Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

माला सेन : लेखनी से बरसाती अँगारे

महिला दिवस विशेष

हमें फॉलो करें माला सेन : लेखनी से बरसाती अँगारे
डॉ. सीमा शाहजी
माला सेन एक नारीवादी लेखिका हैं, जो वर्षों से लंदन में रहते हुए भी भारतीय समाज व नारी के प्रति गहरा सरोकार रखती आई हैं। 1991 में फूलनदेवी पर 'बैंडिट क्वीन' उपन्यास लिखकर वे रातो-रात चर्चा में आई थीं। वे विभिन्न सामाजिक आंदोलनों से न केवल जुड़ी रहीं, बल्कि जहाँ जुल्म है... अन्याय है... अनाचार है... उसके विरुद्ध आवाज उठाती रही हैं। अपनी लेखन-यात्रा के कुछ अनुभव इस तरह वे बाँटती हैं।

वे कहती हैं, 'बचपन से मेरा स्वभाव कुछ ऐसा रहा है कि मैं किसी के ऊपर अत्याचार होते हुए भी नहीं देख सकती। जहाँ भी कुछ गलत होता है मेरी नजर से गुजरता है तो वह कानों में शीशे की तरह घुलता है। मुझे इस तरह के वाकयों पर बहुत गुस्सा आता है।' वे एक बंगाली परिवार में जन्मीं आर्मी अफसर की बेटी हैं जिसकी स्कूलिंग देहरादून में हुई। माला के पिता सदर्न कमांड के कमांड अधिकारी रहे थे अतः परिवार के साथ देश के विभिन्न भागों की यात्रा करने का भरपूर अवसर मिला।

अन्याय के खिला
स्कूल की पढ़ाई पूरी करके पूना के वाडिया कॉलेज से वे स्नातक हुईं तथा 17 वर्ष की आयु में लंदन चली गईं। लंदन में भी वे इंडियन वर्कर्स यूनियन की सक्रिय कार्यकर्ता बन गईं। एशियाई मूल के निवासियों के विरुद्ध गोरों के अत्याचार एवं शोषण के मुद्दों पर उनकी कलम खूब चली। वे 35 वर्षों तक लंदन में रहीं, पर अपनी जड़ों से नहीं कटीं।

नहीं बदली है पुरुष मानसिकत
माला सेन का मानना है कि 'भारतीय पुरुष का नजरिया अभी भी स्त्री के प्रति वैसा नहीं है, जैसा होना चाहिए। हालाँकि धीरे-धीरे इस क्षेत्र में परिवर्तन आ रहा है। बहुत-सी संस्थाएँ इस दिशा में काम कर रही हैं। जो दर्द हमारी दादी ने भोगा, वह मेरी माँ ने नहीं और जो हमारी पीढ़ी ने सहा, वह नई पीढ़ी सहने को तैयार नहीं। समाज में नई चेतना... जागृति... आत्मसम्मान के प्रति तीखे तेवर की भावना जाग्रत हो रही है। नई पीढ़ी अपने अधिकारों के प्रति न केवल सचेत है, बल्कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने में सक्षम भी है।'

कहाँ आजाद है स्त्री!
वे कहती हैं कि लोगों के मन में गलत धारणा है कि पाश्चात्य देशों में महिलाएँ बहुत आजाद हैं। सच्चाई तो यह है कि वैश्विक परिदृश्य में महिलाएँ आज भी पारिवारिक हिंसा का शिकार हैं। आज भी उन्हें गैरकानूनी कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कई निर्दोष महिलाएँ तो इस शोषण के विरोध में आवाज उठाना तो दूर, उल्टे जबरन जेलों में पहुँचा दी जाती हैं।

जरूरी है आर्थिक आजाद
माला कहती हैं कि आज जीवन की परिभाषाएँ बदल गई हैं। फिर भी लोग अपने हकों से महरुम हैं। सामाजिक विसंगतियों के लिए सरकार केवल कानून बना सकती है, उसे व्यवहार में लाने के लिए लोगों को बाध्य नहीं कर सकती। इसके लिए शुरुआत घर से ही करनी होगी और सबसे पहले घर में नारी की स्थिति बेहतर बनानी होगी। घर के अंदर क्या होता है, उसे कैसे रोका जाए, यह हमें देखना है।

माला शिक्षा के बारे में कहती हैं- 'मेरे खयाल में शिक्षा द्वारा ही स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है, क्योंकि शिक्षा के बिना आर्थिक स्वतंत्रता एवं आत्मनिर्भरता नहीं आ सकती। भारत में आज भी नारी जीवन बहुत जटिल है। शहरी महिलाओं के जीवन में ज्यादा बदलाव आया है, वे ज्यादा सशक्त एवं समर्थ हैं। पर वे जरूरत से ज्यादा आधुनिक होने का दंभ भर रही हैं, जो हमारे देश की पारिवारिक इकाई पर खतरा बनकर सामने आ रहा है। हाँ, गाँव में बहुत बदलाव आए हैं। वहाँ आपको शिक्षा का स्पष्ट प्रभाव खेती-बाड़ी, जंगल-जमीन, टापरे-टापरे व स्कूलों में तक दिख जाएगा। बहुत-सी ऐसी महिलाएँ भी मिल जाएँगी जिनमें साहस है, परिस्थितियों से जूझने... लड़ने की शक्ति है, आत्मबल है। बस, उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाने की देर है।

'बैंडिट क्वीन' लिखने की प्रेरण
माला फूलनदेवी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित रहीं। फूलन की हिम्मत.. हौसला... परिस्थितियों से जूझने की असीम क्षमता ने ही उन्हें "बैंडिट क्वीन" लिखने की प्रेरणा दी। हालाँकि फूलन आतंक का पर्याय थी, लेकिन हालात ही ऐसे थे जिनका कोई विकल्प नहीं था।

नई पुस्त
उनकी नई पुस्तक 'डेथ बाई फायर' तीन प्रताड़ित महिलाओं की दास्तान है जिसमें रूप कुँवर (दिवराला कांड), साल्वी तथा करुमयी के माध्यम से क्रमशः सती-प्रथा, दहेज-प्रथा और नवजात-कन्या की हत्या जैसी जघन्य कुप्रथाओं पर प्रहार किया गया है। वे कहती हैं कि आज भी महिलाएँ कई चक्रव्यूहों को तोड़ नहीं पातीं और भीषण यातनाएँ सहती हैं। हमारे समाज को इन अमानवीय त्रासदियों से बाहर आना होगा। 'डेथ बाई फायर' का हिन्दी और तमिल में अनुवाद हो चुका है।

माला सेन का लेखन नारी उत्थान के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ रहा है। अन्याय... उत्पीड़न... दमन... शोषण जहाँ भी नजरों से गुजरता है, नफरत बनकर अक्षरों के माध्यम से आग बन जाता है। जागृति की यह आग शिक्षा के लिए, नारी उत्थान के लिए, रूढ़ियों की दीवार ढहाने के लिए, मूढ़ परंपराओं के लिए कई मशालें लिए खड़ी हो गई हैं।

उन्होंने लिखा है, यदि नारी को अपनी स्थिति सुधारनी है तो उसे सामूहिक रूप से एकजट होना होगा, संगठित होना होगा, तभी वह एक सुनहरा भविष्य देख पाएगी व हमारी नई पीढ़ी, हमारे बच्चे एक सुंदर, सुनहरे भविष्य के क्षितिज पर सितारे टाँकने में सक्षम होंगे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi