हिन्दू धर्म में घर में धूप और दीप देने का प्राचीनकाल से ही प्रचलन रहा है। कई प्रकार से और कई तरह की वस्तुओं को जलाकर धूप दी जाती है। घर से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकालकर सकारात्मक उर्जा बढ़ाने के लिए, पितृदोष, ग्रह दोष, वास्तु दोष और गृह कलह से मुक्ति हेतु धूप देते हैं। इससे घर के सभी सदस्य निरोगी, सुखी और शांतचित्त रहते हैं। आओ जानते हैं कि धूप देना क्या है और यह कैसे दी जाती है।
1. षोडशांग धूप : तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलाइची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार की वस्तुओं को धूप देने के पात्र में जलते उपले पर डालकर धूप देते हैं। इसे षोडशांग धूप कहते हैं। इनकी धूनी देने से आकस्मिक रोग, शोक और दुर्घटना नहीं होती है।
2. दशांग धूप : मदरत्न के अनुसार चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे दशांग धूप कहते हैं। इस धूप को देने से घर में शांति रहती है।
3. मिश्रित धूम : इसके अलावा भी अन्य मिश्रणों का भी उल्लेख मिलता है जैसे- छह भाग कुष्ठ, दो भाग गुड़, तीन भाग लाक्षा, पांचवां भाग नखला, हरीतकी, राल समान अंश में, दपै एक भाग, शिलाजय तीन लव जिनता, नागरमोथा चार भाग, गुग्गुल एक भाग लेने से अति उत्तम धूप तैयार होती है। रुहिकाख्य, कण, दारुसिहृक, अगर, सित, शंख, जातीफल, श्रीश ये धूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं।
4. गुड़ और घी : घर में एक कंडे अर्थात उपले पर गुड़ को घी में मिलाकर धूप दें। इसे वातावरण सुगंधित बनेगा और ऑक्सिजन लेवल भी बढ़ेगा। आप चाहें तो इसमें थोड़ा गुग्गल या हवन समिधा भी मिलाकर डाल सकते हैं। सर्वप्रथम एक कंडा जलाएं। फिर कुछ देर बार जब उसके अंगारे ही रह जाएं तब गुड़ और घी बराबर मात्रा में लेकर उक्त अंगारे पर रख दें। इससे जो सुगंधित वातावरण निर्मित होगा, वह आपके मन और मस्तिष्क के तनाव को शांत कर देगा।
5. गुग्गल की धूप : गुग्गुल का उपयोग सुगंध, इत्र व औषधि में भी किया जाता है। इसकी महक मीठी होती है और आग में डालने पर वह स्थान सुंगध से भर जाता है। सर्वप्रथम एक कंडा जलाएं। फिर कुछ देर बार जब उसके अंगारे ही रह जाएं तब उस पर गुग्गुल डाल दें। इससे संपूर्ण घर में एक सुगंधित धुआं फैल जाएगा। अक्सर यह धूप गुरुवार और रविवार को दी जाती है।
6. कर्पूर : कर्पूर जलाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के समक्ष कर्पूर जलाने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जिस घर में नियमित रूप से कर्पूर जलाया जाता है, वहां देवदोष, पितृदोष या किसी भी प्रकार के ग्रह दोषों का असर नहीं होता है। कर्पूर जलाते रहने से घर का वास्तु दोष भी शांत रहता है। वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता।
7. लोबान की धूप : लोबान को सुलगते हुए कंडे या अंगारे पर रख कर जलाया जाता है। लोबान का इस्तेमाल अक्सर दर्गाह जैसी जगह पर होता है। लोबान को जलाने के नियम होते हैं। इसको जलाने से पारलौकिक शक्तियां आकर्षित होती है। अत: लोबान को घर में जलाने से पहले किसी विशेषज्ञ से पूछकर जलाएं।
धूप देने के लाभ:- धूप देने से मन, शरीर और घर में शांति की स्थापना होती है। इससे देवदोष, पितृदोष, वास्तुदोष, ग्रहदोष आदि मिट जाते हैं। इससे सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं। गृहकलह और आकस्मिक घटना-दुर्घटना नहीं होती। घर के भीतर व्याप्त सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलकर घर का वास्तुदोष मिट जाता है। ग्रह-नक्षत्रों से होने वाले छिटपुट बुरे असर भी धूप देने से दूर हो जाते हैं। धूप देने से देवता और पितृ प्रसंन्न होते हैं जिनकी सहायता से जीवन के हर तरह के कष्ट मिट जाते हैं।
कैसे और किस प्रकार देते हैं धूप : पितरों, देवताओं और क्षेत्रज्ञ को तथा वास्तु अर्थात हमारे घर के वातारवण को शुद्ध करने के लिए धूप देते हैं। धूप उपर बताए अनुसार सामग्री को मिलाकर धूप बनाई जाती है फिर उसे जलाकर धूप दी जाती है। धूप को लकड़ी पर या कंडे पर रखकर जलाया जाता है। लेकिन वर्तमान में सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है।
धूप देने के नियम:-
1.रोज धूप नहीं दे पाएं तो तेरस, चौदस, अमावस्या और तेरस, चौदस तथा पूर्णिमा को सुबह-शाम धूप अवश्य देना चाहिए। मान्यता है कि सुबह दी जाने वाली धूप देवगणों के लिए और शाम को दी जाने वाली धूप पितरों के लिए लगती है। हालांकि शाम की धूप भी देवगणों के लिए दी जा सकती है।
2.धूप देने के पूर्व घर की सफाई कर दें। पवित्र होकर-रहकर ही धूप दें। धूप ईशान कोण में ही दें। घर के सभी कमरों में धूप की सुगंध फैल जाना चाहिए। धूप देने और धूप का असर रहे तब तक किसी भी प्रकार का संगीत नहीं बजाना चाहिए। हो सके तो कम से कम बात करना चाहिए।