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शहीदों को सलाम, पर सुरक्षा बेलगाम

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, गुरुवार, 26 नवंबर 2009 (11:25 IST)
मुंबई से सुमंत मिश्र

ठीक एक साल पहले पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते आए 10 आतंकवादी जब मुंबई में दहशतगर्दी कर रहे थे तो मौत से जूझते उन 60 घंटों का मैं भी साक्षी बना था। आज एक साल बाद भी सिहरन पैदा करने वाली वे यादें एक दुःस्वप्न की तरह कौंधती हैं। ऐसी घटना फिर ना हो, इसके लिए काफी कदम उठाए गए हैं, लेकिन क्या यह सचमुच काफी हैं, क्योंकि मुंबई को उससे कुछ सीखना होगा जो एक साल पहले हु

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जो कुछ हुआ था उससे यह स्पष्ट था कि इस तरह की घटना के लिए हम तैयार नहीं थे। प्रशासन का यह दावा है कि अब स्थितियाँ बदल गई हैं, लेकिन ऐसा नजर नहीं आता। मरीन ड्राइव की उस जगह पर जहाँ कसाब को जिंदा पकड़ा गया था, एक समारोह का आयोजन किया जा रहा है। शहीदों की याद में स्मारक बना कर उन्हें श्रद्घांजलि दी जाएगी।

पूरा महानगर एक बार फिर से शहीद पुलिसकर्मियों के याद में पोस्टरों और होर्डिंगों से पटा पड़ा है। लेकिन हमले के बाद विभिन्न रेलवे स्टेशनों, महानगर के संवेदनशील स्थानों पर जो बंकर सुरक्षा की दृष्टि से बनाए गए थे, उन पर अब वह मुस्तैदी नजर नहीं आती।

कई जगह तो वे महज औपचारिकता रह गया है। 150 बंकरों में से 100 बंकर सालभर में पीकदान बन गए हैं। उससे एक वर्ग क्षुब्ध है। स्टेशनों पर लगाए मेटल डिटेक्टर की हालत भी कुछ ऐसी ही है। ये हालात तब हैं जब सुरक्षा एजेंसियाँ बार-बार चेतावनी दे रही हैं कि खतरा अभी दूर नहीं हुआ है।

हाँ, मुंबई की सुरक्षा के लिए फोर्स वन का गठन इस बात का एक उदाहरण है कि प्रशासन कोताही नहीं बरतना चाहता। लेकिन कुछ सवाल हवा में आज भी तैर रहे हैं। तत्कालीन पुलिस कमिश्नर हसन गफूर का यह आरोप कि 26 नवंबर 2008 को कुछ पुलिस अधिकारी ड्यूटी का पालन नहीं कर रहे थे। इसी हमले में तीन अधिकारियों हेमंत करकरे, अशोक कामटे और विजय सालस्कर ने शहादत दी थी और इनकी पत्नियाँ भी लगातार यह माँग कर रही हैं कि साल भर पहले पुलिस की असफलता की जाँच हो।

ताकि विश्वास बना रहे : इसलिए जरूरी लगता है कि समूचे पुलिस विभाग की छवि ठीक करने के लिए पुलिस और प्रशासन दोनों ऐसी कार्रवाई करें कि जनता का उनमें विश्वास बन सके। जिस तरह करकरे द्वारा पहनी गई बुलेट प्रूफ जैकेट गायब हुई है उससे भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

आज जहाँ मुंबई की जनता एक तरफ आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की कसमें खा रही है वहीं यह सवाल भी उठ रहा है कि बुलेट प्रूफ जैकेट की खरीददारी में हुए घपले की जाँच पुलिस प्रशासन क्यों नहीं करना चाहता। आज सरकार और पुलिस का कर्तव्य है कि वह इस हमले से जुड़े तमाम लोगों के चेहरे को बेनकाब करके जनता के सामने सचाई को लाए तभी इस हमले में मारे गए और शहीद हुए लोगों की आत्मा को शांति मिलेगी। (नईदुनिया)

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