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मिथुन संक्रांति का महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और कथा

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, मंगलवार, 14 जून 2022 (08:53 IST)
Mithun sankranti 2022 : सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। मिथुन राशि में परिवर्तन को मिथुन संक्रांति कहते हैं। सूर्य ग्रह 15 जून, 2022 गुरुवार को मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। आओ जानते हैं मिथुन संक्रांति के महत्व, शुभ मुहूर्त और कथा।
 
 
मिथुन संक्रांति का महत्व : ओड़िसा में मिथुन संक्रांति का महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य से अच्‍छी फसल के लिए बारिश की मनोकामना करते हैं। इस दिन से सभी नक्षत्रों में राशियों की दिशा भी बदल जाएगी। इस बदलाव को बड़ा माना जाता है। सूर्य जब कृतिका नक्षत्र से रोहिणी नक्षत्र में आते हैं तो बारिश की संभावना बनती है। रोहिणी से अब मृगशिरा में प्रवेश करेंगे। मिथुन संक्रांति के बाद से ही वर्षा ऋतु की विधिवत रूप से शुरुआत हो जाती है। मिथुन संक्रांति को रज पर्व भी कहा जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार मि‍थुन संक्रांति के दौरान वायरल संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है इसीलिए सेहत का ध्यान रखना जरूरी होता है।
 
शुभ मुहूर्त : 
अमृत काल : प्रात: 09:57 से 11:21 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:16 से 03:10 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम को 06:36 से 07:00 तक।
सायाह्न संध्या मुहूर्त : शाम 06:50 से 07:51 तक।
पुण्यकाल : पंचांग के मुताबिक मिथुन संक्राति 15 जून, बुधवार को समय दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर होगी। मिथुन संक्रांति के दिन पुण्य काल दोपहर 12 बजकर 18 मिनट से शाम 07 बजकर 20 मिनट तक है। यानी पुण्यकाल की कुल अवधि 07 घंटे 02 मिनट है।
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मिथुन संक्रांति पूजा विधि :
 
1. मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे को भूदेवी के रूप में पूजा जाता है। सिलबट्टे को इस दिन दूध और पानी से स्नान कराया जाता है।
 
2. इसके बाद सिलबट्टे पर चंदन, सिंदूर, फूल व हल्दी चढ़ाते हैं।
 
3. मिथुन संक्रांति के दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
 
4. मिथुन संक्रांति के दिन गुड़, नारियल, चावल के आटे व घी से बनी मिठाई पोड़ा-पीठा बनाया जाता है।
 
5. इस दिन किसी भी रूप में चावल ग्रहण नहीं किए जाते हैं।
 
मिथुन संक्रांति की कथा : प्रकृति ने महिलाओं को मासिक धर्म का वरदान दिया है, इसी वरदान से मातृत्व का सुख मिलता है। मिथुन संक्रांति कथा के अनुसार जिस तरह महिलाओं को मासिक धर्म होता है वैसे ही भूदेवी या धरती मां को शुरुआत के तीन दिनों तक मासिक धर्म हुआ था जिसको धरती के विकास का प्रतीक माना जाता है। तीन दिनों तक भूदेवी मासिक धर्म में रहती हैं वहीं चौथे दिन में भूदेवी जिसे सिलबट्टा भी कहते हैं उन्हें स्नान कराया जाता है। इस दिन धरती माता की पूजा की जाती है। उडीसा के जगन्नाथ मंदिर में आज भी भगवान विष्णु की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा विराजमान है।

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