कहते हैं कि भोजन से ज्यादा महत्वपूर्ण है जल। उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है वायु। पानी को शुद्ध होना अत्यंत ही जरूरी है क्योंकि 90 प्रतिशत से ज्यादा रोग पानी से ही होते हैं। दूसरी बात यह कि पानी पीने का एक खास तरीका होता है। उचित तरीके और विधि से पवित्र जल को ग्रहण किया जाए तो इससे कुंठित मन को निर्मल बनाने में सहायता मिलती है। मन के निर्मल होने को ही पापों का धुलना माना गया है।
गर्मी के मौसम में मिट्टी या चांदी के घड़े, मटके या सुराही में, बरसात के मौसम में तांबें के घड़े में, सर्दी के मौसम में सोने या पीतल के घढ़े या बर्तन में पानी पीना चाहिए।
1. पानी हमेशा बैठकर ही पिएं। खड़े होकर पीने से कई तरह के रोग होते हैं। यह भोजन को पचाने में सहायक भी नहीं होता है।
2. जल को आराम से घुंट-घुंट कर ग्रहण करना चाहिए। इससे आपकी किडनी या ग्लेन ब्लैडर पर एकदम से भार नहीं पड़ता है।
3. जल को चबाकर पीने से यह भोजन को पचाने की शक्ति हासिल कर सकता है। चबाकर पीने का अर्थ है पहले उसे मुंह में लें और चबाते हुए पी जाएं।
4. घूंट-घूंट करके पीना चाहिए क्योंकि इससे हमारे मुंह में मौजूद लार भी पेट में जाती है जो पाचन के लिए जरूरी होती है।
5. खाली पेट घुंट-घुंट पानी पीने से पेट की गंदगी दूर होकर रक्तशुद्ध होता है।
6. घुंट-घुंट पानी पीने से पेट अच्छी तरह साफ होने पर यह भोजन से पोषक तत्वों को ठीक प्रकार से ग्रहण कर पाता है।
7. तांबे के गिलास में पानी पीने से शरीर के दूषित पदार्थ यूरिन और पसीने से बाहर निकलते हैं। ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। पेट संबंधी विकार भी दूर होते हैं। तांबा पानी को शुद्ध करने के साथ ही शीतल भी करता है तांबे के गिलास में पानी पीने से त्वचा संबंधी रोग भी नहीं होते हैं। तांबे का पानी लीवर को स्वस्थ रखता है।