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आपका या आपकी संतान का हुआ है अमावस्या को जन्म तो होगा ये भविष्य

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अनिरुद्ध जोशी

, शनिवार, 18 जनवरी 2020 (12:17 IST)
ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक तिथि को जन्म लेने का अलग अलग परिणाम बताया गया है। यहां जानिए कि अमावस्य को जन्म लेने वाली संतान का भविष्य क्या होता है और इसके लिए क्या उपाय करना चाहिए।
 
 
ऋषि पाराशर के अनुसार अमावस्या को जिस भी जातक का जन्म हुआ है उसके आने के बाद घर में धीरे-धीरे दरिद्रता बढ़ती जाती है। अत: अमावस्या के दिन संतान का जन्म होने पर उचित रीति से शांति किए जाने का विधान है।
 
 
ज्योतिष के अनुसार कुंडली में जब सूर्य और चंद्र एक ही भाव में हो तब भी इस दोष का निर्माण होता है। लेकिन यह दोष अलग अलग भाव अनुसार अलग अलग फल देने वाला होता है। जैसे प्रथम भाव में यह युति बन रही है तो उसे अपने माता पिता से कभी सुख नहीं मिलता और अनबन बनी रहती है। जबकि 10वें भाव में होने पर जातक शारीरिक रूप से मजबूत होता है लेकिन उन्हें अपमान झेलते रहना पड़ता है।
 
 
यह भी कहा जाता है कि अमावस्या में जन्मा बच्चा व्याकुल, अस्थिर, आत्मबल से कमजोर, आलसी आदि होता है। यह भी कहा जाता है कि ऐसे जातक को भविष्य में स्त्री, पुत्र, कुल, धन आदि सम्बन्धी हानि उठानी पड़ती है। लेकिन यदि उस समय शुभ नक्षत्र है तो यह दोष कुछ हद तक दूर हो जाते हैं। अमावस्या तिथि में जब अनुराधा नक्षत्र का तृतीय व चतुर्थ चरण होता है तो सर्पशीर्ष कहलाता है। सर्पशीर्ष में शिशु का जन्म दोष पूर्ण माना जाता है।
 
 
उल्लेखनीय है कि अमावस्या कई प्रकार की होती है और सभी का फल अलग अलग होता है। कुछ मुख्‍य अमावस्या:- भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सोमवती अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या। ज्योतिष को कुंडली दिखवाकर ही उचित उपाय करें, क्योंकि उपरोक्त बताए गए भविष्‍यफल को नक्षत्र, करण, योग आदि के आधार पर भी देखा जाता है। अत: जरूरी नहीं कि अमावस्या को जन्मा बच्चा दरिद्रता लाए या मानसिक रूप से कमजोर हो या उसे जीवन में कई परेशानियां झेलना पड़े।
 
 
उपाय : इस दोष के निवारण हेतु कलश स्थापना करके उसमें पंच पल्लव, जड़, छाल और पंचामृत डालकर अभिमंत्रित करके अग्निकोण में स्थापना कर दें फिर सूर्य, चंद्रमा की मूर्ति बनवाकर स्थापना करें और षोडशोपचार या पंचोपचार से पूजन करें। फिर इन ग्रहों की समिधा से हवन करें, माता-पिता का भी अभिषेक करें और दक्षिणा दें और इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराएं। किसी पंडित के सान्निध्य में ही यह पूजन विधिपूर्वक कराएं। 

 
श्राद्ध कर्म करते रहने से भी यह शांति हो जाती है। सर्पशीर्ष योग में जन्म होने पर रुद्राभिषेक कराने के बाद ब्राह्मणों को भोजन एवं दान देना चाहिए। यदि जातक सोने या चांदी के तार की मूर्ति आदि नहीं बनवाने की क्षमता नहीं रखता है तो प्रतिकात्मक रूप से उक्त ग्रहों से संबंधित अन्य धातु या वृक्ष से यह मूर्ति बनाई जाती है। 

 
इसके अलावा अमावस्या को जन्में जातक को हमेशा सफेद रंग का रूमाल अपने पास रखना चाहिए। अधिकतर मौकों पर सफेद वस्त्र पहनना चाहिए। गहरे रंगों से बचना चाहिए। अगर कुंडली में चंद्रमा लग्नेश का मित्र हो या शुभ भाव का स्वामी हो और नीच राशि या 6-8-12 मे ना हो तो चंद्रमा को बल देने के लिये मोती पहनना चाहिए। यदि किसी की कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो और 6-8-12 का स्वामी हो या नीच राशि पर हो तो उसे मोती नहीं पहनना चाहिए। पक्षियों को चावल या सफेद ज्वार डालना चाहिए। उसे सफेद वस्तु का दान करना चाहिए। चांदी के गोल लाकेट पर चंद्रमा बनवाकर गले में धारण करना चाहिए। लेकिन उपरोक्त सभी उपाय किसी ज्योतिष या पंडित से पूछकर ही करें।
 

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