हमारे शास्त्रों में कई ऐसे दुर्लभ स्तोत्र हैं, जिनके पाठ व प्रयोग से मनुष्य को आशातीत सफलता व सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। बस आवश्यकता है साधक को इन्हें पूर्ण विधि-विधान के साथ संपन्न करने की।
दुर्गासप्तशती में वर्णित "दुर्गाष्टोत्तरशतनाम" ऐसा ही एक स्तोत्र है जिसे यदि बताए अनुसार मुहूर्त्त में पूर्ण विधि-विधान के साथ संपन्न कर लिया जाए, तो मनुष्य संपत्तिशाली होता है।
दुर्गासप्तशती के अनुसार उस मनुष्य को सर्वसिद्धि सुलभ हो जाती है व राजा भी उसके दास हो जाते हैं। लेकिन इसे संपन्न करने के लिए विशेष मुहूर्त की आवश्यकता होती है, जो वर्षों में सुलभ हो पाता है। हमारे मतानुसार यदि प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करते हुए धैर्य के साथ निर्धारित मुहूर्त की प्रतीक्षा की जाए तत्पश्चात् मुहूर्त प्राप्त हो जाने पर इस प्रयोग को सम्पन्न किया जाए तो लाभ में कई गुना वृद्धि होती है। प्रयोग -
"दुर्गाष्टोत्तरशतनाम" स्तोत्र को गोरोचन, लाख, कुंकुंम, सिंदूर, कर्पूर, घी, शहद के मिश्रण से भोजपत्र पर लिखकर धारण किया जाए तो मनुष्य संपत्तिशाली होता है। यदि पूरा स्तोत्र संभव ना हो सके तो इसमें वर्णित दुर्गा देवी 108 नामों को उक्त मिश्रण से लिखकर भी धारण किया जा सकता है।
मुहूर्त्त-
दुर्गासप्तशती के अनुसार "भौमावस्यानिशामग्ने चन्द्रे शतभिषां गते" अर्थात् जिस दिन मंगलवार को अमावस्या हो एवं चन्द्र शतभिषा नक्षत्र पर स्थित हो, अर्द्धरात्रि के समय यह प्रयोग संपन्न किया जाना अपेक्षित होता है।
ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
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