना कब्ज़ा जमाया था।
फरवरी 2024 में राज्यसभा चुनाव में गोसाईगंज के विधायक अभय सिंह और जलालपुर के विधायक राकेश पांडेय ने भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी।
गोसाईगंज के सपा विधायक अभय सिंह खुलकर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं लेकिन जलालपुर विधायक राकेश पांडेय खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं।
जातीय समीकरण
अंबेडकर नगर लोकसभा में लगभग साढ़े 18 लाख मतदाता हैं। जातीय समीकरणों के लेकर आकलन यही है कि यहाँ सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति के मतदाता हैं जिनकी संख्या चार लाख के करीब है, मुसलमान वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख के करीब है।
कुर्मी पौने दो लाख, ब्राह्मण सवा लाख, ठाकुर एक लाख, यादव पौने दो लाख और बाकी अन्य ओबीसी जातियाँ हैं।
पिछले दस लोकसभा चुनावों की बात करें तो आठ बार बसपा ने यहां से जीत दर्ज की है, केवल एक बार सपा और एक बार भाजपा यहां से जीत पाई है, जीत के यह आंकड़े सबित करते हैं कि ये क्षेत्र बसपा का गढ़ रहा था, जो समय के साथ उनके हाथ से निकल रहा है।
2002 में मायावती जब मुख्यमंत्री बनीं तो उन्हें लोकसभा सीट छोड़नी पड़ी, उप-चुनाव में बसपा के त्रिभुवन दत्त जीते, 2004 में मायावती ने जीतने के छह महीने बाद इस सीट से इस्तीफ़ा दे दिया था, तब हुए उप-चुनाव में सपा के शंखलाल मांझी जीतकर सांसद बने थे। 2009 में बसपा के टिकट पर राकेश पांडेय सांसद चुने गए
2014 में मोदी लहर में पहली बार भाजपा ने यहां से जीत हासिल की और हरिओम पांडेय सांसद बने, 2019 में बसपा के टिकट पर रितेश पांडेय ने जीत हासिल की।
मायावती का अंबेडकर नगर से गहरा जुड़ाव रहा है, वे अंबेडकर नगर से (पहले अकबरपुर लोकसभा, सुरक्षित सीट ) 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा का चुनाव लड़ीं और जीत दर्ज की।