साल 2008 का एशिया कप भी लगभग वैसा ही घटा जैसा साल 2004 का एशिया कप घटा। बस फर्क इतना था कि इस बार यह एशिया कप श्रीलंका की धीमी पिचों की जगह पाकिस्तान की सपाट पिचों पर खेला गया। इस कारण बड़े स्कोर यानि कि 300 के स्कोर बहुत देखने को मिले।
इस बार भी 6 टीमों को 2 ग्रुप में बांटा गया। ग्रुप ए में संयुक्त अरब अमीरात बांग्लादेश और श्रीलंका से हारकर बाहर हो गई। वहीं हॉंगकॉंग पाकिस्तान और भारत से हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गई। ग्रुप ए में श्रीलंका तो ग्रुप बी में भारत शीर्ष पर रहा। भारत ने मेजबान पाकिस्तान को 300 रनों के लक्ष्य होने के बावजूद भी 7 विकेटों से हराया।
सुपर 4 में फिर वही 4 टीमें थी जो पिछले 2 एशिया कप में रही। बांग्लादेश ,श्रीलंका, भारत और पाकिस्तान। श्रीलंका ने बांग्लादेश को 158 रनों से तो मेजबान पाकिस्तान को 64 रनों से हराकर फाइनल में प्रवेश कर लिया।
पाकिस्तान ने भारत से हार का बदला लिया और ठीक वैसे ही मैच में भारत ने भी 300 से ज्यादा रन बनाए लेकिन पाकिस्तान ने 8 विकेटों से जीत दर्ज की। अब पिछले संस्करण की तरह भारत को फाइनल में पहुंचने के लिए श्रीलंका को हराना ही था, नहीं तो पाकिस्तान फाइनल में पहुंच जाता।
श्रीलंका ने भी भारत के सामने 300 से ज्यादा रनों का लक्ष्य रखा लेकिन सपाट पिच होने के कारण इस लक्ष्य को भारत ने 4 विकेट खोकर पा लिया और मेजबान पाकिस्तान को फाइनल जाने से रोक लिया। पिछली बार की तरह ही एक बार फिर पाकिस्तान और बांग्लादेश का मैच बेमतलब का रह गया जिसे मेजबान ने 10 विकेटों से जीता।
फाइनल में श्रीलंका की वापसी जयसूर्या और मेंडिंस ने कराई
'मैन ऑफ द मैच' और 'मैन ऑफ द टूर्नामेंट' घोषित हुए नवोदित गेंदबाज अजंता मेंडिस की कहर बरपाती गेंदबाजी (8 ओवर में 13 रन देकर 6 विकेट) के आगे भारतीय बल्लेबाज नतमस्तक हो गए थे और श्रीलंका ने एशिया कप के फाइनल का फाइनल चौथी मर्तबा जीतने का गौरव हासिल कर लिया था।यह लगातार दूसरा मौका था जब श्रीलंका ने भारत को एशिया कप की खिताबी हार थमाई थी।
मेंडिस के अलावा सनथ जयसूर्या के चमकीले शतक (101 गेंदों पर 125 रन) ने श्रीलंका की जीत में महती भूमिका अदा की थी और इस तरह उसने भारत को 100 रनों से रौंद डाला था। लंका ने सिक्का हारकर बल्लेबाजी करने की चुनौती स्वीकार करते हुए 49.5 ओवरों में 273 रन बनाए थे। भारतीय पारी 39.3 ओवरों में 173 रनों पर ही सिमट गई थी।
वीरेन्द्र सहवाग के 36 गेंदों पर 12 चौकों की मदद से बनाए गए आतिशी 60 रन के अलावा कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी (49) ही विकेट पर टिक सके थे। इनके अलावा सभी ने बेहद निराश किया था। गंभीर 1, रैना 16, युवराज 0, रोहित शर्मा 3, उथप्पा 20, पठान 2, आरपीसिंह 2 और ईशांत शर्मा 8 रन बना सके थे।
श्रीलंका की ओर से मेंडिस के अलावा चामिंडा वास 55 रन देकर 2 विकेट लेने में सफल रहे थे, जबकि मुरलीधरन और कुलशेखर के हिस्से में 1-1 विकेट आया था।पर खास बात यह थी कि अजंता मेंडिस गेंदबाजी के लिए तब आए जब भारत का स्कोर 9 ओवरों में 76 रनों पर 1 विकेट था और उसके बाद उन्होंने कहानी ही पलट दी ऐसा लग रहा था कि वह कराची नहीं बल्कि कैंडी की पिच पर गेंदबाजी कर रहे हैं जहां उनकी गेंदों को इतना टर्न मिल रहा है कि भारतीय बल्लेबाज खेल ही नहीं पा रहे।
इससे पहले ओपनर सनथ जयसूर्या (125) के विस्फोटक शतक के बावजूद श्रीलंका 49.5 ओवर में 273 रन का स्कोर बनाने में सफल रहा था। जयसूर्या ने 114 गेंदों पर अपना 27वाँ और टूर्नामेंट का अपना दूसरा शतक ठोका था। अपनी जोरदार पारी में उन्होंने नौ चौके और पाँच छक्के लगाए थे, लेकिन श्रीलंका उनकी इस पारी का फायदा नहीं उठा पाया था और पूरी टीम 49.5 ओवर में सिमट गई थी।
कराची के नेशनल स्टेडियम की जिस पिच पर इससे पहले 300 से ज्यादा रन कई बार बने थे, उसी पिच पर श्रीलंकाई टीम फाइनल में इस आँकड़े के नजदीक नहीं पहुँच सकी थी।
श्रीलंका को 273 रन पर रोकने का श्रेय युवा तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा को गया, जिन्होंने महेला जयवर्धने, चामरा कापूगेदेरा और चामरा सिल्वा के विकेट लेकर श्रीलंका पर अंकुश लगा दिया था। ईशांत ने इसके अलावा वीरेन्द्र सहवाग की गेंद पर जयसूर्या का कैच भी लपका था।
शुरुआत में जयसूर्या के हाथों पिटने वाले बाएँ हाथ के तेज गेंदबाज रुद्रप्रताप सिंह ने बाद में जोरदार वापसी करते हुए चामिंडा वास. तिलन तुषारा और अजंता मेंडिस के विकेट झटके थे। इरफान पठान ने श्रीलंका की पारी के दूसरे शीर्ष स्कोरर तिलकरत्ने दिलशान (56) और मुथैया मुरलीधरन को आउट किया था।
भारतीय कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी ने टॉस जीतकर पहले क्षेत्ररक्षण करने का फैसला किया था, लेकिन फॉर्म में चल रहे कुमार संगकारा के मात्र चार रन बनाकर रन आउट हो जाने से श्रीलंका को गहरा झटका लगा था। संगकारा ने रन लेने की कोशिश की थी, लेकिन सुरेश रैना के सटीक थ्रो पर वे रन आउट हो गए थे।
श्रीलंका का पहला विकेट 11 के स्कोर पर गिरा था। श्रीलंका का स्कोर 34 रन पहुँचा था कि ईशांत ने श्रीलंका के कप्तान महेला जयवर्धने को पॉइंट में रोहित शर्मा के हाथों कैच करा दिया था। जयवर्धने 11 रन ही बना सके थे। टूर्नामेंट में पहली बार शानदार गेंदबाजी कर रहे ईशांत ने फिर पारी के 12वें ओवर में कापूगेदेरा (5) और चामरा सिल्वा (0) का शिकार कर लिया था। कापूगेदेरा पाइंट में रैना के हाथों लपके गए थे, जबकि सिल्वा बोल्ड हो गए थे।
ऐसी नाजुक स्थिति में जयसूर्या को दिलशान (56) से अच्छा सहयोग मिला था। दोनों ने पाँचवे विकेट के लिए 131 रन की बहुमूल्य साझेदारी की थी। जयसूर्या ने 16वें ओवर में रुद्रप्रताप के गेंदो पर 6, 6, 4, 4 और आखिरी गेंद पर छक्का उडाते हुए कुल 26 रन बटोरे थे। जयसूर्या ने अपने 50 रन 43 गेंदो में और 100 रन 79 गेंदो में पूरे कर लिए थे। जयसूर्या ने ईशांत और पठान की गेंदों को भी नहीं बख्शा था।
जयसूर्या अपना शतक पूरा करने के बाद कुछ धीमें हो गए थे। शायद वे अंतिम ओवरों तक टिके रहना चाहते थे। उन्होंने सहवाग की गेंद पर स्वीप शॉट खेला, लेकिन डीप मिडविकेट पर ईशांत के हाथों लपके गए थे। जयसूर्या ने हालाँकि जबरदस्त पारी खेली, लेकिन वे पैवेलियन लौटते समय कुछ निराश दिखाई दिए थे।
जयसूर्या का विकेट गिरते ही भारतीय गेंदबाजों के हौसले बुलंद हो गए थे। इसके बाद भारतीय गेंदबाज श्रीलंका पर हावी होते चले गए थे। जयसूर्या 36वें ओवर में 197 के स्कोर पर आउट हुए थे। इसके बाद श्रीलंका बल्लेबाज 14.2 ओवर में केवल 76 रन बना सकी थी।
बाएँ हाथ के युवा स्पिनर प्रज्ञान ओझा ने कसी हुई गेंदबाजी करते हुए 10 ओवर में सिर्फ 38 रन दिए थे। नुवान कुलशेखर ने 29 गेंदो में 29 रन बनाकर श्रीलंका 273 के स्कोर तक पहुँचाया था। ईशांत ने 52 रन पर तीन विकेट, रुद्रप्रताप ने 67 रन पर तीन विकेट और पठान ने 67 रन पर दो विकेट लिए थे।
पुरस्कार वितरण : पुरस्कार वितरण समारोह पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के आतिथ्य में सम्पन्न हुआ था। 29 वर्षीय सनथ जयसूर्या को सबसे ज्यादा छक्क लगाने का पुरस्कार दिया गया था, सनथ जयसूर्या इस टूर्नामेंट के सबसे सफल बल्लेबाज भी थे, उन्होंने 5 मैचों में 2 शतक और 1 अर्धशतक के साथ 378 रन जड़े थे। जब मेंडिस को 'मैन ऑफ द मैच' का पुस्कार दिया गया था, तब संचालन कर रहे रमीज राजा ने उनकी प्रतिक्रिया जानना चाही, लेकिन अंग्रेजी न आने की वजह से कप्तान महेला जयवर्धने को दुभाषिए की भूमिका अदा करनी पड़ी थी। अजंता मेंडिस को टूर्नामेंट में सर्वाधिक 17 विकेट चटकाने के लिए मैन ऑफ द टूर्नामेंट का पुरुस्कार दिया गया।