Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

मैदान पर बोलती रही भारत की तूती

हमें फॉलो करें मैदान पर बोलती रही भारत की तूती
-सीमान्त सुवी
वक्त मुट्ठी में समेटी हुई रेत की तरह होता है, जो कब फिसल जाता है, पता ही नहीं चलता। मिनट, घंटे, दिन और महीने देखते ही देखते गुजर जाते हैं। दिसंबर का पहला पखवाड़ा गुजरते ही अहसास होता है कि अरे...साल गुजर गया, पता ही नहीं चला...और हम नववर्ष के स्वागत के साथ-साथ नए लक्ष्य को तय करने का ताना-बाना बुनने में जुट जाते हैं।

ND
2008 का साल भारतीय खेल जगत के नजरिये से काफी कामयाब रहा। शतरंज के बादशाह विश्वनाथन आनंद तीसरी मर्तबा विश्व विजेता बने तो साइना नेहवाल के रूप में नई बैडमिंटन सनसनी मिली। भारत की शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ी साइना विश्व सुपर सि‍रीज मास्टर्स फाइनल के सेमीफाइनल तक जरूर पहुँचीं, लेकिन में हांगकांग की चेन वांग से परास्त हो गईं। इस मुकाम तक पहुँचने वाली वे भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी हैं।

बीजिंग ओलिम्पिक : ओलिम्पिक को 'खेलों का कुंभ' माना जाता है और इसके 29वें संस्करण का आयोजन चीन जैसे उस देश ने किया, जो बरसों से 'लोह आवरण' में खुद को जकड़े हुए है। बीजिंग में जब रात को घड़ी का काँटा 8 बजकर 8 सेकंड पर आया, उसी वक्त ओलिम्पिक खेलों का भव्य शुभारंभ हो गया। तारीख थी 8, महीना था आठवाँ और साल था 2008 यानी 8-8-8 का अनूठा संयोग।

पानी की तरह बहाया पैसा : चीन ने इस ओलिम्पिक पर पानी की तरह पैसा बहाया और अभूतपूर्व ऐश्वर्य की अगवानी की। इस ओलिम्पिक का बजट 43 अरब डॉलर आँका गया। चीन ने सिर्फ स्टेडियमों का निर्माण पर ही एक अरब 80 करोड़ डॉलर खर्च किए थे, इससे सहज रूप से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसने कितने वैभव और चकाचौंध के साथ इन खेलों की मेजबानी की, जिसमें 302 स्वर्ण पदकों के लिए 205 देशों के 15 हजार से ज्यादा खिलाड़ियों ने शिरकत की।

webdunia
WD
100 साल बाद आई खुशियाँ : एथेंस ओलिम्पिक में भारत के 7 एथलीटों ने भाग लिया था, जबकि बीजिंग में 56 सदस्य गए। 11 अगस्त को इन खेलों के चौथे दिन जब भारत में लोग अपने कामकाज में लगे थे, तब सुदूर बीजिंग से आई एक ऐसी खबर ने हड़कंप मचा दिया, जिसका इंतजार 100 सालों से किया जा रहा था। अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल में अपना निशाना सोने के पदक पर लगाया।

हर भारतीय का सीना हुआ चौड़ा : चीन की जमीन पर जब राष्ट्रीय धुन 'जन गण मन' के साथ प्यारा 'तिरंगा' लहराया तो सवा अरब से ज्यादा की आबादी वाले हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। जब भी विदेश की जमीन पर 'तिरंगा' लहराता है और राष्ट्र धुन बजती है तो भारत में रहने वाले लोगों की आँखों में आँसू छलक आते हैं। ये आँसू खुशी के रहते हैं, गर्व के होते हैं और इस बात का सूचक होते हैं कि भारतीय खिलाड़ियों की बाजुओं में ताकत है, शक्ति है और ओलिम्पिक का स्वर्ण पदक जीतने की कूवत है।

13 साल की तपस्या का मिला फल : कितने ताज्जुब की बात है कि बीजिंग जाने के पूर्व 25 बरस के अभिनव बिंद्रा की पीठ में इतना असहनीय दर्द था कि डॉक्टरों ने उन्हें सर्जरी कराने की सलाह दी थी, लेकिन अभिनव पर तो स्वर्ण पदक जीतने का जुनून सवार था। उन्होंने योग और अन्य व्यायामों से पीठ की सर्जरी को टाला और कड़ी मेहनत से देश को वह सम्मान दिलाया जिसके लिए 100 सालों से आँखें तरस रही थीं।

28 बरस पहले मास्को ओलिम्पिक में भारतीय हॉकी की टीम ने अंतिम बार सोने की चमक को अपने सीने से लगाया था और अब दूसरी बार अभिनव ने अपना गला सोने के पदक से सजाया।

यकीनन अभिनव को निशानेबाजी में 13 साल की तपस्या का नायाब तोहफा मिला। अभिनव की यह कामयाबी 'एवरेस्ट' के शिखर को जीतने जैसी है। अभिनव के पिता का 1000 करोड़ का कारोबार है और उन्होंने अपने बेटे को तोहफे में 200 करोड़ का आलीशान होटल देने का फैसला किया है।

कुश्ती और मुक्केबाजी में काँस्य पदक : बीजिंग ओलिम्पिक की मु्क्केबाजी प्रतियोगिता में हरियाणा के विजेन्दरसिंह क्वार्टर फाइनल में परास्त जरूर हुए, लेकिन उन्हें काँस्य पदक से संतोष करना पड़ा। कुश्ती में भी हरियाणा के ही पहलवान सुशील कुमार ने अपना गला काँसे के पदक से सजाया। इस तरह इस बार भारत ओलिम्पिक में भारत स्वर्ण पदक का खाता खोलने में कामयाब रहा।

webdunia
PTI
सानिया पर नाकामियों का साया : भारतीय टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा के लिए यह साल एक भी खुश खबर लेकर नहीं आया। सानिया पर इस साल नाकामियों का साया मंडराता रहा। यहाँ तक कि साल के खत्म होने पर वे टॉप 100 से भी बाहर हो गईं। इसकी एक वजह शारीरिक चोटें रहीं।

बीजिंग ओलिम्पिक के लिए जब 22 साल की सानिया ने चीन की धरती पर कदम रखा तब उनकी रैंकिंग 50 साल के पार थी और इसके बाद भी उम्मीद बँधी हुई थी कि वे कोई चमत्कार करेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। एकल और युगल में उनकी चुनौती ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई।

साइना नेहवाल की ऊँची उड़ान : हैदराबाद की 18 वर्षीय साइना नेहवाल बीजिंग ओलिम्पिक खेलों की बैडमिंटन प्रतियोगिता के क्वार्टर फाइनल तक अपनी चुनौती कायम रखने में सफल हुईं। साइना भारत की ऐसी पहली बैडमिंटन खिलाड़ी बन गईं, जो क्वार्टर फाइनल तक पहुँची हैं। इस पायदान पर उन्हें इंडोनेशिया की अनुभवी खिलाड़ी मारिया किस्टीन के हाथों तीन गेमों में पराजय मिली।

webdunia
ND
साइना ने 16 वर्ष की उम्र में 2006 में मनीला में आयोजित फोर स्टार फिलीपींस ओपन बैडमिंटन का खिताब जीतकर जो ऊँची उड़ान भरी थी, उसी का परिणाम है कि वे अपनी मेहनत के बूते इस मुकाम पर हैं। बीजिंग में साइना के प्रदर्शन ने यह तो उम्मीद जगा दी है कि उनमें असीम क्षमता है और सही मार्गदर्शन के बल पर वे 2010 के राष्ट्रमंडल खेल और 2012 के लंदन ओलिम्पिक में पदक भी जीत सकती हैं।

राज्यवर्धनसिंह नहीं कर पाए राज : बीजिंग ओलिम्पिक में भारत के निशानेबाज और ध्वजवाहक की भूमिका निभाने वाले राज्यवर्धनसिंह राठौड़ से काफी उम्मीदें थीं कि वे डबल ट्रैप निशानेबाजी में पिछली सफलता से एक पायदान ऊपर चढ़ेंगे, लेकिन क्वालीफिकेशन राउंड में ही बाहर हो जाने की वजह से वे फाइनल तक भी नहीं पहुँच सके।

सेना के इस निशानेबाज ने एथेंस ओलिम्पिक में रजत पदक प्राप्त कर पदक तालिका में भारत का नाम अंकित कराया था, लेकिन बीजिंग के मार्च पास्ट में शेरवानी पहने राज्यवर्धन जब भारतीय दल के मुखिया बनकर तिरंगा लिए चल रहे थे, तब उनके चेहरे पर आत्मविश्वास था और इसी आत्मविश्वास ने उन पर उम्मीदों का बोज लाद दिया था। पूरा भारत उस समय हैरान रह गया, जब राज्यवर्धन अपने इवेंट के क्वालीफिकेशन राउंड में ही बाहर हो गए।

दम तोड़ता हॉकी के जादूगर का सपना : मेजर ध्यानचंद ने तीन ओलिम्पिक 1928 (एम्सटर्डम), 1932 (लॉस एंजिल्स) और 1936 (बर्लिन) में भारतीय टीम के लिए खेले और तीनों में भारतीय टीम स्वर्ण पदक जीतकर लौटी। दादा ध्यानचंद का सपना था कि भारत का यही गौरवशाली इतिहास आगे भी जारी रहे।

ओलिम्पिक हॉकी में भारत ने कुल 8 स्वर्ण, 1 रजत और 2 काँस्य पदक जरूर जीते, लेकिन 80 साल के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब भारतीय टीम बीजिंग ओलिम्पिक के लिए पात्रता हासिल नहीं कर सकी।

हॉकी की दुर्दशा देखकर दुःखी होना लाजिमी है। जो लोग क्रिकेट को पागलों की तरह प्यार करते हैं, उनके दिलों में हॉकी के प्रति असीम आस्था है, लेकिन इस खेल में मिली लगातार नाकामियों (2006 की एशिया कप विजय को छोड़कर) ने इस आस्था को कम करने में बड़ी भूमिका अदा की।

शतरंज में आनंद की बादशाहत : विश्वनाथन आनंद ने शतरंज के खेल में भारत को जिस ऊँचाई पर विराजमान किया, उसकी मिसाल आने वाले कई वर्षो तक दी जाती रहेगी। आनंद ने जर्मनी के बोन शहर में रूस के व्लादिमीर क्रैमनिक को हराकर विश्व शतरंज चैम्पियनशिप जीती। विश्व शतरंज में यह उनका तीसरा खिताब था। काबिले गौर है कि आनंद शतरंज की तीनों विधाओं
नाकआउट, टूर्नामेंट तथा मैच प्ले के खिताब जीतने वाले पहले शतरंज खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल किया है।

webdunia
ND
जीव ने जगाई आस : गोल्फ में भारतीय मूल के ‍‍फिजी में रहने वाले विजयसिंह के बाद यदि भारत का नाम किसी ने चमकाया है तो वे जीव मिल्खासिंह ही हैं। 38 वर्षीय जीव महान धावक मिल्खासिंह के पुत्र हैं और खेलकूद उन्हें विरासत में मिला है। उनकी माँ भी वॉलीबॉल की मशहूर खिलाड़ी रहीं हैं।

मिल्खासिंह अपने बेटे को टेनिस खिलाड़ी बनाना चाहते थे, लेकिन जीव ने गोल्फ को गले लगाया। चंडीगढ़ में 1971 में जन्में जीव ने इस साल जापान टूर में गोल्फ निप्पन सिरीज जीती, जिसकी बदौलत वे दुनिया में 36वें नंबर के गोल्फर बन गए। गोल्फ रैंकिंग में इतने ऊँचे मुकाम पर पहुँचने वाले ये पहले भारतीय खिला़ड़ी हैं।

सानिया 100 से बाहर हुई : भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा के लिए यह साल कोई भी बड़ी खुशी का पैगाम लेकर नहीं आया और वर्षान्त में वे टॉप 100 खिलाड़ियों की फेहरिस्त से भी बाहर हो गईं। इसकी वजह यह रही कि वे कलाई की चोट के कारण चार महीनों तक कोर्ट से रहीं। साल के आखिरी में जब रैंकिंग जारी हुई तो उसमें यह हैदराबादी बाला 344 अंकों के साथ 101 वें नंबर पर थीं।

हैदराबाद की 22 वर्षीया सानिया ने पहली बार 2005 में चोटी की 100 खिलाड़‍ियों में जगह बनाई थी। वे पिछले साल अगस्त में अपने करियर के सर्वश्रेष्ठ 27वें नंबर पर पहुँच गई थीं, लेकिन उसके बाद से उनकी रैंकिंग का गिरना जारी रहा।

हालाँकि साल की शुरुआत में होने वाले ऑस्ट्रेलियन ओपन ग्रैंड स्लैम में वे तीसरे राउंड पहुँचकर उन्होंने नई आस जगाई, लेकिन ऑपरेशन के बावजूद कलाई की चोट फिर उभर आने के कारण बीजिंग ओलि‍म्‍पिक के बाद से वे टेनिस कोर्ट पर नजर नहीं आईं। उपलब्धियों को लेकर सानिया के नाम डब्ल्यूटीए का एक एकल और सात युगल खिताब हैं। वे युगल की रैंकिंग में 61वें स्थान पर बनी हुई हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi