काफी वर्ष पूर्व पृथ्वी पर कोई राजा नहीं बचा था। ब्रह्मा को चिंता हुई राजा नहीं हुआ तो प्रजापालन कौन करेगा। यज्ञ, हवन, धर्म की रक्षा कौन करेगा। इस दौरान उन्होंने राजा रिपुंजय को तपस्या करते देखा और उससे कहा कि राजा अब तपस्या त्याग कर प्रजा का पालन करो। सभी देवता तुम्हारे वश में रहेंगे और तुम पृथ्वी पर राज करोगे। राजा ने ब्रह्मा की आज्ञा मानकर सभी देवतओं को स्वर्ग में राज करने के लिए भेज दिया और स्वयं पृथ्वी पर शासन करने लगा। राजा के प्रताप को देख इंद्र को ईर्ष्या हुई और उसने वृष्टि बंद कर दी, तब राजा ने वायु का रूप धर इसका निवारण किया। इंद्र ने अग्नि का रूप लेकर यज्ञ, हवन प्रारंभ कर दिए। एक बार भगवान शंकर माता पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए अंवतिका नगरी पहुंचे। राजा रिपुंजय ने उनकी आराधना कर उनसे वरदान में राजस्थलेश्वर के रूप में वहीं निवास करने की इच्छा प्रकट की।
राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उसे वरदान दे दिया। तभी से भगवान शंकर राजस्थलेश्वर महादेव के रूप में अंवतिका नगरी में विराजित हैं ।
मान्यता है कि जो भी मनुष्य राजस्थलेश्वर महादेव का पूजन करता है उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं और उसके शत्रु का नाश होता है। उसके वंश में वृद्धि होती है तथा मनुष्य पृथ्वी पर सभी सुखों का भोग कर अंतकाल में परमगति को प्राप्त करता है। इनका मंदिर भागसीपुरा में आनंद भैरव के समीप गली में स्थित है।