Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कैसे करें शनिदेव की आराधना कि मिलें शुभ फल, जानिए...

हमें फॉलो करें lord shani

श्री रामानुज

* शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय और प्रमुख मंत्र... 

ज्योतिष में शनिदेव का विशेष स्थान है। अक्सर देखा गया है कि आम जनता शनि  भगवान से बहुत भयभीत रहती है। शनि की वक्र दृष्टि से अच्छे-भले मनुष्य का नाश हो  जाता है। लेकिन यदि शनिदेव प्रसन्न हों तो जातक के वारे-न्यारे हो जाते हैं। तो आइए जानते हैं शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय और प्रमुख मंत्र...। 
 
शनि ग्रह संबंधी चिंताओं का निवारण करने के लिए शनि मंत्र, शनि स्तोत्र विशेष रूप से शुभ रहते हैं। शनि मंत्र, शनि पीड़ा परिहार का कार्य करता है। शनिदेव सूर्यपुत्र माने जाते हैं  और आम मान्यता है कि शनि ग्रहों में नीच स्थान पर हैं, परंतु शिवभक्ति से शनिदेव ने नवग्रहों में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त किया है।
 
कैसे करें श्री शनिदेव का ध्यान व आव्हान- शनिवार सुबह स्नान आदि कर सच्चे और पवित्र मन से ईश्वर की आराधना करें और इस मंत्र का आव्हान करें-
 
नीलद्युति शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशातं वन्दे सदाऽभीष्टकरं वरेण्यम्।। 
 
नीलमणि के समान जिनके शरीर की कांति है, माथे पर रत्नों का मुकुट शोभायमान है। जो अपने चारों हाथों में धनुष-बाण, त्रिशूल-गदा और अभय मुद्रा को धारण किए हुए हैं, जो गिद्ध पर स्थित होकर अपने शत्रुओं को भयभीत करने वाले हैं, जो शांत होकर भक्तों का सदा कल्याण करते हैं, ऐसे सूर्यपुत्र शनिदेव की मैं वंदना करता हूं, ध्यानपूर्वक प्रणाम करता  हूं। 
 
शनि नमस्कार मंत्र
 
ॐ नीलांजनं समाभासं रविपुत्रम् यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्डसंभूतम् तं नमामि शनैश्चरम्।। 
 
पूजन के समय अथवा कभी भी शनिदेव को इस मंत्र से यदि नमस्कार किया जाए तो शनिदेव प्रसन्न होकर पीड़ा हर लेते हैं।
 
उपयोगी उपाय : जब शनि की अशुभ महादशा या अंतरदशा चल रही हो अथवा गोचरीय शनि जन्म लग्न या राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम, द्वादश स्थानों में भ्रमण कर  रहा हो तब शनि अनिष्टप्रद व पीड़ादायक होता है। 
 
शनि पीड़ा की शांति व परिहार के लिए श्रद्धापूर्वक शनिदेव की पूजा-आराधना मंत्र व स्तोत्र का जप और शनिप्रिय वस्तुओं का दान करना चाहिए।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वशिष्ठ ऋषि और उनकी वंश परंपरा