महिला दिवस का औचित्य तब तक प्रमाणित नहीं होता जब तक कि सच्चे अर्थों में महिलाओं की दशा नहीं सुधरती। महिला नीति है लेकिन क्या उसका क्रियान्वयन गंभीरता से हो रहा है। यह देखा जाना चाहिए कि क्या उन्हें उनके अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। वास्तविक सशक्तीकरण तो तभी होगा जब महिलाएँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी। और उनमें कुछ करने का आत्मविश्वास जागेगा।
यह महत्वपूर्ण है कि महिला दिवस का आयोजन सिर्फ रस्म अदायगी भर नहीं रह जाए। वैसे यह शुभ संकेत है कि महिलाओं में अधिकारों के प्रति समझ विकसित हुई है। अपनी शक्ति को स्वयं समझकर, जागृति आने से ही महिला घरेलू अत्याचारों से निजात पा सकती है। कामकाजी महिलाएँ अपने उत्पीड़न से छुटकारा पा सकती हैं तभी महिला दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी।
मनु स्मृति में स्पष्ट उल्लेख है कि जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है वहाँ देवता रमण करते हैं, वैसे तो नारी को विश्वभर में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है किंतु भारतीय संस्कृति एवं परंपरा में देखें तो स्त्री का विशेष स्थान सदियों से रहा है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर वर्तमान में यदि खुले मन से आकलन करें तो पाते हैं कि महिलाओं को मिले सम्मान के उपरांत भी ये दो भागों में विभक्त हैं। एक तरफ एकदम से दबी, कुचली, अशिक्षित और पिछड़ी महिलाएँ हैं तो दूसरी तरफ प्रगति पथ पर अग्रसर महिलाएँ। कई मामलों में तो पुरुषों से भी आगे नई ऊँचाइयाँ छूती महिलाएँ हैं।
जहाँ एक तरफ महिलाओं के शोषण, कुपोषण और कष्टप्रद जीवन के लिए पुरुष प्रधान समाज को जिम्मेदार ठहराया जाता है, वहीं यह भी कटु सत्य है कि महिलाएँ भी महिलाओं के पिछड़ने के लिए जिम्मेदार हैं। यह भी सच है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों ने ही स्त्री शक्ति कोअधिक सहज होकर स्वीकार किया है, न सिर्फ स्वीकार किया अपितु उचित सम्मान भी दिया, उसे देवी माना और देवी तुल्य मान रहा है, जिसकी कि वह वास्तविक हकदार भी है।
इस बहस को महिला विरुद्ध पुरुष (जैसा की कुछ लोग अनावश्यक रूप से करते हैं) नहीं करते हुए सकारात्मक दृष्टि से देखें तो हर क्षेत्र में महिलाएँ आगे बढ़ी हैं फिर भी अभी महिला उत्थान के लिए काफी कुछ किया जाना शेष है।
महिला दिवस का औचित्य तब तक प्रमाणित नहीं होता जब तक कि सच्चे अर्थों में महिलाओं की दशा नहीं सुधरती। महिला नीति है लेकिन क्या उसका क्रियान्वयन गंभीरता से हो रहा है। यह देखा जाना चाहिए कि क्या उन्हें उनके अधिकार प्राप्त हो रहे हैं।
घर के चौके-चूल्हे से बाहर, व्यवसाय हो, साहित्य जगत हो, प्रशासनिक सेवा हो, विदेश सेवा हो, पुलिस विभाग हो या हवाई सेवा हो या फिर खेल का मैदान हो, महिलाओं ने सफलता का परचम हर जगह लहराया है। यहाँ तक कि महिलाएँ कई राष्ट्रों की राष्ट्राध्यक्ष भी रही हैंऔर कुछ तो वर्तमान में भी हैं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की यह सफलता निश्चित ही संतोष प्रदान करती है। ऐसे में यह भी आवश्यक है कि सुदृढ़ समाज और राष्ट्र के हित में महिला, पुरुष के मध्य प्रतिद्वंद्विता स्थापित नहीं की जाए वरन सहयोगात्मक संबंध बढ़ाए जाएँ। शिक्षित एवं संपन्न महिलाओं को चाहिए कि वे पिछड़ी महिलाओं के लिए जो भी कर सकती हैं करें।
विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की दशा सुधारने पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है क्योंकि महिलाओं की समस्याएँ महिलाएँ ही भलीभाँति समझती हैं इसलिए शिक्षित एवं संपन्न महिलाएँ इस दिशा मेंविशेष योगदान दे सकती हैं। निश्चित ही इस संदर्भ में पुरुषों को भी अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहना होगा।
देखा जाए तो पुरुष स्वयं भी कई समस्याओं से ग्रस्त हैं, खासकर बेरोजगारी की समस्या से। और इसीलिए महिला-पुरुष एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं होते हुए परस्पर सहयोग की भावना से बराबरी से आगे बढ़ सकते हैं। तभी सामाजिक ढाँचा और राष्ट्र भी सुदृढ़ बनेगा। अत्याचार करने वाले किसी भी पुरुष के कारण संपूर्ण पुरुष जमात को दोष देने की होड़ से भी बचना हितकर रहेगा क्योंकि अत्याचार, व्यभिचार, दुराचार करने वाला सिर्फ अत्याचारी है, अपराधी है और उसे उसकी सजा मिलना चाहिए। महिलाओं को समान अधिकार। समान अवसर और ससम्मान स्वतंत्रता का पूर्ण अधिकार है। इसमें किसी संदेह की गुंजाइश भी नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विभिन्न क्षेत्र के लोगों (खासकर महिलाओं) से चर्चा की। शिक्षण संस्थान की संचालिका श्रीमती स्वाति जैन के अनुसार प्रत्येक नारी का जीवन मानव जीवन के लिए प्रेरणा का स्रोत है। महिला दिवस पर सभी नारियों को संदेश है कि एक पढ़ी-लिखी सुसंस्कृत माँ सौ स्कूलों के बराबर होती है। अतः नारी अपनी शक्ति को पहचाने और आजाद, भयमुक्त और नरम बने ताकि पुरुष प्रधान समाज में नारी की पहचान उसके अंदर की शक्ति से हो और स्वच्छ-सुंदर समाज का निर्माण हो।
विज्ञापन एजेंसी की संचालिका श्रीमती तुलसी राठौर मानती हैं कि महिला के लिए राहें आसान नहीं होतीं किंतु महिलाएँ संकल्प कर लें तो स्वयं के लिए समाज में उपयुक्त स्थान बनाकर अन्य महिलाओं के लिए भी मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं। महिलाओं में कार्य के प्रति ईमानदारी, समर्पण एवं अनुशासन भी अधिक रहता है और जिस घर में महिलाओं का सम्मान नहीं होता वहाँ शांति भी नहीं रहती है।
पेशे से शिक्षिका सुश्री अरुणा चंदेल के अनुसार अपना लक्ष्य पाने के लिए संघर्षरत महिलाओं ने काफी कुछ पा लिया है और काफी कुछ पाना बाकी है किंतु ऐसे में अपने पारंपरिक विवाह और परिवार जैसी परंपरा को स्वतंत्रता के नाम पर नकारने लगे तो सामाजिक ताना-बाना बिखर सकता है। अपनी सादगी, संस्कृति और परंपराओं को अक्षुण्ण रखने के कर्तव्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है।
फार्मास्युटिकल संस्थान से जुड़ी सुश्री शक्ति कुँवर का कहना है कि महिला दिवस पर सिर्फ अधिकारों की चर्चा करने की अपेक्षा महिलाओं को यह याद रखना आवश्यक है कि महिला शक्ति, सुंदरता और विनम्रता का ऐसा सामंजस्य है जो निश्चित ही बेहद आकर्षक है, अद्भुत है और उसका भविष्य सुनहरा है। गृहिणी और घर से ही बुटिक का व्यवसाय करने वाली श्रीमती हेमा व्यास का कहना है कि वैसे तो आज सरपंच पद से लेकर अंतरिक्ष तक महिलाओं ने सफलता का परचम लहराया है किंतु एक दिन महिला दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा।
महिला दिवस मनाने की सार्थकता तभी है जब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महिलाओं में जागरूकता को बढ़ाया जाए। मुंबई में महिलाओं के परिधान का बड़ा शोरूम संचालित कर रही श्रीमती सुनीता चेमनानी महिला दिवस पर कहती हैं कि महिला दिवस क्यों? पुरुष दिवस क्यों नहीं? महिलाओं को कमजोर क्यों समझा जाता है? महिला ठान ले तो सब कुछ कर सकती है।
जब रुपांकन के श्री अशोक दुबे से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर चर्चा की तो उन्होंने कहा कि स्त्री की सुंदरता में विलक्षण शक्ति होती है। विश्व नियंता को यदि हम एक कुशल चित्रकार मान लें तो स्त्री उसका सर्वश्रेष्ठ रंगीन चित्र है। अन्य सबों में रंग भरने के बाद अंत में कला की पराकाष्ठा के रूप में अपनी सर्वाधिक प्रभावशाली तुलिका से चित्रकार द्वारा बनाई गई एक रंगीन पूर्णाकृति। ऐसी पूर्णाकृति और नारी शक्ति को नमन करते हुए उन्होंने कहा- ' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।'