कुछ शास्त्रों में ग्रह दोष के उपाय के तौर पर जड़ी बूटियों या औषधियों के बारे में बताया जाता है। कहते हैं कि मंगल या मंगल दोष के कारण पति और पत्नी के दांपत्य जीवन में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती है। मंगल दोष की शांति हेतु कई तरह के उपायों में एक है जड़ी-बूटी से उपाय करना। आचार्य मणिबंध कृत 'पाकनिर्झरा' में मंगल दोष के उपाय बताए गए हैं।
'मौद्गल्योऽथकुटिलः प्रेतस् त्रिजातेक्षु पिंकरादुधी। जानक्योऽविराभूता पुंकरस्रग्ध दक्षा कुजाः।'- पाकनिर्झरा
उपरोक्त जड़ी में एक है जानकी नामक जड़ी। कहते हैं कि यदि किसी की कुंडली में विधवा होना या विधुर होने का योग है तो उसे इस जड़ी की दातून करने से दूर कर सकते हैं। इस औषधि का नाम है जानकी। लंका निवास के दौरान माता जानकी भगवान राम की लम्बी उम्र के लिए इसी का दातुन करती थी। इसीलिए इस जड़ी का नाम जानकी हो गया।
इसे देहाती भाषा में दांतर कहा जाता है। लगातार कभी न अच्छे होने वाले रोग एवं उग्र वैधव्य दोष के अलावा पति अथवा पत्नी की लम्बी उम्र के लिए इसका दातुन करते हैं। यह श्रीलंक में ही पाई जाती है। अन्यत्र इसका मिलना दुर्लभ है।
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार यह एक खूबसूरत पत्तों वाला टहनीदार किन्तु कसैले स्वाद वाला वृक्ष है। नासूर एवं भगन्दर आदि रोगों की रामबाण औषधि मानी गई है। आठवें भाव के मंगल दोष के कारण उत्पन्न पीड़ा के निवारण हेतु इस वनस्पति का प्रयोग किया जाता है।