नक्षत्रों के अलग-अलग स्वभाव होते हैं। कोमल, कठोर, उग्र और तीक्ष्ण में से उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र, सतैसा या गण्डात कहा जाता है। 27 नक्षत्रों में से मूल, ज्येष्ठा और आश्लेषा नक्षत्र मुख्य मूल नक्षत्र हैं और अश्विनी, रेवती और मघा सहायक मूल नक्षत्र हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 6 मूल नक्षत्र हैं।
मूल नक्षत्र के 4 तरीके
1. गण्डमूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक स्वयं व अपने माता-पिता मामा आदि के लिए कष्ट प्रदान करने वाला होता है। ऐसे में माना जाता है कि यदि बच्चे का जन्म गंडमूल नक्षत्र में हुआ है तो उसके पिता को चाहिए कि अपने बच्चे का चेहरा न देखे और तुरंत पिता कि जेब में फिटकरी का टुकड़ा रखवा दे।
2.इसके बाद 27 दिन तक रोज मूली के 27 पत्ते बच्चे के सिर कि तरफ रख दें और फिर उसे दुसरे दिन चलते पानी में बहा देना चाहिए। यह क्रिया 27 दिनों तक नियमित करना चाहिए। इसके बाद पिता अपने बच्चे को 28वें दिन विधिवत पूजा करके देखें।
3. अगर मूल नक्षत्र के कारण बच्चे का स्वास्थ्य कमजोर रहता हो तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का उपवास रखना चाहिए। अगर बच्चे की राशी मेष और नक्षत्र अश्विनी है तो बच्चे को हनुमान जी की उपासना करवाएं। अगर राशि सिंह और नक्षत्र मघा है तो बच्चे से सूर्य को जल अर्पित करवाएं। अगर बच्चे की राशि धनु और नक्षत्र मूल है तो गुरु और गायत्री उपासना अनुकूल होगी। अगर बच्चे की राशी कर्क और नक्षत्र आश्लेषा है तो शिवजी की उपासना उत्तम रहेगी। वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र होने पर भी हनुमान जी की उपासना करवाएं। अगर मीन राशि और रेवती नक्षत्र है तो गणेश जी की उपासना से लाभ होगा।
4.अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेशजी की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलता है। आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करना चाहिए तथा बुधवार के दिन हरी वस्तुओं का दान करना चाहिए। गंडमूल में जन्में बच्चे के जन्म के ठीक 27वें दिन गंड मूल शांति पूजा करवाई जानी चाहिए, इसके अलावा ब्राह्मणों को दान, दक्षिणा देने और उन्हें भोजन करवाना चाहिए।