संभल की सच्चाई : क्या है तुर्क बनाम पठान का एंगल? जानिए पूरी कहानी

हिमा अग्रवाल
बुधवार, 27 नवंबर 2024 (08:17 IST)
Sambhal news in hindi : संभल में जामा मस्जिद सर्वे के दौरान उपजी हिंसा अब नया जामा पहनती हुई नजर आ रही है। कहा जा रहा है कि यह दो नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई है जिसमें 4 बेगुनाह मौत की भेंट चढ़ गए। ये सभी पठान विधायक महमूद इकबाल अंसारी के समर्थक थे। सर्वे के दौरान भीड़ को उकसाने का आरोप संभल के नवनिर्वाचित तुर्क सांसद जिया उर रहमान बर्क के समर्थकों पर लगा है। सांसद समर्थकों की गोलीबारी से पठान, अंसारी और सैफी विधायक समर्थकों की मौत हुई है जिसके बाद क्षेत्र में देशी बनाम विदेशी का मुद्दा यानी तुर्क बनाम पठान का मुद्दा गरमा गया है।
 
इस मुद्दे को योगी सरकार में मंत्री नितिन अग्रवाल ने हवा देते हुए सोशल मीडिया 'एक्स' पर लिखा है कि 'संभल की आगजनी और हिंसा वर्चस्व की राजनीति का नतीजा है। तुर्क-पठान विवाद ने न केवल शांति भंग की, बल्कि आम लोगों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिए। उत्तरप्रदेश पुलिस की तत्परता सराहनीय है'। ALSO READ: संभल में पुलिस ने नहीं तो किसने चलाई गोली, 5 लोगों को किसने मारा?
 
भाजपा नेता अग्रवाल ने एक्स पोस्ट के माध्यम से इशारे में अपनी बात कहते हुए संभल सांसद जिया उर रहमान बर्क और स्थानीय विधायक इकबाल महमूद अंसारी को कटघरे में खड़ा किया है, वहीं सांसद और विधायक का नाम पुलिस की एफआईआर में भी दर्ज है। पुलिस की जांच में अब यह नया एंगल तुर्क और पठान वर्चस्व की लड़ाई भी आ गया है।
 
पुलिस ने जामा मस्जिद सर्वे के दौरान टीम को घेरा और पथराव और गोलीबारी के बाद क्षेत्र में तनाव होने पर 30 थानों की पुलिस तैनात कर रखी है। वीडियो फुटेज जुटाकर जांच में जुटी हुई है। 
 
एक तरफ यह नैरेटिव सेट किया जा रहा है, उसे इतिहास के साथ अपनी तरह से सेट किया जा रहा है, वहीं वहां काम कर रहे पत्रकार और स्थानीय लोग खारिज करते हुए इसे कपोल कल्पित बता रहे हैं। पहले वायरल हो रहा कथित इतिहास जान लीजिए।
 
पठान बनाम तुर्क के वर्चस्व की लड़ाई जानने के लिए उस इतिहास को जानना भी जरूरी है जिसका संदर्भ दिया जा रहा है। इतिहास के हवाले से कहा जा रहा है कि तुर्क और पठानों के बीच पहले भी संघर्ष रहा है, यह सही नहीं है। तुर्क मध्य एशिया से आए थे और स्लैब डायनेस्टी यानी दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई, उसके बाद खिलजियों ने एक पूरा राज्य स्थापित किया।
 
दिल्ली सल्तनत को खिलजी के बाद तुगलक और तुगलक के बाद लोदी वंश ने संभाला था। लोदी अफगान के थे। उन्हें पठान नाम से जाना जाने लगा। वे अफगानिस्तान से आए थे जबकि बाकी लोग मध्य एशिया से आए थे। जिसके चलते आपस में संघर्ष या कोई मैचिंग पॉइंट इनमें नहीं था। किसी भी स्तर पर एक ही नहीं थे और न ही कहीं पर मिले। संभल की बेल्ट रुहेलखंड से जुड़ी है। यहां जो समस्या चल रही है, उसमें कहीं भी तुर्क और पठान के बीच संघर्ष की कहानी नहीं है। यह दोनों भारत में एक ही टाइम में आकर राज्य की स्थापना करते तो इनमें संघर्ष होता।
 
मोहम्मद गौरी के समय से स्टार्ट होकर स्लैब डायनेस्टी 1290 तक चली। वे लोग तुर्क थे। उसके बाद खिलजी वंश चला, उसके बाद तुगलक का स्टार्ट हुआ। इन लोगों ने बहुत लंबे पीरियड तक शासन किया। 1451 में लोदी वंश के लोगों, जो अफगानिस्तान के पठान हुआ करते थे, ने दिल्ली सल्तनत पर कब्जा कर लिया और दिल्ली सल्तनत को आगे चलाया। इसलिए यह कहा जा सकता है कि इनमें वर्चस्व के लिए संघर्ष नहीं हुआ।
 
जीरो ग्राउंड पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों ने 'वेबदुनिया' को बताया कि संभल में वर्चस्व के लिए तुर्क बनाम पठान का संघर्ष कहना न्यायोचित नहीं होगा, क्योंकि यहां ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। हताहत दोनों तरफ के लोग हुए हैं। बेबुनियाद मुद्दे को हवा देकर माहौल खराब करने का प्रयास है। पत्रकारों ने स्थानीय लोगों से बातचीत की तो बताया गया कि पुलिस ने गोली चलाई है। पुलिस की गोली से हमारे लोग मरे हैं जबकि पुलिस दावा कर रही है कि उन्होंने गोली नहीं चलाई, रबर की गोलियां दागी थीं।
 
पोस्टमार्टम में जामा मस्जिद सर्वे हिंसा के शिकार मृतकों के शरीर से कोई बुलेट की गोली नहीं मिली है, इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गोली सीने को चीरते हुए पीठ से पार हो गई होगी। मृतकों के शरीर से बुलेट रिकवर नहीं हुई है, इसलिए अब यह कहना भी मुश्किल है कि गोली किस विपन्न से चली है, कौन है संभल हिंसा में मारे गए युवकों का हत्यारा?
 
Edited by : Nrapendra Gupta 

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