न तो जनवरी साल का पहला मास है और न ही 1 जनवरी पहला दिन। जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए हैं, वे जरा इस बात पर विचार करें...!
सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वां, 8वां, 9वां और 10वां महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है। ये क्रम से 9वां, 10वां, 11वां और 12वां महीना है। हिन्दी में 7 को सप्त, 8 को अष्ट कहा जाता है। इसे अंग्रेजी में sept(सेप्ट) तथा oct (ओक्ट) कहा जाता है। इसी से september तथा October बना। नवंबर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के 'नव' को ले लिया गया है तथा 10 अंग्रेजी में 'Dec' बन जाता है जिससे December बन गया। ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर 10वां महीना ही हुआ करता था।
इसका एक प्रमाण और है। जरा विचार कीजिए कि 25 दिसंबर यानी क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है? इसका उत्तर यह है कि 'X' रोमन लिपि में 10 का प्रतीक है और mas यानी मास अर्थात महीना। चूंकि दिसंबर 10वां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर 10वां महीना यानी X-mas से प्रचलित हो गया। इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि या तो अंग्रेज हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था।
साल को 365 के बजाय 305 दिन का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीनकाल में अंग्रेज भारतीयों के प्रभाव में थे। इस कारण वे सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंग्लैंड ही क्या, पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण यह है कि नया साल भले ही वे 1 जनवरी को मना लें, पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से ही शुरू होता है।
लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानी मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू। भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था?
इसका अन्य प्रमाण देखिए कि अंग्रेज अपनी तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते हैं। दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है? तुक बनता है कि भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है। सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म मुहूर्त की बेला कहा जाता है और यहां से नए दिन की शुरुआत होती है यानी कि करीब 5 से 5.30 के आस-पास। और इस समय इंग्लैंड में समय रात 12 बजे के आस-पास का होता है। चूंकि वे भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वे अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया।
जरा सोचिए, वे लोग अब तक हमारे अधीन हैं, हमारा अनुसरण करते हैं और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का, अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधे कहूं तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं? कितनी बड़ी विडंबना है यह! मैं यह नहीं कहूंगा कि आप आज 31 दिसंबर को रात के 12 बजने का बेसब्री से इंतजार न करिए या 12 बजे नए साल की खुशी में दारू मत पीजिए या नॉनवेज मत खाइए।
मैं तो बस यह कहूंगा कि देखिए खुद को आप, पहचानिए अपने आपको। हम भारतीय गुरु हैं, सम्राट हैं तथा किसी का अनुसरण नहीं करते हैं। अंग्रेजों का दिया हुआ नया साल हमें नहीं चाहिए। जब सारे त्याहोर हम भारतीय संस्कृति के रीति-रिवाजों के अनुसार ही मनाते हैं, तो नया साल क्यों नहीं?