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जानिए शनि और बृहस्पति के बारे में सब कुछ, 10 बड़ी बातें

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अनिरुद्ध जोशी

खगोलविदों की गणनाओं के अनुसार 21 दिसंबर 2020 को शनि और गुरु बहुत नज़दीक होंगे। सूरज के अस्त होने के बाद 45-60 मिनट बाद इन्हें आसमान में देखा जा सकेगा। बृहस्पति जहां एक चमकते तारे जैसा दिखेगा और शनि उससे ऊपर थोड़ा कम चमक रहा होगा। जब सूर्य का चक्कर लगाते हुए बृहस्पति शनि से आगे निकल जाएगा तो दोनों की स्थिति भी बदल जाएगी। यह घटना करीब 400 साल बाद घटने जा रही है। शनि तथा बृहस्पति के इस तरह के मिलन को 'ग्रेट कंजक्शन' कहते हैं। दोनों ग्रहों को 1623 के बाद से कभी इतने करीब नहीं देखा गया। इसके बाद ये दोनों ग्रह 15 मार्च, 2080 को फिर इतने करीब होंगे। आओ जानते हैं शनि और बृहस्पति के बारे में 10 खास बड़ी बातें।
 
 
1. लाल किताब में दो या दो से अधिक ग्रहों के एक ही भाव में बैठने को मसनुई ग्रह या बनावटी ग्रह कहते हैं। दो ग्रह मिलकर एक नया ग्रह बन जाते हैं। लाला किताब के अनुसार शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी। उपाय के तौर पर शराब, ब्याज का धंधा करना और पराई स्त्री से संबंध को त्यागना होता है।


लाल किताब की मान्यता अनुसार मान्यता है कि सूर्य है राजा, बुध है मंत्री, मंगल है सेनापति, शनि है न्यायाधीश, राहु-केतु है प्रशासक, गुरु है अच्छे मार्ग का प्रदर्शक, चंद्र है माता और मन का प्रदर्शक, शुक्र है- पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति तथा वीर्य बल। जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।
 
 
2. लाल किताब में गुरु के खराब होने से सिर पर चोटी के स्थान से बाल उड़ जाते हैं। गले में व्यक्ति माला पहनने की आदत डाल लेता है। सोना खो जाए या चोरी हो जाए। बिना कारण शिक्षा रुक जाए। व्यक्ति के संबंध में व्यर्थ की अफवाहें उड़ाई जाती हैं। आँखों में तकलीफ होना, मकान और मशीनों की खराबी, अनावश्यक दुश्मन पैदा होना, धोखा होना, साँप के सपने। साँस या फेफड़े की बीमारी, गले में दर्द। 2, 5, 9, 12वें भाव में बृहस्पति के शत्रु ग्रह हों या शत्रु ग्रह उसके साथ हों तो बृहस्पति मंदा होता है। उपाय के तौर पर झूठ बोलना छोड़ना, पिता और गुरु का अपमान करना छोड़कर प्रतिदिन माथे पर केसर का तिलक लगाना होता है।
 
 
3. ज्योतिष में शनि और गुरु का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। दोनों ही ग्रह बहुत ही प्रभावशाली होते हैं। दोनों ही बहुत धीमी चाल से चलते हुए एक राशि से दूसरी राशि में अपना स्थान परिवर्तन करते हैं। शनि ढाई साल में राशि बदलते हैं तो वहीं गुरु 12 से 13 महीने के अंतराल में एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में जाते हैं। ऐसे में गुरु और शनि की युति का होना एक महासंयोग से कम नहीं है। शनि मेष राशि में नीच एवं तुला राशि में उच्चराशिस्थ होते हैं। जब शनि और बृहस्पति एक राशि और एक अंश में होंगे तो दोनों ग्रह उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में रहेंगे, जिसके स्वामी शनि हैं। दूसरी ओर यह संयोग मकर राशि में बन रहा है जो शनि की स्व-राशि है तथा बृहस्पति की नीच राशि है।
 
 
शनि व गुरु के संयोग से कोई भी शुभाशुभ योग नहीं बनता है। परंतु शनि और चंद्र के योग से विषयोग और गुरु और चंद्र के योग से कजकेसरी योग बनता है। कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु बैठा है तो इसे गुरु चांडाल योग कहते हैं। इस योग का बुरा असर शिक्षा, धन और चरित्र पर होता है। जातक बड़े-बुजुर्गों का निरादर करता है और उसे पेट एवं श्वास के रोग हो सकते हैं। कहते हैं कि मेष, वृषभ, सिंह, कन्या, वृश्चिक, कुंभ व मीन राशि के लोगों पर गुरु-चांडाल योग का प्रभाव अधिक पड़ता है। गुरु यदि केंद्र में स्वराशिस्थ या उच्चराशिस्थ हो तो हंस योग और शनि यदि केंद्रस्थ भाव में स्वराशिस्थ या उच्चराशिस्थ हो तो शश योग बनता है। यह दोनों ही योग पंचामहापुरुष योग के अंतर्गत बाते हैं जिन्हें राजयोग की संज्ञा दी गई है।
 
 
4. खगोल विज्ञान के अनुसार शनि का व्यास 120500 किमी, 10 किमी प्रति सेकंड की औसत गति से यह सूर्य से औसतन डेढ़ अरब किमी. की दूरी पर रहकर यह ग्रह 29 वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है। गुरु शक्ति पृथ्‍वी से 95 गुना अधिक और आकार में बृहस्पती के बाद इसी का नंबर आता है। अपनी धूरी पर घूमने में यह ग्रह नौ घंटे लगाता है।
 
 
5. सौरमंडल में सूर्य के आकार के बाद बृहस्पति का ही नम्बर आता है। पृथ्‍वी से बहुत दूर स्थित इस ग्रह का व्यास लगभग डेढ़ लाख किलोमीटर और सूर्य से इसकी दूरी लगभग 778000000 किलोमीटर मानी गई है। यह 13 कि.मी. प्रति सेकंड की रफ्तार से सूर्य के गिर्द 11 वर्ष में एक चक्कर लगा लेता है। यह अपनी धूरी पर 10 घंटे में ही घूम जाता है। लगभग 1300 धरतियों को इस पर रखा जा सकता है। जिस तरह सूर्य उदय और अस्त होता है, उसी तरह बृहस्पति जब भी अस्त होता है तो 30 दिन बाद पुन: उदित होता है। उदित होने के बाद 128 दिनों तक सीधे अपने पथ पर चलता है। सही रास्ते पर अर्थात मार्गी होने के बाद यह पुन: 128 दिनों तक परिक्रमा करता रहता है एवं इसके पश्चात्य पुन: अस्त हो जाता है। गुरुत्व शक्ति पृथ्वी से 318 गुना ज्यादा।
 
 
6. पुराणों के अनुसार बृहस्पति समस्त देवी-देवताओं के गुरु हैं। गुरु बृहस्पति सत्य के प्रतीक हैं। उन्हें ज्ञान, सम्मान एवं विद्वता का प्रतीक भी माना जाता है। गुरु बुद्धि और वाक् शक्ति के स्वामी हैं। वे महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं। उनकी माता का नाम सुनीमा है। इनकी बहन का नाम 'योग सिद्धा' है। नवग्रहों में बृहस्पति को गुरु की उपाधि प्राप्त है। मानव जीवन पर बृहस्पति का महत्वपूर्ण प्रभाव है। यह हर तरह की आपदा-विपदाओं से धरती और मानव की रक्षा करने वाला ग्रह है। बृहस्पति का साथ छोड़ना अर्थात आत्मा का शरीर छोड़ जाना है। कहते हैं कि हरि रुठे तो गुरु ठौर है किंतु गुरु रुठे तो...कोई ठौर नहीं।
 
 
7. पुराणों के अनुसार शनिदेव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं। शनि के फेर से देवी-देवताओं को तो छोड़ो शिव को भी बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा। रावण को असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। शनि को सूर्य का पुत्र माना जाता है। उनकी बहन का नाम देवी यमुना है। वैसे तो शनि के संबंध में कई कथाएं हैं। ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
 
 
8. गुरु के बुरे प्रभाव से धरती की आबोहवा बदल जाती है। उसी प्रकार व्यक्ति के शरीर की हवा भी बुरा प्रभाव देने लगती है। ससे श्वास रोग, वायु विकार, फेफड़ों में दर्द आदि होने लगता है। कुंडली में गुरु-शनि, गुरु-राहु और गुरु-बुध जब मिलते हैं तो अस्थमा, दमा, श्वास आदि के रोग, गर्दन, नाक या सिर में दर्द भी होने लगता है। इसके अलावा गुरु की राहु, शनि और बुध के साथ युति अनुसार भी बीमारियां होती हैं, जैसे- पेचिश, रीढ़ की हड्डी में दर्द, कब्ज, रक्त विकार, कानदर्द, पेट फूलना, जिगर में खराबी आदि।
 
 
9. शनि का संबंध मुख्‍य रूप से दृष्टि, बाल, भवें और कनपटी से होता है। समय पूर्व आंखें कमजोर होने लगती हैं और भवों के बाल झड़ जाते हैं। कनपटी की नसों में दर्द बना रहता है। समय पूर्व ही सिर के बाल झड़ जाते हैं। फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं और तब सांस लेने में तकलीफ होती है। हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, तब जोड़ों का दर्द भी पैदा हो जाता है। रक्त की कमी और रक्त में बदबू बढ़ जाती है। पेट संबंधी रोग या पेट का फूलना। सिर की नसों में तनाव। अनावश्यक चिंता और घबराहट बढ़ जाती है।
 
 
10.घर की पश्‍चिम और वायव्य दिशा के खराब होने से शनि भी खराब हो जाता है। उसी तरह घर की उत्तर और ईशान दिशा में दोष होने से बृहस्पति भी खराब हो जाता है। दोनों के खराब होने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के सारे मार्ग बंद हो जाते हैं और जातक सड़क पर जीवन यापन करने तक की नौबत आ जाती है।
 
 

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