अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष: राम युग से अमृतकाल तक भारतीय नारी

डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'
International women's day: स्त्री सभी स्वरूप में भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार वंदनीय, पूजनीय और अनुकरणीय मानी गई है। शास्त्रों में उल्लेखित सभी आधारों पर स्त्री के पूजन या सम्मान को सर्वोपरि रखा गया है, शक्ति स्वरूपा की आराधना को पर्वाधिराज के रूप में स्वीकार किया गया है। उसी स्त्री को दिए वचनों की अनुपालना के लिए राघवेंद्र को भी महल त्याग कर वन गमन करना ही पड़ा और असुरराज रावण के वध के कारक में भी स्त्री की भूमिका महनीय मानी जाती है। 
 
सृष्टि को राक्षसों के आतंक से मुक्त करने के लिए भी स्त्री को केन्द्र में रखकर रघुकुल नंदन ने रावण से युद्ध किया। चाहे सूर्पणखा हो, चाहे जनकनंदिनी सीता, चाहे मंदोदरी हो, चाहे मंथरा, कैकेयी हो या कौशल्या सभी स्त्रियों ने धरती को अनाचार के बढ़ते ताप से मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
 
राम के युग में स्त्रियों की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाने वाले इस बात से अनभिज्ञ हैं कि उस काल में जितनी स्वतंत्र स्त्रियां रही हैं, शायद वर्तमान में भी उतनी स्वच्छंद नहीं। महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि उस काल में मातृशक्ति को भी समान स्वच्छंदता प्राप्त थी, इस बात से अंदाज़ा लगाइए कि रानी कैकेयी को दिए गए राजा दशरथ के वचनों का ही परिणाम था कि राम वनवास गए। 
 
उस काल में यदि स्त्री की स्थिति ऐसी होती कि वह बाहर नहीं निकल सकती थी, तो रानी कैकई देवासुर संग्राम में राजा दशरथ की सहायता कैसे करतीं? और फिर राजा दशरथ उन्हें दो वर प्रदान क्यों करते? रामायण काल में स्त्रियों के कंधों पर उनके उत्तरदायित्वों को निभाने का कार्य था जिसे वे भलीभांति किया करती थीं, ऐसा वाल्मीकि रामायण से ज्ञात होता है।
 
यह प्रकरण है, जब महाराज मनु द्वारा स्थापित अयोध्या नगरी का वर्णन करते हुए वाल्मीकि लिखते हैं कि-
 
'वधू नाटक सन्घैः च संयुक्ताम् सर्वतः पुरीम्।
उद्यान आम्र वणोपेताम् महतीम् साल मेखलाम्।'
 
यानी उस नगरी में ऐसी कई नाट्य मंडलियां थीं, जिनमें मात्र स्त्रियां ही नृत्य एवं अभिनय करती थीं और सर्वत्र जगह–जगह उद्यान थे तथा आम के बाग नगरी के शोभा बढ़ा रहे थे। नगर के चारों ओर साखुओं के लंबे-लंबे वृक्ष लगे हुए ऐसे जान पड़ते थे, मानो अयोध्या रूपिणी स्त्री करधनी पहने हो अर्थात् अयोध्या नगरी में स्त्रियों की नाट्य समितियां थीं, मतलब साफ है कि उस काल में स्त्रियों के पास यह स्वतंत्रता थी कि वह अभिनय आदि क्षेत्रों में कार्य कर सकें।
 
भारत की समृद्ध सनातन परंपराओं में स्त्री सदा से ही पूजनीय मानी गई है और यही कारण है कि हमारे देश में प्रथम दृष्टया स्त्री को मातृरूपेण ही माना गया।
 
वाल्मीकिजी रामायण में बालकांड के षष्ठम सर्ग में लिखते हैं कि-
 
'कामी वा न कदर्यो वा नृशंसः पुरुषः क्वचित्।
द्रष्टुम् शक्यम् अयोध्यायाम् न अविद्वान् न च नास्तिकः।'
 
यानी अयोध्या ऐसी नगरी है जहां पर कोई भी पुरुष कामी, कृपण, क्रूर, मूर्ख एवं नास्तिक नहीं था। अर्थात् अयोध्या की हर स्त्री हर उस अत्याचार से मुक्त थी। स्त्रियों का आदर इसीलिए था क्योंकि पुरुषों ने उन संस्कारों का निर्वहन किया, जो उन स्त्रियों ने उन्हें प्रदान किए थे। इसी तरह जब उस युग की तुलना में वर्तमान का भारत देखें तो यह समन्वयशील भारत भी उसी राघव के राज्य के अनुशासन का परिणाम है।
 
अब बात राम-युग के संस्कारों से अमृतकाल के भारत की करें तो हम भारत के शीर्षस्थ पदों पर महिलाओं का नेतृत्व देख रहे हैं। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मातृशक्ति के रूप में सर्वोच्च पद पर है, वहीं वर्तमान में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्वकाल में केन्द्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ज़ुबिन ईरानी, ग्रामीण विकास मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्री अनुप्रिया सिंह पटेल, कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्री शोभा कारान्दलाजे, कपड़ा मंत्री दर्शना विक्रम जरदोश, संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी, शिक्षा मंत्री अन्नपूर्णा देवी, सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता मंत्री प्रतिमा भौमिक और जनजातीय कार्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार है यानी कि कुल 10 केन्द्रीय मंत्री महिला हैं।
 
देश के कई राजनैतिक दलों में अहम भूमिका में मातृशक्ति का नेतृत्व स्वीकार किया जा रहा है, जैसे कांग्रेस में सोनिया गांधी, सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस में ममता बनर्जी, बसपा में मायावती, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ़्ती, राष्ट्रीय जनता दल में राबड़ी देवी आदि इस समय अपने राजनैतिक दलों का नेतृत्व कर रही हैं। कॉर्पोरेट में भी कई भारतीय कंपनियों के शीर्ष नेतृत्व में महिलाओं का दखल बराबर है।
 
भारतीय कंपनियों के बोर्ड रूम में महिलाओं की क्‍या स्‍थ‍िति है, इसको लेकर ईवाय रिपोर्ट जारी हुई, रिपोर्ट कहती है, भारतीय कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की स्थिति में 5 फीसदी का सुधार हुआ है। 2013 में बोर्ड में उनकी मौजूदगी 6 फ़ीसदी थी जो 2017 में बढ़कर 13 फ़ीसदी हुई। वहीं, 2022 में इसमें सुधार हुआ और आंकड़ा 13 फ़ीसदी तक पहुंच गया।
 
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में आईबीएम की सीईओ गिन्नी रोमेटी से लेकर ओरेकल की सीईओ सफ्रा कैटज तक, महिलाएं व्यवसाय में ऐसा प्रभाव डाल रही हैं, जैसा पहले कभी नहीं हुआ। प्रतिभाशाली और सक्षम महिलाओं को शीर्ष पर पहुंचते और भावी पीढ़ियों के लिए उदाहरण स्थापित करते हुए देखना बहुत अच्छा लगता है।
 
नॉस्कॉम की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 18% स्टार्टअप महिला संस्थापक या फिर सह-संस्थापक के नेतृत्व से चलाए जा रहे हैं। यही नहीं वो महिलाएं ही हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं। इंडिया ब्रांड इक्विटी फांउंडेशन के अनुसार भारत में 20.37% महिलाएं एमएसएमई मालिक हैं, जो लेबर फोर्स का 23.3% हिस्सा है।
 
देश की दो तिहाई कामकाजी महिलाएं अपना काम चलाने के लिए अपना ही कोई कारोबार करती हैं। ज़ोमैटो, बायजू, लेंसकार्ट और ज़ेरोधा भारत के शीर्ष 10 महिला नेतृत्व वाले स्टार्टअप में से हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि अकेले बेंगलुरु में 1783 महिला नेतृत्व वाले स्टार्टअप हैं, जो अहमदाबाद के बिल्कुल विपरीत है, जहां 181 महिला नेतृत्व वाले स्टार्टअप हैं।
 
कॉर्पोरेट के इतर भी समाज के अन्य क्षेत्रों में महिलाओं के बढ़ते दख़ल और नेतृत्व क्षमता से समाज आह्लादित है। रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्रों में भी 24 फ़ीसदी हिस्सेदारी महिलाओं की होती जा रही है। आईटी सिटी बेंगलुरु और देश के सबसे स्वच्छ शहर इन्दौर में 'पिंक टैक्सी' को भी लगातार सराहना मिल रही है।
 
यह भी अपने आप में अनूठा प्रयोग है जो अब सफल होता नजर आ रहा है। वर्तमान में भारत सरकार ने भी नारी शक्ति वंदन अधिनियम लाकर इतिहास रच दिया। देश में महिलाओं की संसदीय प्रक्रिया में भागीदारी बढ़ाने वाला महिला आरक्षण विधेयक अब कानून बन गया है। संसद में हरी झंडी पा चुके महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदना अधिनियम) पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही, लोकसभा और देश की सभी विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी सीटें आरक्षित हो गई हैं।
 
इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन के अनुसार वैश्विक नेशनल लेजिस्लेटिव बॉडी में महिलाओं का औसत प्रतिनिधित्व 24% है। जबकि भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करीब 15% है। महिला आरक्षण कानून लागू होने पर हम ग्लोबल एवरेज से ऊपर उठकर 33% महिला भागीदारी सुनिश्चित करेंगे तो हमारी रैंक भी बढ़ेगी।
 
जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के आगामी 25 वर्षों को अमृतकाल माना है, उसी अमृतकाल में भारत की प्रगति और उसमें महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी का ब्लू प्रिन्ट सरकार दे रही है। भारत का समृद्ध इतिहास इस बात का साक्ष्य है कि अनादि से अनंत तक भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सम्मान को सर्वोपरि रखा जाता है।
 
भारतीय साहित्य की अमर विभूति, स्वाधीनता सेनानी तथा ओडिया भाषा की सुप्रसिद्ध नारी कवि 'उत्कल भारती' कुंतला कुमारी साबत ने लगभग 100 वर्ष पहले लिखा था कि-
 
'बसुंधरा-तले भारत-रमणी नुहे हीन नुहे दीन
अमर कीरति कोटि युगे केभें जगतुं नोहिब लीन।'
 
अर्थात् भारत की नारी पृथ्वी पर किसी की तुलना में न तो हीन है, न दीन है। संपूर्ण जगत में उसकी अमर कीर्ति युगों-युगों तक कभी लुप्त नहीं होगी यानी सदैव बनी रहेगी।
 
[लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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