भारतीय संविधान में महिला और पुरुषों को समान अधिकार मिले हैं। इसकी प्रस्तावना में सभी नागरिकों को अवसरों की समानता का अधिकार दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14 में स्त्री और पुरुषों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के साथ कानून की साम्यता की बात कही गई है। इसके साथ ही अनुच्छेद 15 (3) में राज्यों को महिलाओं के कल्याण के लिए विशेष प्रावधान बनाने के अधिकार भी दिए गए हैं। इसके अलावा भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई ऐसे प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं, जो औरतों को विशेष दर्जा दिलाते हैं।
इन सभी कानूनों के बाद भी ऐसा नहीं है कि महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचार या भेदभाव में कमी आई हो। सचाई और कानून-नियमों के बीच आज भी गहरी खाई है। औरतें गरीब हैं (व्यक्तिगत तौर पर), अशिक्षित हैं, अधिकारों से वंचित हैं, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर हाशिए पर हैं। वहीं महिलाओं पर होने वाले अपराध और अत्याचार का ग्राफ सबसे ऊँचा है।
अपराधों की बढ़ती चौड़ाई-
वर्ष 2006 में बलात्कार के 19348 दर्ज हुए, जो कि भादंसं के तहत दर्ज अपराध का 1 फीसदी था। इनमें से 95 फीसदी को दोषसिद्ध पाया गया। 27.2 फीसदी मामलों में आरोपी को बलात्कार का घोर अपराधी पाया गया। अपहरण के 23991 मामले सामने आए, जो कि भादंसं के तहत 1.3 फीसदी थे। इसमें 77.3 फीसदी मामलों में सजा हुई और 26.7 फीसदी मामलों में आरोपी को घोर अपराधी होने का दोषी पाया गया। दहेज हत्या के 7618 मामले दर्ज किए गए, जो कि कुल अपराध का 0.4 फीसदी था। इस मामले में 94 फीसदी लोगों को सजा हुई।
महिलाओं और लड़कियों के अपहरण के 17414 मामले दर्ज हुए, जिनमें 78.1 फीसदी को सजा हुई। छेड़खानी के 36617 मामलों में 96.1 फीसदी को सजा हुई। शारीरिक और यौन उत्पीड़न के 9966 मामलों में 98.2 फीसदी मामलों में सजा हुई।
पति और परिजन द्वारा किए गए अत्याचार के 63128 मामले सामने आए और इसमें से 94.1 मामलों में आरोपियों को सजा हुई। लड़कियों को जबरन भगाने के 67 मामले दर्ज हुए और इसमें 72 फीसदी मामलों में सजा हुई। वहीं महिलाओं के प्रति कुल 164765 मामले दर्ज हुए, उसमें से 93 फीसदी में अपराधियों को सजा हुई।