धर्म एवं ज्योतिष के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी का व्रत किया जाता है। इसे गोविंद द्वादशी भी कहते हैं। इस वर्ष 24 फरवरी 2021, बुधवार को किया जाएगा। इस दिन खास तौर पर भगवान विष्णु का पूजन तिल से किया जाता है तथा पवित्र नदियों में स्नान व दान करने का नियम है। इनसे मनुष्य को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
हमारे धार्मिक पौराणिक ग्रंथ पद्म पुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन किया गया है, जिसमें कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। अत: सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान अवश्य ही करना चाहिए।
महाभारत में उल्लेख आया है कि जो मनुष्य माघ मास में तपस्वियों को तिल दान करता है, वह कभी नरक का दर्शन नहीं करता। माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। अतः इस प्रकार माघ मास के स्नान-दान की अपूर्व महिमा है। यह भी मान्यता है कि भीष्म द्वादशी का व्रत करने से सभी मनोकामना पूरी होती हैं।
शास्त्रों में माघ मास की प्रत्येक तिथि पर्व मानी गई है। यदि असक्त स्थिति के कारण पूरे महीने का नियम न निभा सके तो उसमें यह व्यवस्था भी दी है कि 3 दिन अथवा 1 दिन माघ स्नान का व्रत का पालन करें।
'मासपर्यन्तं स्नानासम्भवे तु त्र्यहमेकाहं वा स्नायात्।'
इतना ही नहीं इस माह की भीष्म द्वादशी का व्रत भी एकादशी की तरह ही पूर्ण पवित्रता के साथ चित्त को शांत रखते हुए पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से किया जाता है तो यह व्रत मनुष्य के सभी कार्य सिद्ध करके उसे पापों से मुक्ति दिलाता है। अत: इस दिन के पूजन-अर्चन का बहुत अधिक महत्व है।
पूजन विधि-
इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु जी की केले के पत्ते, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली, कुमकुम, फल आदि से पूजन करें। पूजन के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत का प्रसाद बनाकर भगवान को भोग लगाएं तथा भीष्म द्वादशी की कथा सुनें अथवा पढ़ें। इस दिन विष्णु जी के साथ देवी लक्ष्मी का पूजन तथा स्तुति करें और पूजन के पश्चात चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण करें।
इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान में दक्षिणा एवं तिल अवश्य दें। ब्राह्मण भोजन के बाद ही स्वयं भोजन करें। इस दिन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' का जाप किया जाना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए ताकि यह व्रत सफल हो सकें।