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कब है भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, जानें मुहूर्त, चंद्रोदय का समय, कैसे दें अर्घ्य, पूजा विधि और मंत्र

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वर्ष 2023 में कब है भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी जानिए यहां इस व्रत के बारे में। 10 या 11 मार्च 2023 किस दिन मनाई जाएगी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी।

धार्मिक मान्यता के अनुसार चतुर्थी तिथि देवी-देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश को समर्पित है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और हर मनोकामना पूरी होती है। 
 
शास्त्रों के अनुसार, चतुर्थी तिथि के दिन चंद्रदर्शन का विशेष महत्व होता है। चंद्रदर्शन के साथ ही चंद्रमा को अर्घ्य देने से भी श्रीगणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

यहां जानिए भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, चंद्रदर्शन और चंद्रोदय के समय के बारे में खास जानकारी-  
 
चंद्रदर्शन क्यों हैं जरूरी- चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करना बेहद शुभ माना जाता है। सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है। इसलिए भगवान श्रीगणेश को समर्पित संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रदर्शन जरूरी होते हैं। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने सुख-समृद्धि के साथ जीवन में खुशहाली आती है।
 
चंद्रमा को अर्घ्य क्यों दिया जाता है- चंद्रमा को औषधियों का स्वामी और मन का कारक माना जाता है। चंद्रदेव की पूजा के दौरान महिलाएं संतान के दीर्घायु और निरोगी होने की कामना करती हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने से अखंड सौभाग्य का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
 
कैसे दें चंद्रमा को अर्घ्य- चांदी या मिट्टी के पात्र में पानी में थोड़ासा दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्र की स्थिति भी मजबूत होती है।

चंद्रमो को अर्घ्य देने के लिए सबसे पहले एक थाली में मखाने, सफेद फूल, खीर, लड्डू और गंगाजल रखें, फिर 'ॐ चं चंद्रमस्ये नम:, ॐ गं गणपतये नम:' का मंत्र बोलकर दूध और जल अर्पित करें। सुगंधित अगरबत्ती जलाएं। भोग लगाएं और फिर प्रसाद के साथ व्रत का पारण करें। चंद्रमा को अर्घ्य देने से जहां मन में आ रहे समस्त नकारात्मक विचार, दुर्भावना दूर होती है वहीं स्वास्थ्य को लाभ भी मिलता है। 
 
भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी के मुहूर्त-bhalchandra sankashti chaturthi muhurat 2023  
 
भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी : 11 मार्च 2023, शनिवार
चैत्र कृष्ण चतुर्थी का प्रारंभ- 10 मार्च 2023, दिन शुक्रवार को 09:42 पी एम से 
चैत्र कृष्ण चतुर्थी की समाप्ति- 11 मार्च, शनिवार को 10:05 पी एम पर।
भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी चंद्रोदय का समय- 10:03 पी एम पर। 
 
दिन का चौघड़िया
 
शुभ- 08:05 ए एम से 09:34 ए एम
चर- 12:31 पी एम से 02:00 पी एम
लाभ- 02:00 पी एम से 03:29 पी एमवार वेला
अमृत- 03:29 पी एम से 04:58 पी एम
 
रात का चौघड़िया
 
लाभ- 06:27 पी एम से 07:58 पी एम
शुभ- 09:29 पी एम से 11:00 पी एम
अमृत- 11:00 पी एम से 12 मार्च को 12:31 ए एम
चर- 12:31 ए एम से 12 मार्च को 02:02 ए एम तक
लाभ- 05:04 ए एम से 12 मार्च को 06:35 ए एम तक। 

चतुर्थी पूजा विधि-Chaturthi Puja Vidhi 
 
- भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रात: स्नानादि के पश्‍चात एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना करें।
 
- चांदी, पीतल, तांबे या मिट्टी के गणेश की मूर्ति नहीं है तो आप तस्वीर से काम चलाएं। 
 
- भगवान श्री गणेश को पीले वस्त्र चढ़ाएं। 
 
- श्री गणेश प्रतिमा को लाल रोली, कलावा, फूल, हल्दी, दूर्वा, चंदन, धूप, घी आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
 
- श्री गणेश को फूलों की माला पहनाएं।
 
- भगवान श्री गणेश के मंत्रों का जाप करें।
 
- इसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखें। 
 
- मोदक का प्रसाद बनाएं तथा भगवान श्री गणेश को मोदक, लड्‍डू, केला, नारियल आदि का भोग लगाएं। 
 
- गरीबों को खाने-पीने की चीजों का दान दें।
 
- पूजा के साथ इस दिन श्री गणेश नामावली, श्री गणेश अथर्वशीर्ष, गणेश चालीसा का पाठ करें। 
 
- इस दिन में अथवा गोधूली बेला में श्री गणेश दर्शन अवश्य करें। 
 
- रात्रि में मोदक या लड्‍डू का भोग श्री गणेश के साथ ही चंद्रमा को भी अर्पित करके इसी लड्डू से व्रत खोलें। 
 
- श्री गणेश चतुर्थी की कथा पढ़ें। 
 
- इस व्रत से मनुष्य को अनेक प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।  

श्री गणेश के मंत्र-Ganesh Mantra  
 
1. 'श्री गणेशाय नम:' 
2. 'ॐ गं गणपतये नम:' 
3. वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा।
4. एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। 
5. 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।' 
 

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