बंध- मुद्रा की संपूर्ण जानकारी, महत्व और लाभ

अनिरुद्ध जोशी
घेरंड ने 25 मुद्राओं एवं बंध का उपदेश दिया है और भी अनेक मुद्राओं का उल्लेख अन्य ग्रंथों में मिलता है। मुद्राओं के अभ्यास से गंभीर से गंभीर रोग भी समाप्त हो सकता है। मुद्राओं से सभी तरह के रोग और शोक मिटकर जीवन में शांति मिलती है।
 
हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख कर उनके अभ्यास पर जोर दिया गया है। ये हैं- महामुद्रा महाबंधो महावेधश्च खेचरी। उड्यानं मूलबंधश्च बंधो जालंधराभिश्च:।। करणी विपरीताख्‍या वज्रोली ‍शक्तिशालनम। इंद हि मुद्रादशकं जराभरणनाशनम।।
 
अर्थात- महामुद्रा, महाबंध, महावेधश्च, खेचरी, उड्डीयान बंध, मूलबंध, जालंधर बंध, विपरीत करणी, वज्रोली, शक्ति, चालन- ये दस मुद्राएं जराकरण को नष्ट करने वाली एवं दिव्य ऐश्वर्यों को प्रदान करने वाली हैं। अर्थात 4 बंध और 6 मुद्राएं हुईं, लेकिन इसके अलावा भी अन्य कई बंध और मुद्राओं का उल्लेख मिलता है। 
 
इसके अलावा अलग-अलग ग्रंथों के अनुसार अलग-अलग मुद्राएं और बंध होते हैं। योगमुद्रा को कुछ योगाचार्यों ने 'मुद्रा' के और कुछ ने 'आसनों' के समूह में रखा है। दो मुद्राओं को विशेष रूप से कुंडलिनी जागरण में उपयोगी माना गया है- सांभवी मुद्रा, खेचरी मुद्रा। 
 
मुख्‍यत: 5 बंध : 1.मूलबंध, 2.उड्डीयानबंध, 3.जालंधर बंध, 4.बंधत्रय और 5.महाबंध।
 
मुख्‍यत: 6 आसन मुद्राएं हैं- 1.व्रक्त मुद्रा, 2.अश्विनी मुद्रा, 3.महामुद्रा, 4.योग मुद्रा, 5.विपरीत करणी मुद्रा, 6.शोभवनी मुद्रा। जगतगुरु रामानंद स्वामी पंच मुद्राओं को भी राजयोग का साधन मानते हैं, ये है- 1.चाचरी, 2.खेचरी, 3.भोचरी, 4.अगोचरी, 5.उन्न्युनी मुद्रा।
 
 
मुख्‍यत: दस हस्त मुद्राएं : उक्त के अलावा हस्त मुद्राओं में प्रमुख दस मुद्राओं का महत्व है जो निम्न है: -(1)ज्ञान मुद्रा, (2)पृथवि मुद्रा, (3)वरुण मुद्रा, (4)वायु मुद्रा, (5)शून्य मुद्रा, (6)सूर्य मुद्रा, (7) प्राण मुद्रा, (8) अपान मुद्रा, (9)अपान वायु मुद्रा, (10) लिंग मुद्रा। 
 
अन्य मुद्राएं : (1)सुरभी मुद्रा, (2)ब्रह्ममुद्रा, (3)अभयमुद्रा, (4)भूमि मुद्रा, (5)भूमि स्पर्शमुद्रा, (6)धर्मचक्रमुद्रा, (7)वज्रमुद्रा, (8)वितर्कमुद्रा, (9)जनाना मुद्रा, (10)कर्णमुद्रा, (11)शरणागतमुद्रा, (12)ध्यान मुद्रा, (13)सुची मुद्रा,(14)ओम मुद्रा, (15)जनाना और चीन मुद्रा, (16)अंगुलियां मुद्रा (17)महात्रिक मुद्रा, (18)कुबेर मुद्रा, (19)चीन मुद्रा, (20)वरद मुद्रा, (21)मकर मुद्रा, (22)शंख मुद्रा, (23)रुद्र मुद्रा,(24)पुष्पपूत मुद्रा (25)वज्र मुद्रा, (26)हास्य बुद्धा मुद्रा, (27) प्रणाम मुद्रा, (28)गणेश मुद्रा (29)मातंगी मुद्रा, (30)गरुड़ मुद्रा, (31)कुंडलिनी मुद्रा, (32)शिव लिंग मुद्रा, (33)ब्रह्मा मुद्रा, (34)मुकुल मुद्रा (35)महर्षि मुद्रा, (36)योनी मुद्रा, (37)पुशन मुद्रा, (38)कालेश्वर मुद्रा, (39)गूढ़ मुद्रा, (40)बतख मुद्रा, (40)कमल मुद्रा, (41) योग मुद्रा, (42)विषहरण मुद्रा, (43)आकाश मुद्रा, (44)हृदय मुद्रा, (45)जाल मुद्रा, (46) पाचन मुद्रा, (47). शाम्भवी मुद्रा (48) अश्विनी मुद्रा आदि।
 
 
मुद्राओं के लाभ : कुंडलिनी या ऊर्जा स्रोत को जाग्रत करने के लिए मुद्रओं का अभ्यास सहायक सिद्धि होता है। कुछ मुद्रओं के अभ्यास से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त ‍की जा सकती है। इससे योगानुसार अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। यह संपूर्ण योग का सार स्वरूप है।

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