प्राचीन समय में शिव ने एक दिव्य पुरुष को प्रकट किया। पुरुष ने शिव से पूछा कि वह क्या कार्य करें तो शिव ने कहा तुम अपनी आत्मा का विभाग करो। वह पुरुष शिव की बात को न समझने के कारण चिंता में पड़ गया और उसके शरीर से एक अन्य पुरुष उत्पन्न हुआ, जिसे शिव ने ॐकार का नाम दिया। शिव की आज्ञा से ॐकार ने वेद, देवता, सृष्टि , मनुष्य , ऋषि उत्पन्न किए और शिव के सम्मुख खड़ा हो गया।
शिव ने प्रसन्न होकर ॐकार से कहा कि तुम अब महाकाल वन में जाओ और वहां शूलेश्वर महादेव के पूर्व दिशा में स्थित शिवलिंग का पूजन करों ॐकार वहां पहुंचा और शिवलिंग के दर्शन कर उसमें लीन हो गया।
ॐकार के शिवलिंग में लीन होने से शिवलिंग ओंकारेश्वर या ॐकारेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी इस शिवलिंग का दर्शन कर पूजन करता है उसे सभी तीर्थ यात्रा के समान फल प्राप्त होता है।