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अटल बिहारी वाजपेयी की कुंडली में था कौन सा राजयोग? पढ़िए कुंडली विश्लेषण ...

हमें फॉलो करें अटल बिहारी वाजपेयी की कुंडली में था कौन सा राजयोग? पढ़िए कुंडली विश्लेषण ...
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प्रीति सोनी

अटल बिहारी वाजपेयी जितने प्रसिद्ध और जनता के प्रिय राजनेता थे, उतने ही उम्दा साहित्यकार और बेहतरीन कवि भी थे। राजनीति के फलक पर चमकता ये सितारा अपनी साफगोई के लिए भी जाना जाता था। उनके व्यक्तित्व, कृतित्व और वाणी में इतना आकर्षण था कि लोग स्वत: ही उनकी ओर आकर्ष‍ित होते थे। उनसे देशवासियों का मोह कितना था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे अनंत यात्रा के पथिक हुए, तो करोड़ों दिल रोए और आंखों से आंसू न थमे। ऐसा सभी के साथ तो नहीं होता, युगों में कोई एक महापुरुष ऐसा होता है जो ये कहावत को सच्चे अर्थों में चरितार्थ करता है कि - 
 
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसा हम रोए,
ऐसी करनी कर चले, हम हंसे जब रोए।
 
ऐसा चरित्र जब आंखों के सामने से होकर गुजरता है, तो यह सवाल मन में आना स्वभाविक है कि आखिर ऐसा क्या था इस शख्स में, क्या लिखाकर ये बंदा उस ईश्वर के दर से आया होगा। इसी सवाल का जवाब जानने की उत्सुकता ने मुझे अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मकुंडली देखने और उसका विश्लेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया। मैने मोटे तौर पर कुंडली विश्लेषण किया है, आप भी जानिए कि आखिर क्यों राजनीति के शिखर पर इतने लोकप्र‍िय थे अटल जी - 
 
जन्मपत्रिका के आधार पर अटल बिहारी वाजपेयी मेष लग्न के जातक थे, जिसका स्वामी मंगल बारहवें भाव में स्थित है। चूंकि लग्न का स्वामी बारहवें स्थान पर है, तो यह लग्न का व्यय करने वाला होना चाहिए था, लेकिन यहां बड़ी भ्रांति दूर होती है कि लग्न पर यह नियम लागू नहीं होता, और अगर होता है तो वह सकारात्मक हो सकता है। क्योंकि यहां लग्न का व्यय तो हुआ, परन्तु उस प्रकार से जैसे कोई हीरा तराशा जाता है। 
 
यह महापुरुष योग था राजनीति में प्रसिद्धि का कारण - 
अटल बिहार वाजपेयी की कुंडली में सप्तम भाव (केंद्र) में शनि का उच्च होकर विराजित है अत: यह शष नामक महापुरुष योग बनाता है। चूंकि शनि राजनीति का कारक है, गांभीर्य का कारक है, स्थायित्व का कारक है, अत: इस योग के कारण ही अटल जी ने राजनीति के क्षेत्र में अपनी अलग छाप छोड़ते हुए प्रसिद्धि पाई। शनि के प्रभाव से उनके स्वभाव में गंभीरता, न्यायप्रियता का समावेश दिखाई देता था। और इसी के प्रभाव से उन्होंने संघर्ष से जो पहचान बनाई और प्रसिद्धि पायी, वह अंतकाल तक चिरस्थायी रही और अब भी है। शष नामक पंच महापुरुष योग के प्रभाव से अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के युग पुरुष कहलाए।
 
वि‍परीत सरल राजयोग - 
इसके अलावा उनकी पत्र‍िका में अष्टम भाव के स्वामी का बारहवें में बैठना और द्वादश व अष्टम का जुड़ना विपरीत राजयोग बनाता है, जो जातक को विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता देता है और वह प्रतिकूल परिस्थितियों से नहीं घबराता। उनके शत्रुओं में कमी भी करता है। यही कारण रहा कि राजनीति में रहते हुए भी उनके शत्रु कम और मित्र अधिक रहे। जब इस योग के ग्रहों की दशा होती है, तब परिस्थितयां तेजी से बदलती हैं और व्यक्ति को हर तरफ से कामयाबी व सफलता मिलती है।
 
वाणी में आकर्षण का कारण - 
अटल जी की पत्र‍िका के द्वितिय भाव, जो कि धन एवं वाणी का होता है, में वृषभ राशि है जिसका स्वामी अष्टम में स्थित होकर अपने ही घर को देख रहा है। यह उन्हें आध्यात्मिक बनाने के सा‍थ ही उनकी वाणी को लेकर आकर्षण पैदा करता है, जो उन्हें अच्छे वक्ता की श्रेणी में ला खड़ा करता है। इस भाव पर चंद्रमा की दृष्ट‍ि के कारण उनकी वाणी काव्यात्मक होने के साथ ही सदैव मर्मस्पर्शी होती थी।
 
लेखन में क्यों थे वे महारथी - 
पत्रिका के तृतीय भाव पर, जो कि लेखन का होता है, बुध (जो कि वाणी, बुद्धि और लेखन का ही कारक होता है) की स्वग्रही दृष्टि पड़ने के कारण ही वे एक बेहतरीन लेखक, साहित्यकार और कवि और पत्रकार हुए। साथ ही मंगल की दृष्ट‍ि ने उन्हें साहस दिया।
 
अवि‍वाहित होने का कारण -
अटल जी के अविवाहित होने के कुछ कारणों में से प्रथम कारण है, शुक्र का अष्टम भाव (व्यय भाव) में स्थित होना है, जिसे पुरुष की कुंडली में विवाह का कारक माना जाता है। दूसरा कारण बारहवें भाव में मंगल का होना, जो पत्र‍िका को मांगलिक बनाता है और विवाह संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।तीसरा और बड़ा कारण है सप्तम भाव मेंशनि का उच्च होकर बैठना। दरअसल शनि पृथकतावादी ग्रह है और इसके प्रभाव में अधिकता जातक को वैराग्य की ओर ले जाती है। यह स्थिति दांपत्य जीवन के लिए नकारात्मक हो सकती है। 
 
भाग्य और यश -
भाग्य भाव में गुरु का स्वराशि में स्थ‍ित होना, भाग्य में वृद्धि करता है और इसमें सूर्य की उपस्थिति यश प्रदान करने के साथ ही भाग्य को चमकाने की बात करती है। इसके अलावा भाग्य स्थान पर बुधादित्य योग का होना भी बेहद शुभ है।
 
पैतृक घर से दूरी - 
कुंडली के चतुर्थ भाव का स्वामी अष्टम में होने के कारण, वे कभी पैतृक घर में नहीं रहे। पैतृक घर-परिवार और माता का सुख बहुत अच्छी तरह उन्हें नहीं मिल पाया। शनि की दृष्ट‍ि पड़ने से इस सुख में और भी कमी रही।  
 
शिक्षा से लाभ - 
कुंडली के पंचम भाव के स्वामी का भाग्य भाव में बैठना यहां शुभ अर्थों में देखा जा सकता है, जो शिक्षा के लाभ से भाग्य में वृद्धि की ओर इशारा करता है।

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