सभी समस्याओं का निवारण चाहते हैं तो गुप्त नवरात्रि में जपें ये विशेष मंत्र...

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मानव जीवन में नित्य नई समस्या तथा बाधा उत्पन्न होती है। कुछ समस्याएं स्थायी हो जाती हैं तथा उनके निवारण के लिए मार्ग नहीं प्राप्त होते हैं। देवी कृपा से उन्हें दूर करना सुगम है। अत: निम्नलिखित मंत्रों से भिन्न-भिन्न समस्याओं के निवारण किए जा सकते हैं। आस्था एवं श्रद्धा से ही सफलता प्राप्त होती है तथा क्रिया में त्रुटि न हो, यह ध्यान रखना आवश्यक है।
 
(1)  बाधा दूर करने व धन-धान्य समृद्धि हेतु साथ ही शत्रु शांति एवं संकट से मुक्ति हेतु अयुत जप एवं दशांस हवन, हवन सामग्री, हड़ताल, गुगल, पुष्प घृत इत्यादि से।

मंत्र- 
 
'ॐ सर्वाबाधासु घोरासु वेदनाभ्यर्दितोऽपि वा। 
स्मरन्ममैतच्चरितं नरो मुच्येत संकटात्।।' 
 
(2) दु:ख दारिद्रय विनाश के लिए अयुत (10,000) जप तथा दशांस होम, पायस घृतादि से होम। 
 
मंत्र- 'ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तौ:,
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीवशुभां ददासि।
दारिद्रय दु:ख भय हारिणी का त्वदन्या,
सर्वापकारणाय सदार्द्र चित्ता।'  
 
(3) बलवान शत्रु को परास्त करने के लिए अयुत जप दशांस होम तिल, सरसों, उड़द व घृत से करें।
 
मंत्र- 'ॐ क्षणेन तन्महासैन्यसुराणां तथाम्बिका।
निन्ये क्षयं यथा वह्निस्तृणदारूमहाचयम।।'
 
या
 
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(4) 'ॐ गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत् पिबाम्यहम, 
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवता।।'
 
(5) वित्त-समृद्धि हेतु अयुत जप दशांस हवन पंच मेवा, पायस, पुष्प-फल, घृत आदि से।
 
मंत्र- 'ॐ यश्च मर्त्य: स्तवैरेभि: त्वां स्तोष्यत्यमलानने।
तस्य वित्तर्द्धिविभवै: धनदारादिसम्पदाम्।।' 
 
या 
 
(6) 'ॐ वृद्धेयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथा: सर्वदाम्बिके।'
 
या 
 
(7) 'ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्यसुन्तावित:
मनुष्यो मत् प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।'
 
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(8) आकर्षण बढ़ाने हेतु - वशीकरण के लिए जप कर पायस, तिल, इलायची, बिल्व पत्र या पत्र, घृत आदि से हवन करें। 10 हजार जप आवश्यक हैं। 
 
मंत्र- 'ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा, बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।' 
 
उपरोक्त मंत्रों का नवरात्रि में संकल्प लेकर यथाशक्ति देवी के चित्र-यंत्रादि का पूजन करें। सात्विक भोजन, ब्रह्मचर्य जीवन तथा नगर की सीमा नहीं लांघें। देवी अवश्य कृपा करेंगी। समस्या बड़ी हो तो नित्य 1 माला मंत्र की जपें। आवश्यकतानुसार एकाधिक मंत्र सिद्ध किए जा सकते हैं। इति।

- पं. उमेश द‍ीक्षित
 

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