बहुत पुरानी बात है। कलिंग देश में सुबाहू नाम के राजा हुआ करते थे। उनकी पत्नी कांचीपुरी के राजा दृढधन्वा की कन्या विशालाक्षी थी। दोनों परस्पर प्रेम से रहते थे। राजा को माथे में दोपहर में रोज पीड़ा हुआ करती थी। निपुण वैद्यों ने औषधियां दी किन्तु पीड़ा दूर नहीं हुई। रानी ने राजा से पीड़ा का कारण पूछा। राजा ने रानी को दुखी देखकर कहा, पूर्व जन्म के कर्म से शरीर को सुख-दुख हुआ करता है। इतना सुनने के बाद भी रानी संतुष्ट नहीं हुई। तब राजा ने कहा मैं इसका कारण यहां नही कहूंगा। महाकाल वन में चलो वहां पूरी बात समझा सकूंगा। सुबह होते ही राजा सेना ओर रानी के साथ महाकाल वन अंवतिका नगरी की ओर चल दिए।
पाताल में गमन करने वाली गंगा तथा नीलगंगा और क्षिप्रा का जहां संगम हुआ है वहां ठहरा। इनके पास जो महादेव है उनका नाम संगमेश्वर है। राजा ने क्षिप्रा तथा पाताल गंगा का जल लेकर महादेव का पूजन किया। इतना सब देखकर रानी ने फिर पूछा राजन अपने दुख का कारण बताइए। राजा ने हंसते हुए कहा रानी आज तो थक गए है कल बताएंगे। सुबह रानी ने फिर पूछा कि अब तो बता दीजिए। तब राजा ने कहा पूर्व जन्म में मैं नीच शुद्र था। वेदों की निंदा करने के साथ लोगों के साथ विश्वासघात करता था। तुम भी मेरे साथ इस कार्य में भागीदारी निभाती थी। हमसे जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह भी पापी हुआ तथा बारह वर्ष तक अनावृष्टि के कारण प्राणी मात्र दुखी हो गए भयभीत रहने लगा। उस समय मुझे वियोग हो गया। मैं अकेला रहने लगा। तब मुझे वैराग्य प्राप्त हुआ और अंत में मैंने कहा धर्म ही श्रेष्ठ है। पाप करना बुरा है।
मैने अंत समय में धर्म की प्रशंसा की थी इसलिए क्षिप्रा जी में मत्स्य बना और तुम उसी वन में श्येनी (कबूतरी) बन गई। एक दिन दोपहर को अश्लेषा के सूर्य (श्रावण) में त्रिवेणी से बाहर निकला और तुम्हें लेकर संगमेश्वर के पास ले गया। पारधि ने हम दोनों का शिकार कर लिया। हमने अंत समय में संगमेश्वर के दर्शन किए थे, इसलिए पृथ्वी पर जन्म मिला है। सारी बातें बताकर राजा ने कहा रानी अब मैं हमेशा संगमेश्वर महादेव के पास रहुंगा। रानी यदि तुम्हे जाना हो तो पुनः राजमहल लौट जाओ। रानी ने कहा राजन जैसे शिव बिना पार्वती, कृष्ण बिना राधा ठीक उसी प्रकार मैं आपके बिना अधूरी हूं। मान्यता है कि पूर्व जन्मों में वियोग से मरे हुए पति पत्नी संगमेश्वर महादेव के दर्शन से मिल जाते हैं।