नेपाल में एक राजा दुर्धर्ष था। उसकी तीन रानियां थी। एक समय मृगया करते हुए वह एक तालाब पर पहुंचा। वहां उसे एक सुंदर कन्या दिखाई दी। वे दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए। उसने कन्या से उसका परिचय पूछा। कन्या ने कहा वह कल्प मुनि की कन्या है। आप मुनि के पास जाकर मेरा हाथ मांगो। राजा ने वैसा ही किया। कल्प मुनि ने कन्या का राजा से विवाह करा दिया। राजा वहीं मुनि के आश्रम में रहने लगे। कुछ दिन बाद एक राक्षस उस कन्या को हरकर ले गया। राजा बहुत दुःखी हुआ। मुनि ने उसे समझाया और अवंतिकापुरी में ब्रह्मेश्वर के पश्चिम में स्थित लिंग के पूजन की सलाह दी।
राजा तुरंत अवंतिका नगरी आया और उसने वैसा ही किया जैसा मुनि ने कहा था। शिवलिंग की पूजा करते ही उसे मंदिर में उसकी स्त्री प्राप्त हो गई। तब राजा उसे लेकर नेपाल चला गया। दुर्धर्ष राजा के पूजन करने से इस शिवलिंग का नाम दुर्धरेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो मनुष्य रविवार की संक्रांति पर इस शिवलिंग का पूजन करता है उसे शिवलोक प्राप्त होता है।