देवताओं के गुरु बृहस्पति द्विस्वभाव राशियों के अधिपति हैं। इस कारण उनमें भी दोगले स्वभाव की अधिकता रहती है। एक दिन बृहस्पति की इच्छा हुई कि वे स्त्री बनें। वे ब्रह्मा के पास पहुंचे और उन्हें अपनी इच्छा बताई। सर्वज्ञाता ब्रह्मा ने उन्हें मना किया। ब्रह्मा ने कहा कि तुम समस्या में पड़ जाओगे लेकिन बृहस्पति ने जिद पकड़ ली तो ब्रह्मा ने उन्हें स्त्री बना दिया।
रूपमती स्त्री बने घूम रहे गुरु पर चंद्रमा की नजर पड़ी और चंद्रमा ने गुरु का बलात्कार कर दिया। गुरु हैरान कि अब क्या किया जाए। वे ब्रह्मा के पास गए तो उन्होंने कहा कि अब तो तुम्हे नौ महीने तक स्त्री के ही रूप में रहना पड़ेगा। गुरु दुखी हो गए। जैसे-तैसे नौ महीने बीते और बुध पैदा हुए। बुध के पैदा होते ही गुरु ने स्त्री का रूप त्यागा और फिर से पुरुष बन गए। जबरन आई संतान को भी उन्होंने नहीं संभाला।
ऐसे में बुध बिना मां और बिना बाप के अनाथ हो गए। प्रकृति ने बुध को अपनाया और धीरे-धीरे बुध बड़े होने लगे। बुध को अकेला पाकर उनके साथ राहु और शनि जैसे बुरे मित्र जुड गए। बुरे मित्रों की संगत में बुध भी बुरे काम करने लगे। इस दौरान बुध का सम्पर्क शुक्र से हुआ। शुक्र ने उन्हें समझाया कि तुम जगत के पालक सूर्य के पास चले जाओ वे तुम्हे अपना लेंगे। बुध सूर्य की शरण में चले गए और सुधर गए।
बुध अपनी संतान को त्यागने वाले गुरु और नीच के चंद्रमा से नैसर्गिक शत्रुता रखते हैं। राहु और शनि के साथ बुरे परिणाम देते हैं और शुक्र और सूर्य के साथ बेहतर। सौर मण्डल में गति करते हुए जब भी सूर्य से आगे निकलते हैं बुध के परिणामों में कमी आ जाती है और सूर्य से पीछे रहने पर उत्तम परिणाम देते हैं। अपनी माता की तरह बुध के अधिपत्य में भी दो राशियां है। गुरु के पास जहां धनु और मीन द्विस्वभाव राशियां हैं वहीं बुध के पास कन्या और मिथुन राशियों का स्वामित्व है। यह है बुध की कहानी।