मुख्य 5 तिथियां, सफलता के जानिए किस शुभ तिथि में करें कौनसा कार्य

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू पंचांग के महीने नियमित होते हैं और चंद्रमा की गति के अनुसार 29.5 दिन का एक चंद्रमास होता है। हिन्दू सौर-चंद्र-नक्षत्र पंचांग के अनुसार माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। पंचांग के अनुसार पूर्णिमा माह की 15वीं और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चन्द्रमा आकाश में पूर्ण रूप से दिखाई देता है। पंचांग के अनुसार अमावस्या माह की 30वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चन्द्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है।
 
 
30 तिथियों के नाम निम्न हैं:- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)। पूर्णिमा से अमावस्या तक 15 और फिर अमावस्या से पूर्णिमा तक 30 तिथि होती है।
 
इन 30 तिथियों को 5 भागों में विभाजित किया गया है- 1.नंदा, 2. भद्रा, 3.जया, 4.रिक्ता और 5.पूर्णा। यह तिथियों के प्रकार हैं।
 
1. नन्दा तिथि : दोनों पक्षों (कृष्ण और शुक्ल पक्ष) की 1, 6 और 11वीं तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी तिथियां नन्दा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में अंतिम प्रथम घटी या अंतिम 24 मिनट को छोड़कर सभी मंगल कार्यों को करना शुभ माना गया है।
 
2. भद्रा तिथि : दोनों पक्षों की 2, 7, और 12 तिथि अर्थात द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी तिथियां भद्रा तिथि कहलाती है। इन तितिथों में कोई भी शुभ, मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं परंतु कहा जाता है कि इन तिथियों में कोर्ट कचहरी, चुनाव और शल्य चिकित्सा संबंधी कार्य किए जा सकते हैं। व्रत, जाप, पूजा अर्चना एवं दान-पुण्य जैसे कार्यों के लिए यह तिथियां शुभ मानी जाती हैं।
 
3. जया तिथि : दोनों पक्षों की 3, 8 और 13 तिथि अर्थात तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी तिथियां जया तिथि कहलाती है। यह तिथियां विद्या, कला, गायन, वादन नृत्य आदि कलात्मक कार्यों के लिए उत्तम मानी गई है।
 
4. रिक्ता तिथि : दोनों पक्षों की 4, 9, और 14 तिथि अर्थात चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी तिथियां रिक्त तिथियां कही जाती है। इन तिथियों में कोई भी मांगलिक कार्य, नया व्यापार, गृहप्रवेश आदि नहीं करना चाहिए लेकिन मेले, तीर्थ यात्राओं आदि के लिए यह ठीक मानी गई हैं।
 
5. पूर्णा तिथियां : दोनों पक्षों की 5, 10, 15 , तिथि अर्थात पंचमी, दशमी और पूर्णिमा और अमावस
पूर्णा तिथि कहलाती हैं। इनमें अमवस्या को छोड़कर बाकि दिनों में अंतिम 1 घटी या 24 मिनट पूर्व तक सभी प्रकार के लिए मंगलिक कार्यों के लिए ये तिथियां शुभ मानी गई हैं।

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