भविष्य जानने की विद्या रमल प्रश्नावली के 7 रहस्य जानिए

अनिरुद्ध जोशी
गुरुवार, 12 मार्च 2020 (12:07 IST)
मान्यता अनुसार रमल प्रश्नावली नामक एक विद्या से दिशा ज्ञान और भविष्य जाना जाता है। आखिर इस विद्या को किसने इजाद किया और कैसे इस विद्या से आप अपना भविष्य जान सकते हैं, जानिए इस संबंध में 7 रहस्यमयी बातें।
 
 
1. भारत से अरब में प्रचलित हुई यह विद्या : रमल प्रश्नावली की उत्पत्ति भारत में ही हुई थी। लेकिन इसका प्रचलत भिन्न रूप में अरब में ज्यादा रहा। कहते हैं कि एक व्यक्ति अरब के रेगिस्तान में भटक गया। तब साक्षात शक्ति ने आकर उसके सामने चार रेखा और चार बिन्दु बना दिए। उसे एक ऐसी विधि बताई कि वह गंतव्य स्थान का मार्ग जान गया। तभी से इस शास्त्र की उत्पत्ति हुई।
 
 
2. भारत से यूनान में प्रचलित हुई यह विद्या : नेपोलियन प्रश्नावली का मूल भी रमल प्रश्नावली ही है। पहली सदी में यह विद्या अरब में प्रचारित हुई और यवन के कई पुरोहितों ने इसे जानकर इसका नाम यवनीय ज्योतिष रख दिया था। इस शास्त्र के जानकार दानियल और लुकमान जैसे लोग भी थे। सिकंदर के साथ उनके सलाकार सुरखाब भी इस विद्या के जानकार थे।
 
 
3. भैरवनाथ ने खोजी थी यह विद्या : कहते हैं कि सती के वियोग से व्याकुल भगवान शिव के समक्ष भैरव ने चार बिन्दु बना दिए और उनसे उसी में अपनी इच्छित प्रिया सती को खोजने के लिए कहा। विशेष विधान से उन्होंने इसे सिद्ध करके सातवें लोक में अपनी प्रियतमा को देखा। तभी से इस तरह से भविष्य देखने का प्रचलन शुरू हुआ।
 
 
4. मय दावन जानता था यह विद्या : यह विद्या द्वापरयुग में भी प्रचलन में थी। कहते हैं कि पांडवों के दरबार में मय दानव इस विद्या का जानकार था। राम शलाका भी इसी तरह की विद्या है।
 
 
5. चाणक्य के काल में भी थी प्रचलित यह विद्या : जिमुतवाहन के दरबार में रहे विष्णुगुप्त शर्मा इस शास्त्र के उत्तम ज्ञाता थे। आदि शंकराचार्य भी इस विद्या के जानकार थे।
 
 
6. कैसी होती है रमल प्रश्नावली : रमल प्रश्नावली के अंतर्गत चंदन की लकड़ी का चौकोर पाट बनवाकर उस पर 1, 2, 3 और 4 खुदवा लिया जाता है। फिर उसी लकड़ी के तीन पासे बने होते हैं जिस पर इसी तरह से अंक लिखे होते हैं। फिर मां कुष्मांडा का ध्यान करते हुए तीनों पासे को छोड़ा जाता है। उसका जो अंक आता है उसी अंक पर फल लिखा होता है।
 
 
7. 444 प्रश्न होते हैं : इस तरह कम से कम 444 तक के प्रश्नों के फल होते हैं। रमल शास्त्र में पासा डालने के उपरांत प्रस्तार अर्थात 'जायचा' बनाया जाता है। प्रस्तार में 16 घर होते हैं। 13, 14, 15 और 16 पर गवाहन अर्थात साक्षी घर होते हैं। प्रस्तार के 1, 5, 7, 13 अग्रि तत्व के होते हैं। 2, 6, 10, 14, 13, 7, 11, 15 घर जल तत्व के होते हैं। यदि 1, 2, 5, 6, 9, 11, 12, 14 15 और 16 अंकों में से कोई एक अंक आए तो सफलता अवश्य मिलती है।

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