हिन्दू देवियों की पूजा सिंदूर के इस्तेमाल के बिना अधूरी है। इसके साथ ही मांग में सिंदूर सजाना सुहागिन स्त्रियों का प्रतीक माना जाता है। यह जहां मंगलदायी माना जाता है, वहीं इससे इनके रूप-सौंदर्य में भी निखार आ जाता है।
मांग में सिंदूर सजाना एक वैवाहिक संस्कार भी है। शरीर-रचना विज्ञान के अनुसार सौभाग्यवती स्त्रियां मांग में जिस स्थान पर सिंदूर सजाती हैं, वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अहिम नामक मर्मस्थल के ठीक ऊपर है। स्त्रियों का यह मर्मस्थल अत्यंत कोमल होता है। इसकी सुरक्षा के निमित्त स्त्रियां यहां पर सिंदूर लगाती हैं।
सिंदूर में कुछ धातु अधिक मात्रा में होता है। इस कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़तीं और स्त्री के शरीर में विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है। किसी भी कन्या के विवाह के बाद सारी गृहस्थी का दबाव स्त्री पर आता है। ऐसे में आमतौर पर उसे तनाव, चिंता, अनिद्रा आदि कई बीमारियां घेर लेती हैं। सिंदूर में पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है। यह मस्तिष्क के लिए लाभकारी होती है, इस कारण विवाह पश्चात मांग में सिंदूर भरा जाता है।
सिंदूर कमीला जतन नामक पौधे की फली में से निकलता है। 20 से 25 फीट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है। फली के अंदर के भाग का आकार मटर की फली जैसा होता है जिसमें सरसों के आकार से थोड़े मोटे दाने होते हैं जो लाल रंग के पराग से ढंके होते हैं जिससे विशुद्ध सिंदूर निकलता है।
सिंदूर लाल रंग का एक चमकीला-सा चूर्ण होता है जिसे हिन्दू विवाहित स्त्रियां अपनी मांग में इसलिए भरती है क्योंकि इससे पति की उम्र लंबी होती हो घर में सुख शांति बनी रहती है।
इसके अलावा चमेली के तेल के साथ सिंदूर हनुमानजी को चढ़ाया जाता है। हनुमान जी को 5 मंगलवार और 5 शनिवार को चमेली का तेल और सिंदूर अर्पित करके गुड़ और चने का प्रसाद बांटने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा इस उपाय से आपके सभी संकटों का समाधान हो जाएगा।