विश्व महिला दिवस : क्यों महिलाएं पुरुष जैसा बनने की होड़ में खो रही अपना अस्तित्व?

WD Feature Desk
World Women Day 2024: भारत में स्त्री स्वतंत्रता कर पैरवी करने वाले सैंकड़ों महिला कार्यकर्ता और संगठन मिल जाएंगे। यह महिलाओं का अधिकार है कि उसे क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं, उसे क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, उसे किससे विवाह करना चाहिए या लिव इन में रहना चाहिए। सचमुच महिलाओं को उनके सभी अधिकार मिलना चाहिए और मिले भी हैं।
 
अनुसरण दूसरी आत्महत्या है, तुम खुद के जैसा बनो- ओशो
 
स्वतंत्रता का सबसे आसान रास्ता : जहां तक महिलाओं का कार चलाना, नौकरी में समान वेतन प्राप्त करना और घूमने फिरने की आजादी के साथ अपनी पसंद के लड़के से विवाह करना है तो यह होना चाहिए और यह समझ में भी आता है लेकिन आजकल देखने में आ रहा है कि कई महिलाएं या लड़कियां खुद को स्वतंत्र या मॉडर्न दिखाने के लिए उन पुरुषों का अनुसारण कर रही है जिन्हें समाज ठीक नहीं मानता है। जैसे, सिगरेट पीना, शराब पीना, जींस पेंट पहनना या पश्‍चिमी सभ्यता की तरह लाइफ स्टाइल में रहना। यह सबसे आसान रास्ता है। पश्‍चिमी समाज की नकल करके आप स्वतंत्र होने की घोषणा कर सकती हैं।
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पुरुष होने की होड़ : पुरुष जैसा होने की होड़ के चलते तो महिलाएं सभी क्षेत्र में किसी भी तरीके से बढ़चढ़कर आगे आ ही जाएंगी और आ भी रही हैं, लेकिन वह जिस तरीके से अपनी स्वतंत्रता का प्रदर्शन कर रही है वह एक सभ्य समाज के लिए चिंतनीय हो सकता है। पुरुष जैसा होकर स्त्री होने के अस्तित्व को खत्म करना सबसे बड़ी समस्या है।
 
पुरुषों की शारीरिक और मानसिक संरचना कुछ इस प्रकार की है कि वह धर्म और अधर्म के सारे कार्य उस संरचना और स्वभाव के आधार पर करता है किंतु स्त्रियां अगर पुरुषों की नकल करके स्वयं को स्वतंत्र समझती है तो वे भयानक भ्रम में है। भयानक इसलिए कि धीरे-धीरे स्त्रियां स्वयं का प्राकृतिक स्वभाव खो देगी। शायद आप जानते ही हैं कि पश्चिम में जो तलाक हो जाते हैं उसका एक मनोवैज्ञानिक कारण यह भी है कि किसी भी पुरुष को पूर्ण स्त्री नहीं मिल पाती है और इसका उल्टा भी हो रहा है। यह कितना हास्यास्पद है कि वहां का पुरुष अब स्वयं की पत्नी में स्त्री ढूंढने लगा है। ठीक इसके विपरित भी। देर-सबेर भारत में भी यही होने वाला है।
पुरुष को पुरुष और स्त्री को स्त्री होने में लाखों वर्ष लगे हैं, लेकिन वर्तमान युग दोनों को दोनों जैसा नहीं रहने देगा। होमोसेक्सुअल लोगों की तादाद बढ़ने के कई और भी कारण हो सकते हैं। दरअसल यह पढ़े और समझे बगैर बौद्धिक, सम्पन्न और आधुनिक होने की जो होड़ चल पड़ी है इससे प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र पाखंडी होता जा रहा है। हम टीवी चैनल और फिल्मों की संस्कृति में देखते हैं कि ये कैसे अजीब किस्म के चेहरे वाले लोग है। जरा भी सहजता नहीं। कहना होगा कि ये सभ्य किस्म के जाहिल लोग हैं। रियलिटी शो की रियलिटी से सभी परिचित है।
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स्त्रैणचित्त : कहते हैं कि पुरुष यदि स्त्रैणचित्त है तो फिर कैसा पुरुष। उसे तो ऐसा-वैसा ही कहेंगे। उसी तरह स्त्री यदि स्त्रैणचित्त नहीं है तो स्त्री होने का कोई मतलब नहीं। प्रकृति ने बहुत स्पष्ट रूप से विभाजन कर रखा है और यदि कोई विभाजन स्पष्ट रूप से नहीं है तो फिर वह अप्राकृतिक ही माना जाएगा।।
 
आज स्त्रियां पुरुष जैसा होने की होड़ में लगी है, इसीलिए तो वे जिंस और शर्ट पहनने लगी है। अच्छी बात है जिंस और शर्ट पहनना लेकिन इससे यदि उनके भीतर पुरुषत्व जाग्रत होता है तो कैसे कहें कि अच्छी बात है। कोई पुरुष यदि सलवार कुर्ती पहन लें तो समझो आफत हो गई, लेकिन लड़कियों के जिंस या शर्ट पहनने पर आफत नहीं होती।
 
सवाल यह उठता है कि स्त्रियों को स्त्रियों की तरह होना चाहिए या स्त्रतंत्रता के नाम पर पुरुषों की तरह? आज हम देखते हैं कि पश्चिम में स्त्रियां स्वतंत्रता के चक्कर में प्रत्येक वह कार्य करती है जो पुरुष करता है। जैसे सिगरेट और शराब पीना, जिम ज्वाइन करना, तंग जिंस और शर्ट पहनना, देर तक पब में डांस करना और यहाँ तक कि पुरुषों की हर वह स्टाइल अपनाना जो सिर्फ पुरुष के लिए ही है। क्या स्वतंत्रता का यही अर्थ है?
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तब स्त्री क्या करें? यह स्व:विवेक का मामला है। स्त्री को स्त्री होने के लिए स्त्री जैसा ही सोचना, समझना और रहना होगा। उसे साहस, संकल्प और एकजुटता का परिचय देना होगा। यह भी कि लड़ाई तब तक जारी रखी जाए जब तक की धर्म, समाज और राजनीति में आमूल परिवर्तन न हो जाए। खासकर तो उन्हें धर्म के उन कानूनों के खिलाफ लड़ना होगा जो उस पर लादे जाते हों या उसे किसी भी तरह से पुरुषों से कमजोर सिद्ध करते हों।

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